हिंदी-भाषी समाज में पढ़ने की आदत में गिरावट के शुरुआती शोर के बीच एक हिंदी उपन्यास ने बिक्री के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये थे।1993 में छपे 347 पेज के इस उपन्यास के प्रचार के लिए शहरों में होर्डिंगें लगायी गयी थीं। अनुमान है कि बीते तीन दशक में इस उपन्यास की आठ करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं। साहित्यकारों की नज़र में ‘लुगदी' श्रेणी के इस उपन्यास के लेखक थे वेदप्रकाश शर्मा और उपन्यास था- वर्दीवाला गुंडा!
वर्दी वाले ‘गुंडों’ को ‘हत्यारा’ बनाती सरकार!
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025
इस ‘राष्ट्रवादी’ समय में ‘गुंडों’ को ‘हत्यारा’ बनता देखा जा सकता है। इसकी झलक आपको यूपी में तो मिलेगी, लेकिन कुछ अन्य राज्यों में भी देखी जा सकती है। हालांकि पुलिस वालों में अच्छे लोग भी हैं, लेकिन बुरे लोग उन पर भारी पड़ते हैं। समाज का सामना जिन वर्दी वालों से हो रहा है, वो राजनेताओं के इशारे पर काम कर रही है और पुलिस पर से जनता का भरोसा खत्म होता जा रहा है। आरोप है कि यूपी में जातीय आधार पर एनकाउंटर हो रहे हैं। ये आदेश कौन देता है, इसके लिए हमे कोई धार्मिक किताब नहीं पढ़ना पड़ेगी। इस पूरे नेक्सस को समझियेः

मोहित पांडेय और रोता बिलखता परिवार