भारतीय और पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के हवाले से इंग्लैंड के समाचार पत्र 'द गार्डियन' ने एक ख़बर दी है जिसका शीर्षक है- ‘भारत सरकार ने पाकिस्तान में हत्याएँ करवाईं’।
इस मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 फ़रवरी 2019 की पुलवामा घटना, जिसमें 40 भारतीय सुरक्षाकर्मी मारे गए थे, ने भारत की सुरक्षा संबंधी प्रतिक्रिया को निर्णायक मोड़ दिया। रिपोर्ट के मुताबिक़ विदेशी धरती पर छुपे भारतीय मूल के आतंकवादियों को ख़त्म करने की भारतीय नीति के चलते 2020 के बाद से हरकत उल अंसार, जमात उल मुजाहिदीन और हिज्बुल मुजाहिदीन के 20 आतंकवादियों की पाकिस्तान में हत्या कर दी गई जिनमें से 15 की हत्या 2023 में की गई थी। अख़बार के अनुसार भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सऊदी धरती पर बैठे अपने स्लीपर एजेंटों के माध्यम से पाकिस्तान में टारगेट किलिंग की।
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने इस रिपोर्ट का पुरजोर खंडन किया है और कहा है कि भारत के पास टारगेट किलिंग करने की कोई भी नीति नहीं है। लेकिन उसी दिन एक राजनीतिक रैली में, प्रधानमंत्री ने कहा कि देश अब शत्रु ताक़तों को ख़त्म करने के लिए अंदर घुसकर जवाब देगा। प्रधानमंत्री का इशारा पाकिस्तान के बालाकोट में हुई भारतीय सैन्य कार्रवाई (26 फरवरी 2019) की तरफ था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी एक इंटरव्यू में यही बात कही है कि पाकिस्तान में छुपे भारतीय आतंकवादियों को हम पाकिस्तान में जाकर मारेंगे। अब इन सभी बिंदुओं को जोड़कर देखने पर किसी को भी समझ में आ सकता है कि आतंकवाद से जुड़ी भारत की विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन आ रहा है। यह परिवर्तन केवल पाकिस्तानी जमीन तक सीमित नहीं है बल्कि इस नीति का परिणाम कनाडा और अमेरिका में भी दिख रहा है और वहाँ की सरकारों ने इसका प्रतिवाद भी किया है।
अमेरिकी कानून टारगेट किलिंग की इजाजत देता है
हत्या, चाहे शांतिकाल में हो या युद्धकाल में, एक अवैध और गैरकानूनी कार्रवाई है। इसी श्रेणी में टारगेट किलिंग भी आती है जो एक स्पष्ट सरकारी अनुमोदन के साथ किसी विशिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की जानबूझकर की गई हत्या है। अंतरराष्ट्रीय कानून के नियम इसकी इज़ाज़त नहीं देते और संपूर्ण रूप से उन राष्ट्रों को ही जिम्मेदार मानते हैं जो यह हत्या करवाते हैं।
अमेरिका में दूसरे देशों में टारगेट किलिंग करवाने के लिए राष्ट्रपति से अनुमोदन लेना ज़रूरी होता है और उसके लिए नियम बने हुए हैं। अंतिम कार्रवाई को एक जटिल प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही अंजाम दिया जाता है।
1976 में राष्ट्रपति जेरल्ड फॉर्ड ने एक कार्यकारी आदेश (प्रेजिडेंट्स एग्जिक्यूटिव ऑर्डर) संख्या 12333 जारी कर दशकों से सीआईए द्वारा चलाई जा रही हत्या नीति पर लगाम कसते हुए सरकारी एजेंसी द्वारा हत्या की कोई भी योजना बनाने और किसी कर्मचारी के उसका हिस्सा बनने पर रोक लगा दी। इसका पालन बाद के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, रॉनल्ड रेगन और जॉर्ज बुश ने भी किया।
- जब राष्ट्रपति अपनी संसद या कांग्रेस से युद्ध की घोषणा करने के लिए कहे। ऐसी स्थिति में दुश्मन सेना की कमान की जिम्मेदारी निभाने वाला एक विदेशी नेता हत्या के लिए एक वैध लक्ष्य बन जाएगा।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51 आत्मरक्षा का अधिकार देता है। इसके आधार पर या किसी विदेशी नेता की आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से राष्ट्रपति टारगेट किलिंग का आदेश दे सकता है।
- जब राष्ट्रपति सीधे किसी की हत्या का आदेश न दे लेकिन युद्ध के दौरान कोलैटरल डैमेज के कारण किसी की हत्या हो जाए।
- प्रतिबंध के आदेश को पलटकर एक अपवाद के तौर पर संसद से टारगेट किलिंग की मंजूरी ले ली जाए।
इस तरह इन चार में से किसी भी एक तरीक़े का उपयोग करके, अमेरिकी राष्ट्रपति सैद्धांतिक रूप से कार्यकारी आदेश का उल्लंघन किए बिना किसी विदेशी नेता की हत्या का आदेश दे सकता है।
टारगेट किलिंग का इजराइल ने बढ़ावा दिया
अमेरिका ने 2010 और 2020 के बीच ड्रोन हमलों में 16,900 लोगों को मार डाला, जिनमें 2,200 से अधिक नागरिक शामिल थे। ये मुख्य रूप से यमन, पाकिस्तान, सोमालिया और अफगानिस्तान में रह रहे थे।
कम्युनिस्ट देश जिनमें रूस, चीन और उत्तरी कोरिया शामिल हैं, टारगेट किलिंग का इतेमाल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खात्मे के लिए व्यापक रूप से कर रहे हैं। 13 फरवरी 2024 को यूक्रेन भाग गए रूसी पायलट मक्सिम कुज़मिनोव की स्पेन में हत्या कर दी गई। कुज़मिनोव अगस्त 2023 में अपने MI-8 हेलीकॉप्टर के साथ यूक्रेन में पलायन कर गए थे और एक अलग नाम और यूक्रेनी पासपोर्ट के साथ स्पेन में रह रहे थे। कुज़मिनोव के देशबदल के तुरंत बाद रूस की सैन्य खुफिया एजेंसी ने कुज़मिनोव के खात्मे के संबंध में कहा कि आदेश पहले ही मिल चुका है और इसकी पूर्ति केवल समय की बात है। रूसी सरकार ने अनगिनत लोगों की टारगेट किलिंग की है जिनमें पुतिन के राजनीतिक विरोधी एलेक्सी नवलनी और वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन की मौतें भी शामिल हैं। इसी तरह चीन के विदेश एवं रक्षा मत्रियों का गायब होना इसी दिशा में संकेत देते हैं।
जवाबदेही से मुक्त और परिभाषित युद्धक्षेत्रों के बाहर की जाने वाली ये कार्रवाइयाँ नैतिक और कानूनी मुद्दे उत्पन्न कर रही हैं। इस नीति के आलोचकों ने टारगेट किलिंग की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाया है।
11 सितम्बर 2001 को ट्विन टावर पर हमलों के बाद से अमेरिका ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ जो वैश्विक युद्ध छेड़ रखा था, उसमें विदेशों में रह रहे आतंकवादी सरगनाओं और उनके संगठन का खात्मा भी निहित था। इसके तहत जिस तरीके से टारगेट किलिंग की गईं, वह मानवाधिकार कानून और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के विरुद्ध था। मगर ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में या फिर अल जवाहरी का काबुल में खात्मा विश्व शांति को बल देता है।
अमेरिकी कानून विशेषज्ञ एक लैटिन कहावत - Lex Specialis का हवाला देते हैं जिसका मतलब है - ख़ास (परिस्थिति के) नियम सामान्य (परिस्थिति के) नियमों पर हावी होंगे। यह कहावत अपनी स्पष्टता के कारण सैद्धांतिक रूप से आकर्षित करती है मगर टारगेट किलिंग को नियंत्रित करने वाले नियमों के बारे में कोई ठोस मार्गदर्शन प्रदान नहीं करती है। अभी तक कोई ऐसा सर्वसम्मत कानूनी ढाँचा नहीं बना जो अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संदिग्धों की टारगेट किलिंग के मामले में उचित रूप से लागू होता है और जो पारदर्शी और नीतिगत भी हो। किसी भी देश की सरकार अपने विरोधी को आतंकवादी करार दे सकती है और उसकी हत्या करवा सकती है। क्या इसे वैध ठहराया जा सकता है।
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