आख़िरकार उच्चतम न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण पर मुहर लगा दी। बाबरी मसजिद मामले, गुजरात के जाकिया जाफरी मामले में इसके पहले के उच्चतम न्यायालय के फ़ैसलों को देखते हुए सोशल मीडिया पर पहले से चर्चा थी कि यह फ़ैसला भी सरकार के पक्ष में जाएगा। न्यायालय ने अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण होने का दायरा भी तोड़ दिया है, जिसके आधार पर वह जाट, मराठा, पाटीदार, कापू आदि आरक्षणों को खारिज करता रहा है। अब आने वाले दिनों में तमाम सवाल खड़े होने जा रहे हैं।
50% आरक्षण का दायरा टूटा तो अब तेज होगी आरक्षण की रार?
- विश्लेषण
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- 7 Nov, 2022

आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को आज तोड़ दिया गया तो इसका क्या असर होगा? क्या इससे वंचितों को मिल रहे मामूली से हिस्से भी प्रभावित होंगे? इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी?
50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण
अब तक न्यायालय यह कहते हुए जाट आरक्षण, पाटीदार आरक्षण, मराठा आरक्षण को खारिज करता रहा है कि आरक्षण को 50 प्रतिशत से ऊपर नहीं बढ़ाया जा सकता है। न्यायालय के 5 पीठ के फ़ैसले ने अब यह व्यवधान ख़त्म कर दिया है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए न्यायालय 50 प्रतिशत का स्लैब तोड़ने को तैयार हो गया है तो अब भविष्य में अन्य तरह के आरक्षणों के लिए भी जगह बन गई है। जाट, पाटीदार, मराठा, कापू के अलावा ओबीसी तबक़ा भी लगातार आरक्षण बढ़ाए जाने की मांग करता रहा है। मंडल कमीशन ने अपनी सिफारिशों में बताया था कि देश में ओबीसी की अनुमानित आबादी 52 प्रतिशत है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी थी, इसलिए मंडल आयोग ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। अब यह मांग भी उठेगी कि एससी और एसटी को आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया है और उसी तर्ज पर ओबीसी को भी उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण दिया जाए।