प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने फ़ैसलों से चौंकाने के लिए पहचाने जाते हैं। अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अपनी मंत्रिपरिषद के पहले और संभवत: आख़िरी विस्तार से पहले और बाद में उन्होंने कई बार चौंकाया। अपने दर्जनभर मंत्रियों को मंत्रिपरिषद से बाहर का रास्ता दिखाना मोदी का सचमुच एक साहसिक क़दम है, वहीं नए मंत्रियों के चयन में क्षेत्रीय, जातीय और क़ाबिलियत का संतुलन बैठाना भी कोई हंसी का खेल नहीं है।
बड़े नामों पर गिरी गाज के मायने
पहले इस पर चर्चा कर लेनी चाहिए कि मंत्रिपरिषद से कई क़द्दावर नेताओं की आख़िर क्यों छुट्टी कर दी गई। चार बड़े कैबिनेट मंत्रियों की छुट्टी पीएम मोदी का सबसे बड़ा चौंकाने वाला फ़ैसला है। इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। मंत्रिपरिषद में विस्तार और फेरबदल से पहले इस बात की चर्चा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को साथ लेकर मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं और कामकाज के आधार पर ही यह फ़ैसला किया जाएगा कि किस की छुट्टी होनी है, किसके पर कतरे जाने हैं और किसे तरक़्क़ी देनी है।
आठ मंत्रियों की तरक़्की
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रियों की दो साल की परफॉर्मेंस देखकर सिर्फ़ 8 को ही तरक्की के लायक पाया। अपने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को मंत्रिमंडल से हटा कर सीधा कर्नाटक का गवर्नर बना दिया। इस मायने में यह थावरचंद गहलोत की यह बड़ी तरक़्क़ी है। 7 राज्य मंत्रियों को तरक़्क़ी देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इसका मतलब यह है कि मोदी इनके कामकाज से खुश हैं। इनमें किरण रिजिजू, अनुराग ठाकुर, हरदीप पुरी, पुरुषोत्तम रुपाला, मनसुख मांडवीया, जी किशन रेड्डी और आर के सिंह शामिल हैं।
मंत्रिपरिषद की महिला शक्ति
मंत्रिपरिषद के विस्तार का सबसे बड़ा आकर्षण साथ में महिला मंत्रियों की शपथ का रहा। मोदी की मंत्रिपरिषद में अब कुल 11 महिलाएँ हो गई हैं। 78 सदस्यों वाली मंत्रिपरिषद में 11 महिला मंत्रियों का मतलब 14 फ़ीसदी हिस्सेदारी महिलाओं को दी गई है। इससे पहले किसी भी केंद्रीय मंत्रिपरिषद में इतनी बड़ी संख्या में महिला मंत्री नहीं रही हैं। इस लिहाज़ से आज देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया यह एक बड़ा क़दम है। हालाँकि पीएम मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद से एक महिला की भी छुट्टी की है।
चुनावों पर नज़र
मंत्रिपरिषद के विस्तार और फेरबदल की यह सारी कवायद चुनाव को ध्यान में रखकर की गई है। जिन राज्यों में हाल ही में चुनाव संपन्न हुए हैं वहाँ के मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है और जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं उनको खास तवज्जो दी गई है। पश्चिम बंगाल से बाबुल सुप्रियो और देबश्री चौधरी को मंत्रिपरिषद से हटाया जाना इस बात का सबूत है। पश्चिम बंगाल में अब फ़िलहाल कोई चुनाव नहीं होना है। लिहाजा वहाँ के लोगों को मंत्रिपरिषद में बनाए रखने की कोई तुक नहीं है।
अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। साल के आख़िर में गुजरात समेत तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा इन राज्यों को खास तवज्जो दी गई है।
यूपी पर ख़ास मेहरबानी
उत्तर प्रदेश मोदी और योगी दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है लिहाजा मंत्रिपरिषद के विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश को खास तवज्जो दी है। यूपी से इस विस्तार में 7 मंत्रियों को शामिल किया गया है। इनमें एक अजय मिश्रा को छोड़कर बाक़ी सब दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं। क्षेत्रीय संतुलन का भी ख़ास ध्यान रखा गया है। पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल जहाँ पूर्वांचल से आते हैं वहीं कौशल किशोर और अजय मिश्रा अवध क्षेत्र से हैं। भानु प्रताप वर्मा बुंदेलखंड और बीएल वर्मा रोहिलखंड से और एसपी सिंह बघेल पश्चिम उत्तर प्रदेश से। यूपी में बीजेपी को समाजवादी पार्टी और बीएसपी से टक्कर है। लिहाज़ा इनके आधार वोट में सेंधमारी के लिए बीजेपी ने दलित-पिछड़े वर्ग को ख़ास तवज्जो देकर मंत्रिपरिषद में जगह दी है।
गुजरात का ख़ास ख्याल
गुजरात में चुनाव को डेढ़ साल बाक़ी है। बीजेपी को कहीं न कहीं अपने इस सबसे मज़बूत क़िले की बुनियाद हिलने का एहसास होने लगा है। लिहाज़ा मंत्रिपरिषद विस्तार में गुजरात का ख़ास ख्याल रखा गया है। गुजरात के अपने आदिवासी नेता मंगत भाई पटेल को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बना कर भेजा है। वहीं पुरुषोत्तम रुपाला और मनसुख मांडवीया को प्रमोट करके कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इनके अलावा दर्शन जारदोष, मुंजपारा महेंद्र भाई और देव सिंह चौहान को भी मंत्रिपरिषद में जगह दी गई है। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है लेकिन वह लोकसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके अलावा गुजरात से गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस जयशंकर कद्दावर मंत्री हैं। मौजूदा वक़्त में मोदी की मंत्रिपरिषद में गुजरात से कुल 7 मंत्री हैं। माना जा रहा है कि गुजराती मंत्रियों को जगह देकर राज्य में राजनीतिक समीकरण साधने की पूरी कोशिश की गई है।
नहीं कामा आया सहयोगी दलों का दबाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने मंत्रिपरिषद के विस्तार में सहयोगी दलों को उनकी औक़ात दिखा दी है। बीजेपी का सबसे बड़ा सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड दो कैबिनेट मंत्री और दो राज्य मंत्रियों के लिए दबाव बना रहा था। लेकिन आख़िर में उसे एक कैबिनेट मंत्री पद पर ही संतुष्ट होना पड़ा।
बीजेपी नहीं एनडीए सरकार
मंत्रिपरिषद के विस्तार से पहले मोदी सरकार में सहयोगी दलों की तरफ़ से एक भी मंत्री नहीं था। वह पूरी तरह बीजेपी की सरकार थी। अब तीन मंत्रियों को लेकर बीजेपी ने अपनी सरकार को एनडीए की सरकार का चेहरा देने की कोशिश की है। हालाँकि 2019 में मोदी ने सहयोगी दलों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया था। लेकिन पिछले साल रामविलास पासवान का देहांत हो गया था। शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाने की वजह से उसके मंत्री अरविंद सावंत ने इस्तीफ़ा दे दिया था और कृषि विधि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एनडीए छोड़ने पर अकाली दल की हरसिमरत कौर भी सरकार से बाहर आ गई थीं। अभी तक सिर्फ़ आरपीआई के रामदास अठावले ही बतौर राज्य मंत्री मंत्रिपरिषद में सहयोगी दल की तरफ़ से मंत्री थे। लेकिन वह बीजेपी के कोटे से राज्यसभा में हैं। इसलिए उन्हें सहयोगी दल का माना जाना उचित नहीं है। अब पीएम मोदी ने अपनी सरकार को सचमुच एनडीए सरकार का चेहरा दे दिया है।
ख़ास बात यह है कि पीएम मोदी ने अपनी नई मंत्रिपरिषद में पूर्व मुख्यमंत्रियों से लेकर नौकरशाह और टेक्नोक्रेट तक को जगह दी है। जहाँ असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को दोबारा मंत्रिमंडल में जगह दी गई है वहीं शिवसेना से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे नारायण राणे को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली है। यह मंत्रिपरिषद अब तक की तमाम केंद्रीय मंत्रिपरिषद के मुक़ाबले औसत आयु में सबसे युवा है। इस मंत्रिपरिषद में विस्तार और फेरबदल से मोदी सरकार का चेहरा पूरी तरह बदल गया है। अब सवाल यह है कि क्या इससे सरकार की चाल और उसका चरित्र भी बदलेगा?
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