मणिपुर में भीषण संघर्ष चल रहा है। एक लड़ाई मणिपुर की धरती पर हो रही है और दूसरी भारतीय मीडिया के मंच पर। साजिश गहरी है। ग्राउंड पर भी और टेलीविजन स्क्रीन पर भी। बम मणिपुर की घाटी में गिरता है, लेकिन उसका धुआं पहाड़ों से होकर टेलीविजन के स्टूडियो तक पहुंचता है। मणिपुर में जो हो रहा है, वह बेहद दर्दनाक और ख़तरनाक है, लेकिन मीडिया में जो हो रहा है, वह इससे भी अधिक हानिकारक है।
मणिपुर में मैतेई-कुकी संघर्ष पर मीडिया सवालों के घेरे में?
- विश्लेषण
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- 7 Sep, 2024

मणिपुर सरकार ने ड्रोन हमलों, बढ़ती हिंसा और अशांति के बीच 7 सितंबर को राज्य भर के सभी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया है। तो यह स्थिति आख़िर कैसे बनी? जानिए, इसमें मीडिया की भूमिका क्या है।
मीडिया का असर गहरा और दूरगामी होता है। जहाँ एक बम हमले में कुछ लोगों की मौत हो सकती है, वहीं मीडिया की ग़लत रिपोर्टिंग से लाखों लोगों के दिमाग और दिल प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए युद्ध जैसी स्थितियों में मीडिया का निष्पक्ष और तटस्थ रहना न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है। दुर्भाग्य से, वर्तमान में मीडिया का व्यवहार इसके विपरीत है। जो हो रहा है, वह न केवल ग़लत है, बल्कि राष्ट्रीय हितों के भी ख़िलाफ़ है।