गलवान में दिये चीन के इस दर्द को नेहरू को 1962 में मिले दर्द से कम नहीं माना जा सकता। और इस खोखले बयान से झुठलाया भी नहीं जा सकता कि न कोई घुसा था, न घुसा है। नहीं घुसा तो 20 राउंड की बातचीत क्या चाऊमीन का स्वाद तय करने के लिए होती रही है? गलवान में चीनी घुसपैठ पर भाजपा के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के दर्जनों ट्वीट और सरकार की चुप्पी उनकी झप्पी डिप्लोमेसी के चिथड़े उड़ जाने का प्रमाण है। इसीलिए अब मोदी सरकार चीन पर चर्चा कराना तो दूर चीन का नाम तक नहीं लेती। क्या ये कूटनीति है या राष्ट्रीय हितों की अनदेखी?
क्या पीएम मोदी की ‘झप्पी डिप्लोमेसी’ भारत को नये संकटों में धकेल रही है?
- विश्लेषण
- |
- |
- 26 Aug, 2024

पहले तो बिन बुलावे नवाज शरीफ के घर जाकर बिरयानी-झप्पी, फिर मल्लपुरम में चीन से ऐसी गलबहियां कि सखियां भी शर्मा जाएं, और अब रूस-यूक्रेन के साथ दिखावे की पप्पियां – झप्पियां, भारत को नुकसान ज्यादा और लाभ कम दे रही हैं।