विपक्षी दलों के गठबंधन को लेकर बार-बार सवाल उठाए जा रहे हैं कि आख़िर 2024 में पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा? कांग्रेस से भी यही सवाल किया जा रहा है कि जब पीएम पद पर फ़ैसला बाद में होगा तो क्या कांग्रेस पीएम पद पर दावेदारी नहीं करेगी? क्या राहुल गांधी या कोई अन्य कांग्रेसी नेता इसका दावा नहीं करेंगे? मंगलवार को बेंगलुरु में जब 26 विपक्षी दलों की बैठक हुई तो कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीधे-सीधे कह दिया कि कांग्रेस की 'पीएम पद में दिलचस्पी नहीं' है? तो सवाल है कि आख़िर किसमें दिलचस्पी है? क्या वह विपक्षी खेमे से ही किसी दूसरे नेता को पीएम के रूप में स्वीकार करेगी? और यदि वह ऐसा करेगी तो मजबूरी में या फिर 'त्याग' के तौर पर?
इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि बेंगलुरु में संयुक्त विपक्ष की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या कहा। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि खड़गे ने बैठक में कहा, 'मैंने एमके स्टालिन के जन्मदिन पर चेन्नई में पहले ही कहा था कि कांग्रेस को सत्ता या प्रधानमंत्री पद में कोई दिलचस्पी नहीं है। इस बैठक में हमारा इरादा अपने लिए सत्ता हासिल करना नहीं है।'
तो सवाल है कि फिर कांग्रेस का मक़सद क्या है? आख़िर वह क्या हासिल करना चाहती है? खड़गे ने कहा है कि यह लड़ाई हमारे संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए है। खड़गे ने कहा है, 'हम जानते हैं कि राज्य स्तर पर हममें से कुछ लोगों के बीच मतभेद हैं। ये मतभेद इतने बड़े नहीं हैं कि हम इन्हें पीछे न छोड़ सकें और हम आम आदमी और मध्यम वर्ग, युवाओं, गरीबों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के लिए इन मतभेदों को अपने पीछे नहीं छोड़ सकें, जिनके अधिकारों को पर्दे के पीछे चुपचाप कुचला जा रहा है।'
जो बातें मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहीं, क़रीब-क़रीब वही बातें ममता बनर्जी से लेकर, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल जैसे तमाम नेताओं ने कहीं।
तो मुख्य सवाल वही है कि क्या कांग्रेस को पीएम पद में वाक़ई दिलचस्पी नहीं है? क्या नेहरु-गांधी परिवार पीएम पद को लेकर सच में चिंतित नहीं है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस के कार्यकाल को देखा जा सकता है।
2004 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार का गठन होने जा रहा था तो पीएम पद के लिए सोनिया गांधी के नाम की चर्चा थी। लेकिन तत्कालीन विपक्षी दलों ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया। बीजेपी ने तो जोर शोर से कहा कि वह इसका विरोध करेगी। लेकिन इस बीच मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया। विपक्षी पार्टियाँ भौंचक्का रह गईं। मनमोहन सिंह सिर्फ़ पाँच साल के लिए ही पीएम नहीं रहे, बल्कि वह लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए भी उस पद पर रहे।
इससे पहले जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी तब भी गांधी-नेहरू परिवार के बाहर के पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे। वह 1996 तक इस पद पर रहे। फिर आम चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और उनको पीएम पद से हटना पड़ा। 1998 के चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई और तब पार्टी ने सोनिया गांधी को पार्टी की कमान संभालने का आग्रह किया। उन्होंने पहले राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ने से इनकार कर दिया था और वह राजनीति से दूर ही रही थीं। बाद में जब वह पार्टी की अध्यक्ष चुनी गईं तो पार्टी में ही विदेशी मूल के मुद्दे पर उनका विरोध हुआ।
हालाँकि, सोनिया गांधी के नेतृत्व में जब कांग्रेस ने 2004 में बढ़िया प्रदर्शन किया और यूपीए की सरकार बनी तो उन्होंने मनमोहन सिंह को पीएम पद सौंप दिया। 2014 के चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और उसके बाद 2019 में भी कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई। पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकड़ने लगी। कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए। 2019 में हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कह दिया कि इस बार नेहरू-गांधी परिवार से कोई पार्टी का अध्यक्ष नहीं होगा। अब जब हाल ही में कांग्रेस पार्टी में चुनाव हुए तो मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष चुने गए।
अब जबकि विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं तो फिर से इसी संदर्भ में सवाल पूछे जा रहे हैं? विपक्षी एकता तो है, लेकिन पीएम उम्मीदवार कौन होगा? क्या कांग्रेस पीएम पद को छोड़ने के लिए तैयार होगी? इन सब उठते सवालों पर ही मल्लिकार्जुन खड़गे का जवाब आया है- 'पीएम पद में दिलचस्पी नहीं'। विपक्षी दलों ने भी कहा है कि उनका मक़सद पीएम पद नहीं, भारत को बचाना है!
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