अगर भारत के हीं नहीं दुनिया के सबसे अमीरों में शामिल अंबानी या अडानी आज भी पैसे के लिए तमाम “जुगत” करते हैं तो किसी गरीब को कुछ पैसे (तथाकथित रेवड़ी) या अनाज दे कर यह मान लेना कि वह निकम्मा हो जाएगा, प्रकृति के नियमों के विपरीत शोषणकारी सोच है. ये रेवड़ियां गरीब की केवल सांस चला सकती हैं उनकी अन्य मौलिक जरूरतें नहीं पूरी करत सकतीं.
फ्रीबीज़ः मी लार्ड, आपका तर्क गलत है
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025

फ्रीबीज के संदर्भ में किसान-मजदूरों को लेकर की गई सुप्रीम कोर्ट के जज साहब की टिप्पणी कोई बहुत अच्छा संकेत नहीं दे रही है। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह जज साहब की उस टिप्पणी पर एक जरूरी टिप्पणी कर रहे हैं। जानना जरूरी है।