अगर भारत के हीं नहीं दुनिया के सबसे अमीरों में शामिल अंबानी या अडानी आज भी पैसे के लिए तमाम “जुगत” करते हैं तो किसी गरीब को कुछ पैसे (तथाकथित रेवड़ी) या अनाज दे कर यह मान लेना कि वह निकम्मा हो जाएगा, प्रकृति के नियमों के विपरीत शोषणकारी सोच है. ये रेवड़ियां गरीब की केवल सांस चला सकती हैं उनकी अन्य मौलिक जरूरतें नहीं पूरी करत सकतीं.