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एआई पर चीनी सफलता से सीखें

ओपन एआई के सीईओ ऑल्टमेन इन दिनों चीनी डीपसीक से लगे झटके से उबरने के लिए देश-देश घूम रहे हैं. भूलिए नहीं कि ये वही जनाब हैं जिन्होंने दो साल पहले भारत में हीं कहा था कि कोई (चीन या भारत जैसे देश) भूल कर भी एआई बनाने की कोशिश करेगा तो बड़ी असफलता हाथ आयेगी. अब जब भारत आने पर उनकी मुलाकात आईटी मंत्री से हुई तो भारत में उन्हें बहुत “पोटेंशियल” दिखा. उनका कहना था कि एआई के कंज्यूमर के रूप में भारत दूसरा सबसे बड़ा मार्केट होगा.
गलती से सरकार के खैरख्वाहों ने इसे भारत की तारीफ समझ ली. इन नासमझ लोगों ने भारत के लिए ऑल्टमेन के विशेषण “दूसरा सबसे बड़ा मार्केट” को दूसरा सबसे बड़ा भावी एआई उत्पादक मान लिया. दरअसल भारत को अभी उच्च क्षमता वाले प्रोसेसर-चिप्स खरीद कर को उन्हें डेटा एनालिसिस की ट्रेनिंग देनी होगी. कोशिश यह होनी चाहिए कि चीन का उदाहरण ले कर सीखें कि कम पैसे, कम समय, कम क्षमता वाले प्रोसेसर चिप्स से भी कैसे यह सफलता हासिल की जा सकती है. इसके लिए के  चीन ने तीन साल पहले एआई-आधारित क्वांटम कंप्यूटिंग शोध पर 15.3 बिलियन डॉलर खर्च करने का ऐलान किया था जो अमेरिका के इस मद में व्यय का पांच गुना और पूरे यूरोप के खर्च का दो गुना था.
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  चीन के क्या और कैसे किया

ज्ञान की दुनिया निश्छल है. ज्ञान सीखने राम ने लक्ष्मण को रावण के पास भेजा था. चीनी डीपसीक-आर 1 से झल्लाए कुछ अमेरिकी उद्यमी चोरी का आरोप लगा रहे हैं. सच तो यह है कि बेहद कम खर्च, कम बिजली खपत, कम चिप्स के प्रयोग और कम समय में एक ऐसा लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) एआई विकसित करना उनकी सोच और अहंकार से परे है. न भूलें कि चीन ने दिसम्बर में हीं एक रिसर्च पेपर के जरिये इसके संकेत दिए थे लेकिन तब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने “महंगा होगा” कह के नकार दिया था.
न भूलें कि वर्ष 2023 में हीं क्वांटम कंप्यूटिंग बजट बढ़ा कर चीन ने आगामी तकनीकी क्रांति का उद्घोष कर दिया था. और यह भी न भूलें कि न्यूक्लियर फ्यूजन के शोध में चीनी रिएक्टर ने 1000 सेकंड तक प्रतिक्रिया का रिकॉर्ड बना कर ग्रीन एनर्जी सेक्टर में नए युग का ऐलान कर दिया है.
फिर अमेरिका ने तो चीन को वैज्ञानिक ज्ञान रोकने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले सेमीकंडक्टर की आपूर्ति न देने का फैसला किया था. वैसे भी आर-1 एआई मॉडल की ट्रेनिंग, डीपसीक ने एनविडिया के ही दोयम दर्जे के 2000 एच-800 प्रोसेसर चिप्स पर की थी जिसके लिए मेटा को 15,000 प्रथम दर्जे के प्रोसेसर चिप्स की दरकार होती थी. 
भारत अमेरिका के नकारात्मक रवैये से न प्रभावित हो कर एआई मॉडल की दुनिया में आये. बेहद सस्ते में मंगल-मिशन में सफल होने वाले भारतीय वैज्ञानिक हीं थे. एआई मॉडल में भारतीय बुद्धिमत्ता सफल हो सकती है. पहले लार्ज लैंग्वेज मॉडल की जगह एकल लैंग्वेज मॉडल पर आगे बढे.
मुफ्त में उपलब्ध डीपीसीक आर-1 और वी-3 यह सिद्ध कर चुके हैं कि ज्ञान केवल पैसे से पैदा नहीं होता, ना हीं धन की कमी उसके प्रवाह ज्यादा समय तक रोक सकती है बशर्ते देश के वैज्ञानिक मिशन मोड़ में हों. इस एआई के जन्मदाता लियांग वेनफेंग से प्रेरणा लें. “स्टेम” (साइंस, टेक्नोलोजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) ज्ञान में भारतीय किशोर अमरीकियों से आगे हैं.
चीन ने इस ताज़ा और बेहद सस्ता नया एआई लैंग्वेज मॉडल –-डीपसीक-आर 1 --बाज़ार में उतार कर अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया में भूकंप ला दिया है. इस खबर के बाद बेताज एआई बादशाह एनविडिया का शेयर जमीन आ गया और महंगे चैट-जीपीटी, गूगल-जैमिनी और अन्य यूरोपीय प्रयासों के औचित्य पर प्रश्न-चिन्ह लगा गया.
चीन के तकनीकी कौशल को लेकर अमेरिकी उद्यमी हमेशा हिकारत का भाव रखते हैं. चीनी डीपसीक-आर 1 इसी अहंकार का जवाब था जिसने रातों-रात चीनी कंपनियों को धराशायी कर दिया. मार्केट सेंटिमेंट गिरने का कारण था इस नए मॉडल का अमेरिकी मॉडल के मुकाबले मात्र तीन प्रतिशत मूल्य. याने इसकी सेवा लेने पर खर्च नगण्य आयेगा लिहाज़ा पूरी दुनिया इसे इस्तेमाल करेगी. 
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दरअसल अमेरिका ने गूढ़ सेमीकंडक्टर बेचे जाने वाले देशों की लिस्ट में चीन को नहीं रखा था ताकि चीन एआई के दुनिया में शोध न कर सके. चीन ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए चुपचाप दिनरात लग कर एआई पर इस अनूठे शोध को न केवल मुकम्मल किया बल्कि इसे अमेरिकी कंपनियों के तमाम तथाकथित बड़े एआई मॉडल के रेट (यूज रेट) के मुकाबले बेहद सस्ता कर दिया. साथ हीं यह भी सुनिश्चित किया कि डीपसीक मॉडल चीन के बारे में किसी सवाल का जवाब टाल जाये. अब देखना होगा कि अमेरिकी और पश्चिमी दुनिया चीन की इस क्रांतिकारी घोषणा के बाद क्या प्रतिक्रिया देती हैं.
(लेखक एन के सिंह ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए)  के पूर्व महासचिव हैं)
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एन.के. सिंह
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