दुनिया के सबसे खूबसूरत देश माने जाने वाले स्विट्जरलैंड के शहर ज्यूरिख से क़रीब 260 किलोमीटर दूर बर्फ से ढकी पहाड़ों में इस बार जब माइनस सात डिग्री के मौसम में जब पूरे विश्व से उद्योगपति और इकानामिस्ट जुटे तो सबके मन में यही चिंता थी अब आने वाले 25 साल में दुनिया कैसी होगी। दावोस के 21 से 24 जनवरी के प्रवास में मुझे समझ आ गया कि ये सम्मेलन केवल पर्यावण और सतत विकास के नारों के साथ होने वाले बाक़ी सम्मेलनों से कितना अलग है क्योंकि इस सम्मेलन में बात केवल पर्यावरण और विकास की नहीं हो रही थी बल्कि दुनिया भर में बदलते माहौल और चुनौतियों के दायरे में हर बात पर बात होती रही।
दावोस विश्व आर्थिक मंच को क्यों नहीं भुना सका भारत?
- विश्लेषण
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- 29 Jan, 2025

संदीप सोनवलकर
दावोस में दुनिया भर का सबसे बड़ा आर्थिक सम्मेलन होने के बावजूद भारत इस मौक़े का फ़ायदा क्यों नहीं उठा सका? जानिए, आर्थिक सम्मेलन में आख़िर क्या- क्या हुआ।
कोविड जैसी भयानक बीमारी के पाँच साल बाद हो रहे इस सम्मेलन में भी इस बात पर चर्चा होती रही कि कोविड में क्या सिखाया और आगे दुनिया कैसी होगी। ये बात सबने स्वीकार की कि कोविड ने दिखा दिया कि मानवीय ज़िंदगी ही सबसे पहली प्राथमिकता है और इसलिए हर विकास में उसको केंद्र मे रखना ज़रूरी है। इसके साथ ही दुनिया भर में ग्रोथ में आयी कमी। बचत में कमी। महंगाई में तेजी और अमीर-गरीब की खाई के मुद्दे पर भी बात हुई। सबने ये माना कि कोविड के बाद के पांच सालों में दुनिया बहुत बदल गयी है, खासतौर पर वसुधैव कुटुम्बकम या ग्लोबल विलेज के बजाय लोकल से ग्लोबल की बात होने लगी है और हर कोई खुद के नेशन फ़र्स्ट की बात कर रहा है।
संदीप सोनवलकर
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं