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फाइल फोटो

राह बदलकर चंपाई सोरेन जेएमएम का कितना बिगाड़ पाएंगे?

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड की राजनीति में उथल- पुथल का दौर शुरू है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन दल से अलग होते दिखाई पड़ रहे हैं। रविवार को वे दिल्ली पहुंचे हैं। उनके दिल्ली पहुंचते ही अटकलें तेज हैं कि वे बीजेपी के आला नेताओं के संपर्क में हैं और कभी भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।

चंपाई सोरेन के इस रुख से झारखंड की सियासत में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू है और सबकी नज़रें रांची से दिल्ली तक टिकी हैं। सत्तारूढ़ जेएमएम- कांग्रेस के रणनीतिकार भी बनते- बिगड़ते समीकरणों को बारीकी से भांप रहे हैं। जेएमएम कुनबा को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचे, इसे संभालने की कवायद तेज है।

चंपाई सोरेन के इस रुख को उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद उनकी नाराजगी के तौर भी देखा जा रहा है। इसके साथ ही एक सवाल सियासत के केंद्र में है कि चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ने से किसका कितना लाभ और किसका कितना नुकसान। सवाल यह भी उभरा है कि चंपाई सोरेन बीजेपी की मजबूती में काम आएंगे या अपना वजूद बचाएंगे।

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रविवार को ही चंपाई सोरेन ने एक्स पर एक पोस्ट साझा किया था, जिसमें उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए इसकी चर्चा की है कि किन परिस्थितियों में उनके सामने यह नौबत आई है। उन्होंने लिखा है, “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।” हालांकि फिलवक्त चंपाई सोरेन ने यह नहीं स्पष्ट किया है कि वे कौन सा विकल्प चुनने जा रहे हैं।

67 साल के चंपाई सोरेन कोल्हान में आदिवासियों के लिए रिजर्व सरायकेला सीट से छह बार के विधायक हैं। अभी हेमंत सोरेन सरकार में जल संसाधन के साथ उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री पद की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।

झारखंड आंदोलन में भी उनकी अहम भूमिका रही है। साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन के वे विश्वासी भी रहे हैं।

क्या है आदिवासी सीटों का ताना बाना

झारखंड में नवंबर- दिसंबर में विधानसभा का चुनाव संभावित है। 81 सदस्यीय विधानसभा में आदिवासियों के लिए 28 सीटें रिजर्व हैं।

2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इन 28 में से सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी। जबकि आदिवासी इलाक़ों में मिली बड़ी जीत ने जेएमएम- कांग्रेस को सत्ता तक पहुँचाने में अहम भूमिका अदा की।

 

इसी साल हुए लोकसभा चुनावों में भी झारखंड में आदिवासियों के लिए रिजर्व पांच सीटों पर बीजेपी की हार से पार्टी को बड़े सेटबैक का सामना करना पड़ा है। जबकि इन पांच सीटों- सिंहभूम, दुमका, राजमहल में जेएमएम और खूंटी, लोहरदगा में कांग्रेस को मिली जीत से इंडिया ब्लॉक को दम मिला है।

ओवरऑल सभी 14 सीटों पर बीजेपी का वोट शेयर 2019 की तुलना में 51.6 प्रतिशत से नीचे गिरते हुए 44.60 प्रतिशत पर आया है।

अलबत्ता जेएमएम से बगावत कर बीजेपी में शामिल हुईं शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को भी दुमका में जेएमएम से हार का सामना करना पड़ा। सिंहभूम में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी से चुनाव लड़ने वालीं गीता कोड़ा का क़िला भी ढह गया।

चंपाई सोरेन जिस कोल्हान क्षेत्र से आते हैं, वहां विधानसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में इन 14 सीटों में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। जाहिर तौर पर चंपाई सोरेन के बीजेपी में आने से पार्टी को एक बड़ा आदिवासी चेहरा तो मिलेगा, पर चुनाव में बीजेपी को इससे कितनी दमदारी मिलेगी, यह देखने वाली बात होगी।

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चंपाई सोरेन के साथ कोल्हान से ही जेएमएम के कुछ और विधायकों के दल छोड़ने की चर्चा रविवार तक जोरों पर थी, लेकिन खरसांवा से जेएमएम के विधायक दशरथ गागराई, बहरागोड़ा से समीर मोहंती समेत कई विधायकों ने बयान जारी कर कहा है कि वे जेएमएम में पूरी निष्ठा के साथ स्थिर हैं।

कोल्हान में ही चाईबासा से जेएमएम के विधायक दीपक बिरूआ हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री हैं। दीपक बिरूआ की पहचान एक आंदोलनकारी के साथ आदिवासी इलाकों में दमदार और सुलझे नेता के तौर पर रही है।

सिंहभूम लोकसभा सीट से दल की प्रत्याशी जोबा माझी की जीत के लिए दीपक बिरूआ ही खेवनहार के तौर पर उभरे थे। जबकि बीजेपी की उम्मीदवार गीता कोडा ने सिंहभूम में हार के बाद भी चंपाई सोरेन की सरायकेला विधानसभा सीट से बढ़त हासिल की थी।

कोल्हान और संथालपरगना की राजनीति में जेएमएम की सांगठनिक पैठ और तीर- कमान सिंबल के साथ शिबू सोरेन का चेहरा मायने रखता है।

2019 में सत्ता पर काबिज होने के बाद हेमंत सोरेन भी दल के बड़े दारोमदार और इंडिया ब्लॉक के सशक्त चेहरा और रणनीतिकार के तौर पर उभरे हैं।

जेएमएम से अलग होकर किसी आदिवासी नेता ने जेएमएम के सामने बड़ी चुनौती पेश की हो या चुनावों में बड़ा धक्का पहुंचाया हो, कम- से कम कोल्हान और संथाल परगना में इसके भी उदाहरण नहीं के बराबर हैं।

लोकसभा चुनाव में ही संथालपरगना में बोरियो से जेएमएम के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम बगावत कर राजमहल सीट से चुनाव लड़े और जमानत भी नहीं बचा पाए।

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हाल ही में दसवीं अनुसूचि के तहत दल- बदल मामले में लोबिन की सदस्यता समाप्त कर दी गई है। अब लोबिन के सुर भी जेएमएम के खिलाफ और तल्ख हो गए हैं, लेकिन दल को इसकी परवाह नहीं है। पहले ही उन्हें पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन ने निष्कासित तक कर दिया है।

कैसे बदलीं परिस्थितियां

31 जनवरी की रात प्रवर्तन निदेशालय ने कई घंटे की पूछताछ के बाद हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था। इस्तीफा से पहले हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन का नाम नये मुख्यमंत्री के लिए पेश किया। चंपाई सोरेन ने दो फरवरी को झारखंड के 12 वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।

इस बीच झारखंड हाइकोर्ट से जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन जेल से 28 जून को बाहर आए। तीन जुलाई को विधायक दल की बैठक में उन्हें फिर नेता चुना गया। हेमंत सोरेन के राजकाज संभालने के बाद कुछ दिनों तक सबकुछ ठीकठाक चलता रहा, लेकिन हाल के दिनों में इसकी चर्चा होने लगी कि चंपाई सोरेन की हेमंत सोरेन से दूरियां बढ़ रही हैं।

चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से हटाये जाने के बाद से बीजेपी अक्सर हेमंत सोरेन और जेएमएम पर निशाने साधती रही है। अब चंपाई सोरेन ने जब सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की है, तो बीजेपी के नेताओं ने इसे हाथों हाथ लपक सिया है।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी सरीखे नेताओं ने चंपाई सोरेन की तारीफ़ करते दिख रहे हैं।

उधर रविवार को ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संथालपरगना में पाकुड़ से अपनी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना- ‘मुख्यमंत्री मईंयां सम्मान योजना’ की शुरुआत की है। इस योजना के तहत 21 से 50 साल तक की महिलाओं को अगस्त से 1000 रुपए की सहायता दी जा रही है। पाकुड़ की सभा में हेमंत सोरेन ने बीजेपी पर भी जमकर निशाने साधे।

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हेमंत सोरेन ने ये भी आरोप लगाए हैं कि गुजरात, महाराष्ट्र से लोगों को लाकर बीजेपी वाले आदिवासियों, दलितों, पिछड़े, अल्पसंख्यकों के बीच जहर बोने का काम करते हैं। समाज तो छोड़ो, ये घर फोड़ने और पार्टी को तोड़ने के भी काम करते हैं। पैसे से नेता लोग को इधर उधर घसीटने में देरी नहीं लगती। लेकिन हमारी इंडिया सरकार मजबूती से जनता के हितों में काम कर रही है।

उन्होंने यह भी कहा, “झारखंड में चुनाव की घंटी बजने वाली है। लेकिन यह घंटी बीजेपी के हाथों में है। हम तो कहते हैं आज चुनाव करा लो, कल बोरिया- बिस्तर बांध कर भेज देंगे।”

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नीरज सिन्हा
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