टिकटों को लेकर कांग्रेस और भाजपा में बग़ावत की जो स्थिति बनी उसे या तो दोनों पार्टियों के आलाकमानों ने गंभीरता से नहीं लिया या फिर जो भी तनाव क़ायम हुआ है उसे सार्वजनिक नहीं होने दिया गया। चुनाव नतीजों की दृष्टि से विद्रोह के हालात कई सीटों पर गंभीर स्थिति में पहुँच गए हैं। ऐसे ही चलता रहा तो इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ने वाला है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के मुक़ाबले भाजपा को ही ज़्यादा नुक़सान उसके बग़ावतियों से होने वाला है। नाम वापस लेने की आख़िरी तारीख़ तक बत्तीस सीटों (कुल 230) को प्रभावित करने वाले भाजपा के 35 बाग़ी मैदान में थे। यह संख्या काफ़ी बड़ी है।
टिकटों से असंतोष आलाकमान के ख़िलाफ़ विद्रोह की शुरुआत है?
- विश्लेषण
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- 6 Nov, 2023

प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी, दोनों को उनकी ही पार्टियों के तपे-तपाए नेताओं ने लोकसभा चुनावों के पहले से तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। तो क्या विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा?
बात ‘संस्कारधानी’ शहर जबलपुर से शुरू करते हैं। जबलपुर जेपी नड्डा की ससुराल भी है। भूपेन्द्र यादव केंद्रीय मंत्री होने के अलावा एक योग्य अधिवक्ता और विनम्र व्यक्ति भी हैं। मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चले प्रकरण में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। पार्टी के मध्यप्रदेश के लिए चुनाव प्रभारी यादव इस आत्मविश्वास के साथ जबलपुर पहुँचे होंगे कि तैयारियों का जायज़ा लेने के साथ-साथ वे टिकटों को लेकर उत्पन्न हुई नाराज़गी को भी शहर की प्रतिष्ठा और कार्यकर्ताओं की ‘अनुशासनप्रियता’ के आधार पर बातचीत से शांत कर लेंगे। वैसा नहीं हुआ।