पहले लोकसभा में और फिर स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार अपनी सरकार बनाने का दावा करके साफ संकेत दे दिया है कि अपनी तीसरी जीत के लिए मोदी के नेतृत्व में भाजपा वो सारे राजनीतिक प्रयास करेगी जो चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए करना जरूरी होगा। दो बार भारतीय लोकतंत्र के दोनों सबसे बड़े मंचों से प्रधानमंत्री मोदी का ये दावा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए चुनौती भी है और चेतावनी भी। अब मोदी को हटाने के लिए एक साथ आए इंडिया गठबंधन के कांग्रेस समेत 26 दल और उनके नेता मोदी के इस अति विश्वास का मुक़ाबला क्या लोकसभा चुनावों में भी अपने उसी हौसले से करेंगे जैसे ये दल अपने-अपने राज्यों के विधानसभा चुनावों में करते आए हैं। क्योंकि यह कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी का जादू कई बार राज्यों की विधानसभा चुनावों में भले ही उतना नहीं चल पाया जितना लोकसभा चुनावों में अब तक चला है।
सदन में बहस के दौरान विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों और सवालों का जवाब देते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपने संबोधन में कहा कि 2024 में वह तीसरी बार लगातार अपनी सरकार बनाएंगे और विपक्ष अगली बार 2028 में जब अविश्वास प्रस्ताव लाए तो पूरी तैयारी से लाए। यह उनका आत्मविश्वास ही है जो न सिर्फ भाजपा बल्कि पूरे एनडीए को ताकत देता है। वहीं अपनी सदस्यता बहाल होने के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी मणिपुर की हिंसा को भारत माता पर हमला बताते हैं तो यह उनका हौसला ही है कि वह राष्ट्रवाद की उस पिच पर बैटिंग करने जा रहे हैं जिस पर भाजपा और पूरा संघ परिवार अपना एकाधिकार समझता है।
राहुल गांधी का यह हौसला अकेले सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि ‘इंडिया’ गठबंधन के कांग्रेस समेत उन सभी 26 दलों और उनके नेताओं का है जिनमें एक भी पूरे देश में अकेले भाजपा से टक्कर लेने की स्थिति में नहीं है। यहां तक कि 55 सालों तक देश पर राज कर चुकी कांग्रेस भले ही अखिल भारतीय दल हो लेकिन अकेले वह भी भाजपा से नहीं भिड़ सकती है। इसलिए एक तरफ़ सत्ताधारी भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन है जिसके पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत और लोकप्रिय नेता, अमित शाह जैसा चौबीस घंटे राजनीति करने वाला रणनीतिकार, भारतीय जनता पार्टी जैसा संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों का पूरा तंत्र, समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज, नौ साल से भी ज्यादा केंद्रीय सत्ता का बल, संसाधन और सरकार की उपलब्धियां हैं। इससे भाजपा और एनडीए को वह आत्मविश्वास मिलता है जिससे वह तीसरी बार लगातार केंद्र में अपनी सरकार बनने का दावा कर सकते हैं।
दूसरी तरफ़ कांग्रेस के साथ आ जुटे 26 क्षेत्रीय दलों का नवोदित गठबंधन है जिसे इंडिया नाम देकर इस गठबंधन ने भाजपा के राष्ट्रवाद के मुकाबले अपनी देशभक्ति को खड़ा करने का हौसला दिखाया है। इस गठबंधन में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस है जिसने लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल में जबर्दस्त चुनावी जीत दर्ज करके अपनी ताकत साबित की है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी है जिसने दिल्ली में तीन बार अपनी फतह का झंडा लहराया और अब पंजाब में तूफानी जीत दर्ज करके सरकार पर काबिज है। धुर दक्षिण में एम.के. स्टालिन की द्रमुक है जिसने न सिर्फ विधानसभा चुनावों में भाजपा की सहयोगी अन्ना द्रमुक को शिकस्त दी बल्कि उसके पहले 2019 के लोकसभा चुनावों में भी तमिलनाडु में एनडीए के विजय रथ को रोका था। बिहार में मंडल राजनीति के गर्भ से निकले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राजद और जद(यू) हैं जिन्होंने मिलकर 2015 में जब भाजपा और नरेंद्र मोदी का विजय अभियान चरम पर था, तब एनडीए को करारी शिकस्त दी थी।
पिछले दिनों के सियासी घटनाक्रम भी इसका संकेत हैं कि चाहे इस साल के आखिर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हों या अगले साल अप्रैल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव, सत्ता पक्ष एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बीच भीषण रण होने की पूरी संभावना है।
विपक्षी दलों की इस नवोदित एकजुटता से भाजपा को फिर पुराने एनडीए को सक्रिय करने की ज़रूरत आ पड़ी और जिस दिन विपक्षी दलों की बैठक बेंगलूरु में हो रही थी, उसी दिन दिल्ली में एनडीए की बैठक बुलाई गई जिसमें विपक्ष के 26 के मुकाबले 38 दलों का गठबंधन पेश किया गया।
एनडीए की ताकत, जिसका जिक्र पहले हो चुका है, उसके अलावा आने वाले दिनों के कुछ ऐसे घटनाक्रम हैं जिनसे भाजपा और पूरे एनडीए को भरोसा है कि 2024 के लिए उसके पक्ष में माहौल बन जाएगा। भाजपा नेताओं के मुताबिक पहला है सितंबर में होने वाला जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन, जो भारत के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक नेता की ऐसी छवि बनाएगा जिसके सामने विपक्ष और उसके सारे नेता बौने साबित होंगे। पूरा देश मोदीमय होगा और इसका चुनावी लाभ भाजपा और एनडीए को मिलेगा। दूसरा बड़ा और ऐतिहासिक आयोजन अगले साल 21 से 24 जनवरी के बीच अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भव्य उद्घाटन समारोह का है। आम चुनावों से सिर्फ तीन महीने पहले होने वाला है यह आयोजन। भाजपा के रणनीतिकारों का दावा है कि ये दोनों आयोजन अकेले भाजपा को ही लोकसभा की तीन सौ से ज्यादा सीटें जितवाने में कामयाब होंगे। भाजपा और एनडीए को यह भी भरोसा है कि जब चुनाव होंगे और विपक्ष के पास मोदी के मुकाबले कौन, इस सवाल का जवाब नहीं होगा। फिर देश में अस्सी करोड़ से भी ज्यादा लोगों को जो मुफ्त राशन मिल रहा है और केंद्र सरकार की अनेक योजनाओं- उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि का लाभ जिन्हें मिला है, उससे एक लाभार्थी वर्ग तैयार हुआ है जो भाजपा का एक नया जनाधार तैयार हो गया है। यह बात भी एनडीए के हक में जाएगी। साथ ही भाजपा और उसके सहयोगी दलों को लगता है कि ‘इंडिया’ गठबंधन के 2024 तक एकजुट बने रहने में संदेह है। ऐसा होने पर विपक्ष की कमर ही टूट जाएगी।
दूसरी तरफ़ विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन को अपने सामाजिक समीकरणों और मुद्दों पर भरोसा है।
जहां तक अंतर्विरोधों और सीटों के बंटवारे में रस्साकसी की बात है तो यह समस्या ‘इंडिया’ गठबंधन और एनडीए दोनों में है। ‘इंडिया’ गठबंधन में अगर कांग्रेस के साथ दिल्ली पंजाब में आम आदमी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और महाराष्ट्र में एनसीपी शिवसेना के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच हैं, तो एनडीए में बिहार में भाजपा को जीतनराम मांझी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और पशुपति पारस के बीच सीट बंटवारे का मसला सुलझाना है। महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के बीच सीटों का तालमेल कैसे सुलझाएगी यह एक सवाल है। लेकिन एनडीए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे शीर्ष नेता हैं जिनसे पूरे एनडीए को ऊर्जा और शक्ति मिलती है। वह सत्ता का केंद्र होने के साथ-साथ लोकप्रियता का स्रोत भी हैं जो एनडीए की एक बड़ी ताकत है। इसलिए एनडीए के घटक दल थोड़ी बहुत खींचतान के बाद अमित शाह और जेपी नड्डा द्वारा सुझाए गए सीट बंटवारे को मान लेंगे क्योंकि भाजपा और मोदी की छाया से बाहर जाकर चुनाव मैदान में उतरना उनके वश की बात नहीं है। जबकि इंडिया गठबंधन ऐसे नेताओं का समूह है जो अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में एनडीए के मुकाबले सबसे बड़ी ताक़त हैं और कांग्रेस उनके प्रभाव क्षेत्र में बेहद कमजोर है।
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