दुनिया साइबर-एआई क्रांति की नींव रख रही है, और भारत सोचने का ठेका विदेशी फर्मों को देकर मस्जिदों के नीचे मंदिर और औरंगज़ेब की कब्र में अपना गौरव तलाश रहा है। न AI से अमेरिका-भारत का नारा सफल हो पाया और न Artificial Intelligence को भारत "अपनी आई" यानी माई बना पाया। पढ़िये इनोवेशन में पिछड़ते भारत की दास्तान।
AI जैसी तरक्की कर रहीं विदेशी फ़र्म और ‘विश्व गुरु’ कब्र खोदने में व्यस्त?
- विश्लेषण
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- 28 Mar, 2025

जब विदेशी कंपनियां AI और तकनीक में नए आयाम छू रही हैं, तब भारत में विकास की बजाय नकारात्मक बहसें और विवाद क्यों हावी हैं? जानिए टेक्नोलॉजी की इस होड़ में भारत कहां खड़ा है।
Google की पैरेंट कंपनी Alphabet ने हाल ही में जब $32 बिलियन में इसराइली साइबर सुरक्षा कंपनी Wiz को खरीदा, तो दुनिया भर की टेक इंडस्ट्री में हलचल मच गया। यह न सिर्फ इसराइल के लिए सबसे बड़ा टेक-एक्ज़िट है, बल्कि इससे साफ़ है कि अगली वैश्विक क्रांति—साइबर सिक्योरिटी, एआई और क्लाउड टेक्नोलॉजी में होने वाली है।
लेकिन भारत कहां खड़ा है?
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के $52.7 बिलियन के CHIPS and Science Act पर बहस हो रही है, यूरोप में AI आचार संहिता के तीसरे मसौदे पर चर्चा हो रही है, चीन AI-निर्मित सामग्री पर अनिवार्य लेबलिंग लागू कर रहा है, जापान अपने AI नैतिक ढांचे को सुदृढ़ कर रहा है, और कज़ाखस्तान एआई में मानवीय पर्यवेक्षण को प्राथमिकता दे रहा है, तो भारत संभल में मस्जिदों पर तिरपाल डालने, महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र खोदने और शिंदे की गद्दारी के बहस में उलझा है। भारत अपना वक्त ChatGPT की लैब बनाने में क्यों नहीं लगा रहा?