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इस तरह हमने सोवियत संघ के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए चरमपंथी गुटों को तैयार किया था, उस समय जिहादियों को हीरो समझा जाता था। जब सोवियत संघ 1989 में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर चला गया और उसके बाद अमेरिका भी छोड़ कर चल गया, और हमारे साथ ये गुट रह गए।
इमरान ख़ान, प्रधानमंत्री, पाकिस्तान
क्या है अल क़ायदा?
सुन्नी इसलाम के कट्टरपंथी सोच बहावी या सलाफ़ी दर्शन से प्रभावित इस संगठन की स्थापना 1988 में की गई थी। इसका मक़सद निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा यानी पैगंबर मुहम्मद के बताए नियमों के आधार पर पूरी दुनिया में इसलामी राज स्थापित करना है। यह यहूदियों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ है। अफ़ग़ानिस्तान से लेकर मध्य-पूर्व होते हुए दुनिया के अलग-अलग इलाक़ों में इसकी शाखाएँ फैल गईं, यह अफ़्रीका और रूस तक फैल गया और हज़ारों लोग इससे जुड़ गए। इसका पहला और अब तक का सबसे बड़ा नेता ओसामा बिन लादेन था, जो 1988 से लकर 2011 तक रहा। उसके बाद लादेन के दोस्त और रिश्तेदार अयमान अल-जवाहिरी ने कमान संभाली और वह अब तक इसका सरगना है।
दोस्त कैसे बना दुश्मन?
अल क़ायदा ने 1979 से लेकर 1989 तक अफ़ग़ानिस्तान में रूस- समर्थित सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, उनके ठिकानों पर हमले करता रहा, उन्हें जान-माल का नुक़सान पहुँचाता रहा। इसकी मुख्य माँग थी कि सोवियत सेना अफ़गानिस्तान छोड़ कर चली जाए।सोवियत संघ के 1989 में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर चले जाने के बाद इस संगठन ने अमेरिका की ओर रुख किया और यह पूरी दुनिया में जहाँ-तहाँ अमेरिकी ठिकानों पर हमले करता रहा।
9/11 हमला
अल क़ायदा का सबसे बड़ा और घातक 9 सितंबर 2001 को हुआ। इसके लोगों ने अमेरिका में दो हवाई जहाज़ों का अपहरण कर उन्हें न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो विशाल भवनों से टकरा दिया। इसमें 2,977 लोग मारे गए, जिनमें 2,507 नागरिक, 343 आग बुझाने वाले दस्तों के लोग, 72 पुलिस वाले और 55 सुरक्षा बलों के लोग शामिल थे। एक हवाई जहाज़ का अपहरण कर पेंटागन की ओर मोड़ा गया, पर उसके पहले ही ध्वस्त कर दिया गया, एक दूसरे जहाज़ का अपहरण कर ह्वाईट हाउस की ओर बढ़ाया गया, पर उसके पहले ही वह क्रैश कर गया।
अमेरिकी प्रतिक्रिया
इससे बेहद परेशान और दुखी अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर ने इसे पहली बार 'इसलामी आतंकवाद' क़रार दिया और उसके ख़िलाफ़ क्रूसेड यानी धर्मयुद्ध का एलान कर दिया। उसके बाद अमेरिकी फ़ौज अफ़ग़ानिस्तान पहँची, वहाँ बड़े पैमाने पर अल क़ायदा के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ा गया। इसमें पाकिस्तान पर यह कह कह दबाव डाला गया कि यदि वह उसमें मदद नहीं करेगा तो उस पर भी हमला किया जा सकता है।
तत्कालीन अमेरिकी उप-विदेश मंत्री रिचर्ड आर्मिटाज ने पाकिस्तान से कहा था, 'यदि आपने हमारे साथ सहयोग नहीं किया तो हम आप पर बमबाजी कर आपको स्टोन एज यानी पाषाण युग में पहुँचा देंगे।'
तालिबान के ख़िलाफ़ पाकिस्तान
तत्कालीन पाकिस्तानी प्रशासन जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ अमेरिका को सहयोग करने पर तैयार हो गए। उसके बाद आतंकवादियों के साथ लड़ाई में पाकिस्तान के कई लोग मारे गए। अमेरिकी सेना ने बड़ा अभियान चला कर अल क़ायदा को बेहद कमज़ोर कर दिया और उसे अफ़ग़ानिस्तान की पहाड़ियों तक समेट दिया। इसे ही याद करते हुए इमरान ख़ान ने सोमवार को न्यूयॉर्क में कहा :“
9/11 के बाद हम आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका के साथ जुड गए, हमसे यह उम्मीद की गई कि हम उन गुटों के ख़िलाफ़ लड़ें, जिन्हें हमने ही तैयार किया था। पहले इन्हें कहा गया था कि विदेशी सेना के ख़िलाफ़ लड़ना है और जब रूसी चले गए और अमेरिकी आ गए तो उन्हें आतंकवादी कहा जाने लगा।
इमरान ख़ान, प्रधानमंत्री, पाकिस्तान
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के अनुसार यह बड़ी गलती थी। उन्होंने कहा, 'यह बहुत बड़ी भूल थी। पाकिस्तान को वह आश्वासन देना ही नहीं चाहिए था, जो वह पूरा नहीं कर सकता था।'
सवाल यह उठता है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री आज इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?
बदहाल पाकिस्तान!
इमरान ख़ान जिस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, देश ज़बरदस्त आर्थिक बदहाली से गुजर रहा था। उसके पास कर्मचारियों के वेतन देने तक के पैसे नहीं थे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पैसे देने से इनकार कर दिया था, चीन बकाया के पैसे माँग रहा था, विदेशी मदद सूख रहा था, अमेरिका ने हाथ खींच लिए थे।
सबसे बड़ी बात यह थी कि पाकिस्तान की छवि आतंकवाद को समर्थन देने वाले राज्य की बन गई थी। इसी समय और इसी कारण इस पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की काली सूची में डाले जाने का ख़तरा मँडराने लगा, क्योंकि यह आतंकवादियों को मिलने वाली पैसे को रोकने में नाकाम था।
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