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मालदीव में चीन समर्थक नेता की पार्टी की ज़बर्दस्त जीत हुई है। पीएनसी ने 93 सदस्यीय पीपुल्स मजलिस में 60 से अधिक सीटें हासिल कीं। यह पार्टी मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी है। मुइज्जू वही शख्स हैं जो सत्ता में आने से पहले से ही भारत के ख़िलाफ़ जहर उगलते रहे थे और सत्ता में आने के बाद भारत से रिश्ते ख़राब करते जा रहे हैं। उन्होंने मालदीव से भारतीय सैनिकों को वापस भेज दिया है और वह भारत के साथ समझौतों को ख़त्म कर रहे हैं। वह चीन की यात्रा के बाद से भारत के ख़िलाफ़ और भी आक्रामक नज़र आ रहे हैं।
राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू का रवैया कैसा रहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर चुनाव में क्या हुआ है। मुइज्जू की पार्टी ने रविवार के महत्वपूर्ण संसदीय चुनाव में 60 से अधिक सीटें जीतकर संसद में सर्वोच्च बहुमत हासिल किया। इस चुनाव को चीन समर्थक मुइज्जू के लिए एक अग्निपरीक्षा के रूप में देखा जा रहा था।
sun.mv समाचार पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, पीएनसी ने 90 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव लड़ा, जबकि मुख्य विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने 89 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव लड़ा था। इसमें कहा गया है कि प्रारंभिक परिणामों के अनुसार, मुइज्ज़ू के नेतृत्व वाली पीएनसी ने 93 सदस्यीय पीपुल्स मजलिस में 60 से अधिक सीटें हासिल कीं, जो संसद में लगभग दो-तिहाई बहुमत है। मुख्य विपक्षी एमडीपी को बड़ा नुकसान हुआ, जिसका पिछले चुनावों में शहरों पर दबदबा था। प्रारंभिक नतीजे बताते हैं कि पीएनसी ने माले सिटी, अड्डू सिटी और फुवहुमुल्लाह सिटी में अधिकांश सीटें हासिल कीं।
इस जीत के साथ ही अब मुइज्जू राष्ट्रपति के रूप में हैं और संसद में भी उनकी पार्टी की ही बहुमत है। इस चुनाव नतीजों के बाद अब मुइज्जू के लिए बड़े फ़ैसले लेना और भी आसान हो जाएगा।
पर्यटन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने वाले मालदीव के मंत्रियों की अपमानजनक टिप्पणियों के बाद दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण राजनयिक संबंध और भी बिगड़ गए थे।
नवंबर 2023 में मालदीव के नए राष्ट्रपति बने मुइज्जू ने भारत के साथ संबंधों को कम करने और चीन के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिए अभियान चलाया हुआ है। उन्होंने आधिकारिक तौर पर भारत से देश में तैनात सैन्य कर्मियों को वापस लेने का अनुरोध किया था। अक्टूबर महीने में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद मुइज्जू ने कहा था कि लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में हो और विदेशी सैनिकों को मालदीव की ज़मीन से जाना होगा।
भारत मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल के लिये सबसे बड़ी संख्या में प्रशिक्षण देता है और उनकी लगभग 70% रक्षा प्रशिक्षण ज़रूरतों को पूरा करता है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौसैनिकों और एयरफ़ोर्स कर्मियों की मौजूदगी रही है। नवंबर 2021 में मालदीव नेशनल डिफेंस फ़ोर्स ने संसदीय कमिटी से कहा था कि मालदीव में कुल 75 भारतीय सैन्यकर्मी मौजूद हैं।
वैसे, मालदीव की सुरक्षा में भारत की बेहद अहम भूमिका रही है। 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेजकर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। 2018 में जब मालदीव के लोग पेय जल की समस्या से जूझ रहे थे तो मोदी सरकार ने पानी भेजा था। इसके बाद भी इसने मालदीव को कई बार आर्थिक संकट से निकालने के लिए क़र्ज़ भी दिया। लेकिन अब मालदीव का रुख काफी बदल गया है। सवाल है कि ऐसा क्यों?
मुइज्जू को चीन की ओर झुकाव वाला नेता माना जाता है। वह इससे पहले राजधानी माले शहर के मेयर रहे थे और तभी से वे चीन के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति सोलिह 2018 में राष्ट्रपति चुने गए थे। मुइज्जू ने उनपर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारत को देश में मनमर्जी से काम करने की छूट दी है। सोलिह के बाद जब मुइज्जू सरकार आई तो उन्होंने भारत को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया।
सैनिकों को हटाने के लिए कहने के बाद मालदीव की मुइज्जू सरकार ने देश के हाइड्रोग्राफिक सर्वे पर भारत के साथ पिछली सरकार के समझौते को आगे नहीं बढ़ाने का फ़ैसला किया। कहा जा रहा है कि मालदीव भारत के साथ 100 ऐसे समझौते की समीक्षा कर रहा है।
इस बीच भारत की विदेश नीति को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पाकिस्तान पहले से ही चीन के पाले में है। श्रीलंका भी चीन की राह पर है! फिर बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे भारत के विश्वसनीय पड़ोसी चीन के क़रीब दिखने लगे। और अब मालदीव से भारत के संबंध उस तरह के अच्छे नहीं रहे। मालदीव भारत का अकेला पड़ोसी नहीं है जहाँ चीन लगातार सेंध लगा रहा है। भारत के भरोसेमंद पड़ोसी रहे बांग्लादेश, नेपाल और भूटान तक में वह दखल बढ़ा रहा है।
भारत का सबसे भरोसेमंद पड़ोसी भूटान भी अब चीन के क़रीब जाता हुई दिख रहा है। भूटान के विदेश मंत्री की हालिया चीन यात्रा के बाद अटकलें तेज़ हैं कि दोनों देश दशकों से चल रहे सीमा विवाद को ख़त्म करने के क़रीब पहुँच गए हैं। इसके भी संकेत मिले हैं कि दोनों देश राजनयिक संबंध स्थापित कर सकते हैं। चीन और भूटान के बीच समझौते का मतलब होगा कि भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। ऐसा इसलिए कि इसका असर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर पड़ सकता है। इसको लेकर भारत और चीन के सैनिकों के बीच कई बार आमना-सामना हुआ है।
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