पाकिस्तान में क्या सत्ता बदलेगी? विरोध प्रदर्शन के माध्यम से प्रधानमंत्री इमरान खान को हटाने में विफल रहने के बाद विपक्षी दलों ने अब नेशनल असेंबली में उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के पक्ष में कई दल सामने आए हैं। यह इमरान ख़ान के लिए कितना बड़ा सिरदर्द है, यह इससे समझा जा सकता है कि उन्होंने विरोधियों पर हमला बोला और इस बीच वह बोल बैठे कि वह आलू टमाटर का भाव जानने के लिए राजनीति में नहीं आए हैं।
बहरहाल, उनके ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, उनके बेटे बिलावल भुट्टो-जरदारी के नेतृत्व में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) नाम के एक संयुक्त विपक्षी समूह द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं।
पीडीएम का नेतृत्व जमीयत-ए-उलमा-ए-इसलाम यानी जेयूआई के मौलाना फजलुर रहमान कर रहे हैं और इसमें तीन बार के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुसलिम लीग (पीएमएल-एन) के साथ-साथ छोटे पश्तून और बलूच राष्ट्रवादी दल भी शामिल हैं। संयुक्त विपक्षी समूह पीडीएम ने मूल रूप से पहले सड़कों पर आंदोलन और संसदीय पैंतरेबाज़ी के ज़रिए इमरान खान को बाहर करने की कोशिश की थी।
विपक्षी दलों के पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के बाद इमरान ख़ान सरकार पर बड़े ख़तरे का साया था। कई बार तो तख्ता पलट के कयास भी लगाए गए थे। लेकिन सेना ने इमरान का साथ दिया और उस संकट को टाल दिया। माना जाता है कि इमरान ख़ान सेना के समर्थन से ही शीर्ष पद पर काबिज हुए हैं और वह वहाँ बने हुए भी हैं।
वैसे, तो कहा जाता है कि सेना इमरान को कुर्सी पर बनाए रखना चाहती है, लेकिन कुछ महीने पहले ऐसे हालात भी बने थे जिसमें इमरान और सेना आमने सामने आ गए थे। तब मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि इमरान ख़ान की हुक़ूमत और फ़ौज़ में घमासान छिड़ गया है और इमरान की कुर्सी पर बड़ी मुसीबत आ गयी है।
इमरान ख़ान की हुकूमत और फ़ौज़ के बीच ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के चीफ़ की ताजपोशी को लेकर अक्टूबर महीने में जबरदस्त जंग छिड़ गई थी।
टकराव के बाद इमरान ख़ान को पीछे हटना पड़ा था और लेफ़्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम के आईएसआई के नये चीफ़ होने का नोटिफ़िकेशन जारी करना पड़ा था। उन्हें लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद की जगह पर नियुक्त किया गया था।
कहा जाता है कि ऐसे मामलों और घटनाक्रमों के बाद भी इमरान और सेना के बीच संबंध घनिष्ठ बने हुए हैं। इसी बीच विपक्षी दल इमरान को अपदस्थ करने के लिए संसदीय रास्ता अपना रहे हैं। लेकिन यह रास्ता भी उतना आसान नहीं है।
इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार के चार प्रमुख गठबंधन सहयोगियों ने अभी तक उनके ख़िलाफ़ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर अपना रुख तय नहीं किया है। हालाँकि, इनमें से एक ने समर्थन के बदले में सरकार को कथित तौर पर 'ब्लैकमेल' किया है, जिससे सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई पार्टी की संसद में महत्वपूर्ण मतदान से पहले समस्या बढ़ गई है।
इसी बढ़ी हुई समस्या को इमरान ख़ान के बयान में भी देखा जा सकता है जब वह कहते हैं कि वह आलू और टमाटर के दाम जानने राजनीति में नहीं आए हैं। इमरान ने पंजाब के हाफिजाबाद शहर में एक राजनीतिक रैली में अपने समर्थकों से कहा कि देश को उन लोगों को खिलाफ खड़ा होना चाहिए, जो पैसे के जरिए सांसदों की अंतरात्मा खरीदकर उनकी सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं।
इस दौरान इमरान ने कहा, 'पाकिस्तान मेरे कार्यकाल में एक महान देश बनने जा रहा है। मेरी सरकार की तरफ से घोषित किए गए इन्सेन्टिव्स का परिणाम जल्द ही मिलने लगेगा।' क्रिकेटर से राजनेता बने 69 वर्षीय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा, 25 साल पहले मैंने देश के युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए राजनीति से जुड़ने का निर्णय लिया था। मुझे इससे कोई निजी लाभ नहीं हुआ है, क्योंकि मेरे पास पहले से ही जिंदगी में वह सब कुछ था, जिसका एक आदमी सपना देखता है। इस तरह इमरान अपने भाषणों से लोगों को अपने समर्थन में खड़े होने के लिए कह रहे हैं। ऐसा इसलिए कि उन्हें फिर से विपक्षी दलों के आंदोलन जैसे हालात का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इस बार संसद के अंदर। सवाल है कि इमरान ख़ान इस संकट से कैसे निपटते हैं और सेना किस हद तक उनके साथ आता है, काफी कुछ इस पर भी निर्भर करेगा।
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