मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वो अपनी सरकार को आगाह करे, बताए कि क्या गलत हो रहा है और क्या नहीं होना चाहिए। इजराइल के बड़े अखबार हारेत्ज़ ने यही जिम्मेदारी निभाई है। इजराइली अखबार हारेत्ज़ के संपादकीय को सत्य हिन्दी पर उसके पाठकों की जागरूकता के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। पाठक इस बात को भी समझने की कोशिश करें कि मीडिया की आजादी किसी देश और उसकी जनता के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती है।
सिमचट तोराह त्यौहार के मौके पर इज़राइल पर जो आपदा आई है, उसके लिए साफ तौर पर एक व्यक्ति जिम्मेदार है, वो हैं- बेंजामिन नेतन्याहू। प्रधानमंत्री जो सुरक्षा मामलों में अपने लंबे राजनीतिक अनुभव और ज्ञान पर गर्व करते रहे है, उन खतरों की पहचान करने में पूरी तरह से नाकाम रहे। उनका पूरा ध्यान अपनी सरकार बनाने पर था। उन्होंने अपने दो खास बेजेलेल स्मोट्रिच और इटमार बेन-गविर की नियुक्ति करते समय उस विदेश नीति को अपनाया जिसने खुले तौर पर फिलिस्तीनियों के अस्तित्व और अधिकारों की अनदेखी की।
अखबार ने आगे लिखा है- यकीनन नेतन्याहू अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश करेंगे। वो सेना, सैन्य खुफिया और शिन बेट सुरक्षा सेवा के प्रमुखों पर दोष डालेंगे। जिन्हें अपने पूर्व के उत्तराधिकारियों की तरह यह अंदाजा नहीं था कि योम-ए-किप्पुर त्यौहार के मौके पर हमास का हमला हो जाएगा। हमले की मामूली संभावना की वजह से तैयारी की जरूरत महसूस नहीं की गई।
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उन्होंने दुश्मन और उसकी आक्रामक सैन्य क्षमताओं को कम करके आंका। लेकिन आने वाले दिनों में, जब इज़राइल रक्षा बलों पर गहराई से नजर डाली जाएगी और खुफिया विफलताएं सामने आएंगी, तो उन्हें बदलने और हालात का आकलन करने की उचित मांग जरूर उठेगी।
बहरहाल, सैन्य और खुफिया नाकामी नेतन्याहू को पूरी जिम्मेदारी और संकट से मुक्त नहीं कर सकती है, क्योंकि वो इजराइली विदेश और सुरक्षा मामलों के प्रमुख हैं, जो सारे फैसले करते हैं। नेतन्याहू इस भूमिका में कोई नौसिखिया भी नहीं हैं, जैसे एहुद ओलमर्ट दूसरे लेबनान युद्ध में थे। न ही वह सैन्य मामलों में अज्ञानी है, जैसा कि 1973 में गोल्डा मायर और 1982 में मेनाकेम बेगिन साबित हुए थे।
नेतन्याहू ने नेफ्ताली बेनेट और याइर लैपिड के नेतृत्व वाली अल्पकालिक "सरकार" द्वारा अपनाई गई फिलिस्तीनी नीति को ही आगे बढ़ाया। जिसका मकसद फिलिस्तीनी राष्ट्रीय आंदोलन को ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में कुचलना था। यह इजराइली जनता को भी स्वीकार होता।
हारेत्ज़ ने लिखा है- अतीत में, नेतन्याहू ने खुद को एक सतर्क नेता के रूप में प्रचारित किया, जो युद्ध और इज़राइली लोगों का खून खराबा नहीं चाहता था। लेकिन पिछले चुनाव में अपनी जीत के बाद, उन्होंने इस सावधानी को "पूरी तरह से दक्षिणपंथी सरकार" की नीति में बदल दिया। इसके बाद उन्होंने ओस्लो-परिभाषित क्षेत्र कुछ हिस्सों में फिलिस्तीनियों के सफाए, वेस्ट बैंक में आक्रामक कार्रवाई को अंजाम दिया। बाद में इसमें हेब्रोन पहाड़ियाँ और जॉर्डन घाटी भी शामिल कर ली गई।
नेतन्याहू की नीतियों में यहूदी बस्तियों का बड़े पैमाने पर विस्तार और अल-अक्सा मस्जिद के पास टेम्पल माउंट पर यहूदियों की उपस्थिति को बढ़ाना भी शामिल हो गया। इसके बाद सउदी अरब के साथ एक शांति समझौते का दावा किया जाने लगा। ऐसा समझौता, जिसमें फिलिस्तीनियों को कुछ भी नहीं मिलने वाला है। उनके नेतृत्व में "दूसरा नकबा" की बातें होने लगीं। जैसा कि उम्मीद थी, सबसे पहले वेस्ट बैंक में तनाव फैलने के संकेत मिले, जहाँ फ़िलिस्तीनियों पर कब्जाधारी इज़राइली की बड़ी-बड़ी कार्रवाई होने लगी। हमास ने शनिवार को इसी मौके का फायदा उठाकर अपना हैरान कर देने वाला हमला किया।
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सबसे बड़ी बात यह है कि हाल के वर्षों में इजराइल पर जो खतरा मंडरा रहा था, वो सामने आ गया। एक प्रधानमंत्री जिसे भ्रष्टाचार के तीन मामलों में दोषी ठहराया गया हो वो देश के मामलों की देखभाल नहीं कर सकता है। उसे राष्ट्र हित के नाम पर संभावित सजा और जेल में बिताने वाले समय से नहीं बचाया जा सकता।
अंत में हारेत्ज़ ने लिखा है- नेतन्याहू के नेतृत्व में इस भयानक गठबंधन की स्थापना और न्यायिक तख्तापलट का नतीजा सामने है, जिसके जरिए सेना और खुफिया विभाग के बड़े अधिकारियों को राजनीतिक विरोधी मानते हुए, कमजोर कर दिया गया। इसकी कीमत पश्चिमी नेगेव में हमले से लहूलुहान पीड़ितों द्वारा चुकाई गई। यहां पश्चिमी नेगेव का मतलब है, दक्षिणी इजराइल का वो इलाका, जहां हमास ने सबसे ज्यादा हमले किए हैं और सबसे ज्यादा लोग दक्षिणी इजराइल में ही मारे गए हैं।
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