नेतन्याहू की कैबिनेट ने मंगलवार को इस सौदे को स्वीकार किया। लेबनानी संसद बुधवार सुबह समझौते पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। हिज़्बुल्लाह नेतृत्व, जो समझौता वार्ता में शामिल नहीं था, ने पिछले सप्ताह ही संकेत दिया था कि यदि इसराइल लेबनान पर हमला करना बंद कर दे और इस देश की संप्रभुता का सम्मान करे तो समूह युद्धविराम समझौते को स्वीकार कर लेगा। यानी इस समझौते में इसराइल को ही झुकना पड़ा है। हालांकि पश्चिमी मीडिया इस बात को रेखांकित नहीं कर रहा है।
बेरूत में अमेरिकी विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित विश्लेषक रामी खौरी ने अल जज़ीरा को बताया कि इसराइल और लेबनान के बीच युद्धविराम समझौते पर "बहुत सावधानी से काम किया गया है" और इसलिए कम से कम शुरुआती चरणों में सफल होने की उम्मीद की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सौदा लंबी अवधि तक कायम रहेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि "क्या लेबनानी लोग और इसराइली लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है।" यानी न तो हिजबुल्लाह इसराइलियों को मारे और न ही इसराइल लेबनानी लोगों पर हमले करे। उन्होंने कहा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या यूएसए, फ्रांस और यूके "अपने औपनिवेशिक तरीकों को छोड़ने और यह सुनिश्चित करने के लिए काम करने के लिए तैयार हैं कि लेबनानी और इसराइल दोनों एक-दूसरे के लिए सुरक्षित रहें ... सीमा पर कड़ी निगरानी हो और शांति बहाली, राहत कार्यों के लिए संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियां भी जारी रहे।"
हालांकि दक्षिणी लेबनान से हिजबुल्लाह का पीछे हटना ईरान के लिए एक झटका भी माना जा रहा है, जिसने इस्राइल की सुरक्षा को चुनौती देने के लिए समूह को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया है। फिर भी, ईरान इस विराम का इस्तेमाल अपनी रणनीति को पुन: व्यवस्थित करने और सीरिया, इराक और यमन सहित क्षेत्रीय सहयोगियों के अपने नेटवर्क को मजबूत करने के लिए कर सकता है। लेकिन यह युद्धविराम तेहरान के लिए रणनीतिक हार नहीं है, क्योंकि हिजबुल्लाह का व्यापक मिसाइल जखीरा और राजनीतिक प्रभाव बरकरार है।
हिजबुल्लाह के एक प्रवक्ता ने कहा कि हमारा समूह संघर्ष विराम के लिए प्रतिबद्ध होने से पहले यह देखने के लिए इंतजार करेगा कि क्या हमने जो कहा और लेबनानी अधिकारियों ने जिस पर सहमति व्यक्त की थी, उसके बीच कोई मेल है या नहीं। समूह ने यह भी सुझाव दिया कि वह इसराइल के किसी भी हमले का जवाब देने से पीछे नहीं हटेगा।
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समझा जाता है कि इसराइल के अंदर नेतन्याहू के खिलाफ बने माहौल से मजबूर होकर प्रधानमंत्री ने एक मोर्चा यानी लेबनान में युद्ध बंद करने का फैसला किया है। क्योंकि लेबनान पर हमले से इसराइल को अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ जबकि इसराइल का युद्ध खर्च बढ़ता चला जा रहा है। दूसरी तरफ हमास ने अभी तक इसराइली बंधकों को छोड़ा नहीं है। बंधकों के परिवार इसराइल में रोजाना प्रदर्शन कर रहे हैं। नेतन्याहू पर बंधकों को समझौते के जरिए छुड़ाने का दबाव बढ़ता जा रहा है।
इसराइल को हमास और हिजबुल्लाह से युद्ध में भारी नुकसान हुआ है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कृषि क्षेत्र में $124 मिलियन का नुकसान हुआ है। करीब $1.1 बिलियन से अधिक का नुकसान पशुधन के मारे जाने और किसानों के विस्थापन के कारण बर्बाद हुई फसल के कारण हुआ है। इसराइल में, इसराइली अधिकारियों का अनुमान है कि संपत्ति का नुकसान कम से कम 1 बिलियन शेकेल ($273 मिलियन) है। जिसमें हजारों घर, खेत और व्यवसाय क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए हैं। इसराइली अधिकारियों का कहना है कि युद्ध शुरू होने के बाद से उत्तरी इसराइल और गोलान पहाड़ियों में लगभग 55,000 एकड़ वन, प्रकृति आरक्षित, पार्क और खुली भूमि जलकर खाक हो गई है।
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युद्ध ने इसराइल पर आर्थिक प्रभाव को बढ़ा दिया है, जिससे सार्वजनिक वित्त पर दबाव पड़ा है। बजट घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 8% तक बढ़ गया है, जिससे इस वर्ष सभी तीन प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को इसराइल की रेटिंग कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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