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भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो उसके कुल व्यापार में 65 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। लेकिन अब...चीन अब नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन जाएगा। यही भारत की चिन्ता है।
नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने उस परंपरा को तोड़ दिया है, जब कोई नेपाली प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद सबसे पहले नई दिल्ली फोन करता है या यात्रा करता है। ओली ने इसके बजाय चीन जाने का विकल्प चुना। वह शी जिनपिंग के साथ मिलकर काम करने और सौदे को अंतिम रूप देने के लिए सोमवार को ही चीन पहुंच गए।
नेपाल के विदेश कार्यालय ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, चीन और नेपाल ने बुधवार को बेल्ट एंड रोड सहयोग के ढांचे पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन उसका कोई और विवरण साझा नहीं किया है। समझौते से परिचित सूत्रों ने कहा है कि इस सौदे का मतलब है कि चीन इन परियोजनाओं के लिए फंडिंग किस तरह करेगा और वास्तव में हर परियोजना के लिए बीजिंग कैसे पैसे देगा। दोनों देश हर परियोजना का विवरण नहीं बताएंगे।
2017 में, नेपाल सैद्धांतिक रूप से चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गया था - सड़कों, परिवहन गलियारों, हवाई अड्डों और रेल लाइनों का एक विशाल नेटवर्क जो चीन को शेष एशिया, यूरोप और उससे आगे से जोड़ता है। हालाँकि, इन्हें लागू करने की उचित रूपरेखा की कमी के कारण पिछले सात वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई। काठमांडू को भी इस मुद्दे पर राजनीतिक सहमति पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। अब ऐसा लगता है कि इस समझौते से उसका समाधान हो गया है।
चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, हालांकि महत्वाकांक्षी है, लेकिन बीजिंग के कथित गुप्त उद्देश्यों के कारण कई देशों के लिए इसे खतरा माना जाता है। कई देश कर्ज के जाल में फंस गए हैं, जिसे अक्सर चीन की "लोन कूटनीति" कहा जाता है। इसके जरिए चीन ऐसे छोटे देश के लिए लोन देकर एक मेगा परियोजना बनाता है, और जब वो देश लोन या ब्याज का भुगतान नहीं कर पाता है, तो बीजिंग या तो इसे अपने कब्जे में ले लेता है। जीवन भर के लिए प्रोजेक्ट करता है या अपने विस्तारवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कोई डील करता है।
चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी करने और अन्य देशों की संप्रभुता का उल्लंघन करने का भी इतिहास रहा है। नेपाल की सरकार और विपक्ष के कई नेता पहले से ही संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था में बढ़ती कर्ज संबंधी चिंताओं से चिंतित हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री ओली की सरकार के भीतर भी चीन की परियोजनाओं में संभावित जोखिमों पर तीखी बहस चल रही है। नेपाल कांग्रेस, जो पीएम ओली की पार्टी की प्रमुख सहयोगी है, ने चीनी ऋण द्वारा वित्त पोषित किसी भी परियोजना का कड़ा विरोध किया है।
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