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स्टारमर के पीएम बनने से भारत के साथ संबंधों पर क्या होगा असर?

ब्रिटेन में नयी सरकार के आने के बाद भारत के साथ संबंधों को लेकर नये सिरे से चर्चाएँ शुरू हो गई हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या कीर स्टारमर की नयी सरकार आने के बाद बहुत कुछ बदल जाएगा? जिन मुद्दों को लेकर ऐसी चिंताएँ जताई गई हैं उनमें सबसे प्रमुख मुक्त व्यापार समझौते यानी एफ़टीए, कश्मीर जैसे मुद्दों पर लेबर पार्टी का रुख, वीजा और जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे हैं।

स्टारमर की विदेश नीति के एजेंडे का एक और महत्वपूर्ण पहलू यूके-भारत संबंधों को मजबूत करना होगा। ब्रिटेन के आम चुनाव में लेबर पार्टी की जीत हुई और कीर स्टारमर प्रधानमंत्री बन रहे हैं। पिछले 14 साल तक कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार रही, लेकिन कीर स्टारमर के नेतृत्व में इसने इस बार के चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया और ऋषि सुनक की पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया। 

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नयी सरकार बनने के बाद अब इसको लेकर चिंताएँ हैं कि नई दिल्ली और लंदन के बीच मुक्त व्यापार समझौते यानी एफ़टीए का क्या होगा? दो वर्षों से अधिक समय से दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत हो रही है। इस समझौते के परिणामस्वरूप कार, कपड़े, मादक पेय और चिकित्सा उपकरणों जैसे कई सामानों पर आपसी टैरिफ में छूट मिल सकती है। हालाँकि स्टारमर के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने भारत के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर करने में टोरीज़ की देरी के बारे में भी सवाल उठाए हैं। लेकिन सवाल है कि अब ब्रिटेन की नयी सरकार का इसको लेकर किस तरह का रुख रहता है?

कश्मीर पर लेबर पार्टी का रुख बदला?

पहले लेबर पार्टी कश्मीर मुद्दे को जोर शोर से उठाती रही थी। जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में तो लेबर पार्टी ने कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का आह्वान किया था। इसी वजह से यह आशंका रही कि अब लेबर पार्टी की नयी सरकार आने से क्या फिर से ब्रिटेन का रुख बदलेगा?

लेकिन माना जा रहा है कि कीर स्टारमर के नेतृत्व में लेबर पार्टी बदल गई है। यह वही पार्टी नहीं है, जिसका नेतृत्व उनके पूर्ववर्ती जेरेमी कॉर्बिन करते थे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार स्टारमर ने ब्रिटेन की भारतीय मूल की आबादी के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को पहचाना है। यह देश का सबसे बड़ा अप्रवासी समूह है। उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर 'भारत विरोधी भावनाओं' को खत्म करने की कोशिश की है। 

वीज़ा पर अड़चन आएगी?

ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश राजनीति में आव्रजन सबसे गर्म मुद्दों में से एक है। टोरी और लेबर इस बात पर असहमत हैं कि यूके में आव्रजन को कैसे प्रतिबंधित किया जाए, इस तथ्य पर दोनों दलों की आम सहमति है कि इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यह भारत के साथ व्यापार समझौते के लिए एक अड़चन हो सकती है।

भारत एफटीए के तहत अपने सेवा क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए अस्थायी वीजा की मांग कर रहा है।
इस मामले में उसे सौदे में सबसे अधिक लाभ होने की उम्मीद है। लेकिन यूके के राजनीतिक माहौल को देखते हुए लेबर पार्टी द्वारा वीजा मुद्दे पर अड़चन आ सकती है। 
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भारत को लेबर सरकार से जलवायु पर भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। लेबर पार्टी ने यूके के 2030 के नेट जीरो टार्गेट से भटकने के लिए टोरी को बार-बार घेरा है। भारत ने कार्बन टैक्स पर छूट मांगी है जिसे यूके द्वारा यूरोपीय संघ की तर्ज पर लागू करने की उम्मीद है। लेकिन वह आसानी से भारत से बातचीत कर मामला सुलझा पाएगा, यह मुश्किल दिखता है।

हालाँकि, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत का बड़ा बाज़ार दोनों देशों के संबंधों को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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