बीस जनवरी, मंगलवार की रात लगभग सवा दस बजे जब भारत के नागरिक सोने की तैयारी कर रहे थे, वाशिंगटन में दिन के पौने बारह बज रहे थे। यही वह क्षण था जिसकी अमेरिका के करोड़ों नागरिक रात भर प्रतीक्षा कर रहे थे। उस कैपिटल हिल पर जहाँ सिर्फ़ दो सप्ताह पहले (6 जनवरी) अमेरिकी इतिहास की अभूतपूर्व हिंसा घट चुकी थी, 78 साल के जो बाइडन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद देशवासियों को सम्बोधित कर रहे थे।
जिस अमेरिकी क्षण की दुनिया को प्रतीक्षा थी, वह अंततः आ ही गया!
- विश्लेषण
- |
- |
- 29 Mar, 2025

बाइडन के सत्ता में क़ाबिज़ हो जाने के बाद पश्चिमी यूरोप सहित उन कई देशों के नागरिकों ने राहत की साँस ली है जो ट्रंप की दूसरी बार जीत को प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा ख़तरा मानते थे। पर वे यह भी जानते हैं कि ख़तरा स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। एक तात्कालिक ‘राहत’ को स्थायी ‘उपलब्धि’ में परिवर्तित होते देखने के लिए उन्हें चार वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जो काफ़ी लम्बा समय होता है।
वे डोनल्ड ट्रंप की जगह ले रहे थे जो सोमवार की रात ‘किसी न किसी रूप में’ अपनी वापसी का इशारा करते हुए वाशिंगटन से रवाना हो चुके थे। उन्हें विदा देने के लिए उनके उप-राष्ट्रपति पेंस भी मौजूद नहीं थे। पेंस, बाइडन-हैरिस के शपथ समारोह में उपस्थित थे।
सूनी सड़कें
बाइडन (और कमला हैरिस) के शपथ समारोह में दोनों ही दलों के पूर्व राष्ट्रपति (क्लिंटन, बुश और ओबामा) मौजूद थे पर ट्रंप नहीं थे। पर ट्रंप का ख़ौफ़ कैपिटल के हर कोने और समारोह में उपस्थित प्रत्येक चेहरे पर मौजूद था। इसकी गवाही वाशिंगटन डीसी की सूनी सड़कें और समारोह स्थल को घेर कर खड़े हज़ारों सुरक्षा गार्ड दे रहे थे। अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था।
अमेरिका ने अपने आपको इतना असुरक्षित पहले कभी नहीं महसूस किया होगा, ‘नाइन-इलेवन’ की घटना के बाद भी। तब अमेरिका पर हमला बाहरी लोगों ने किया था। इस बार हमला भी घरेलू था और लोग भी जाने-पहचाने थे। बाइडन के शब्दों में वह एक ‘असभ्य युद्ध’ (अन-सिविल वार) था।