म्यांमार को भारतीय नौसेना की एक पुरानी पनडुब्बी देने का एलान कर भारत ने सामरिक हलकों में सनसनी तो पैदा की ही है, पहली बार चीन का इस इलाक़े से पत्ता काटने की एक बड़ी सामरिक पहल को कामयाबी मिली है। म्यामांर की नौसेना को पनडुब्बी सप्लाई करने की कोशिश चीन पिछले सालों से कर रहा था लेकिन यह बाज़ी भारत ने मार ली है। चीन ने इसके पहले 2017 में बांग्लादेश को मिंग क्लास की अपनी दो पुरानी पनडुब्बियाँ बेचकर बांग्लादेश की नौसेना को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश की है जिसे लेकर भारतीय सामरिक हलकों के कान खड़े हुए थे। लेकिन भारत ने किलो वर्ग की रूसी पनडुब्बी म्यांमार को सौंपने का 15 अक्टूबर को जो एलान किया है वह बांग्लादेश को चीन द्वारा बेची गई पनडुब्बी से काफ़ी बेहतर क़िस्म की और बेहतर मारक क्षमता वाली है। हालाँकि भारत द्वारा दी गई पनडुब्बी पर म्यांमार अपने नौसैनिकों को ट्रेनिंग देगा और भविष्य में अपने पनडुब्बी बेड़े को खड़ा करेगा तो उसे भारत की ही मदद की ज़रूरत होगी। इस तरह भविष्य में म्यांमार भारत के साथ ही अपने सामरिक रिश्ते गहराने की दिशा में आगे बढ़ेगा।
तीन साल पहले जब चीन बांग्लादेश को अपनी दो पनडुब्बियाँ सप्लाई करने का सौदा कर रहा था उन्हीं दिनों चीन की एक परमाणु पनडुब्बी ने जब श्रीलंका के नौसैनिक बंदरगाह का दौरा किया तो भारतीय सामरिक कर्णधारों ने श्रीलंका को आगाह किया था। चीन की कोशिश है कि वह श्रीलंका के नौसैनिक बंदरगाह या फिर नागरिक जहाजरानी के इस्तेमाल के लिये बनाए गए हमबनटोटा बंदरगाह पर अपनी पनडुब्बी को तैनात रखे। पिछले दो दशकों से चीन भारत के इर्दगिर्द मोतियों की ऐसी हार पिरोने की रणनीति पर चल रहा है जिससे वह भारत की सामरिक घेराबंदी कर सके। म्यांमार बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित देश है जहाँ चीन अपनी नौसैनिक की मौजूदगी बना कर भारत पर सामरिक दबाव बनाने की रणनीति को लागू करने की कोशिश कर रहा है।
पिछले दशकों के दौरान म्यांमार में सैनिक राज के दौरान चीन को इसमें काफ़ी कामयाबी मिली लेकिन अब म्यांमार में नागरिक सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद म्यांमार और चीन के बीच नज़दीकी कम हुई है। म्यांमार ने चीन से रक्षा सम्बन्धों का स्तर तो कम किया ही है उसने नागरिक क्षेत्र में भी कई बड़ी चीनी परियोजनाओं को रद्द कर संकेत दिया है कि वह चीन के साथ आँखें मूंद कर अपने रक्षा रिश्ते नहीं मज़बूत करेगा।
भारत के ईर्द-गिर्द मोतियों की हार पिरोने की रणनीति के तहत ही चीन ने थाईलैंड को दो पनडुब्बियाँ बेचने की कोशिश की है जिसके बारे में ताज़ा रिपोर्ट है कि थाइलैंड ने समझौता करने के बाद इसे रद्द करने का फ़ैसला किया है।
इस बीच भारत और थाईलैंड के बीच आपसी सामरिक तालमेल का बढ़ना भी काफ़ी अहम है। थाईलैंड के साथ भारत पहले से ही हिंद महासागर में साझा नौसैनिक गश्ती करता रहा है इसलिये थाईलैंड की नौसेना ने भारत के साथ रिश्ते गहरे करने को प्राथमिकता दी है।
म्यांमार के साथ मेलजोल
म्यामांर को दी गई पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर रूसी किलो वर्ग की है जिसे म्यामांर को सौंपने के बारे में भारत ने कहा है कि समुद्री क्षेत्र में सहयोग म्यांमार के साथ मेलजोल के व्यापक कार्यक्रम का एक हिस्सा है। इस पनडुब्बी को भारत ने नब्बे के दशक में रूस से हासिल किया था और इसे भारत ने अपने हिंदुस्तान शिपयार्ड में और आधुनिक रूप दे कर म्यांमार को सौंपा है। म्यांमार की नौसेना के बेड़े में यह पहली पनडुब्बी होगी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पनडुब्बी को म्यांमार को सौंपने के बारे में कहा है कि यह भारत की सागर अवधारणा का हिस्सा है जिसमें भारत ने सबके लिये सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करने में अपना योगदान करने की बात कही है। भारत ने प्रतिबद्धता जाहिर की है कि वह सभी पड़ोसी देशों में क्षमता निर्माण में सहयोग देगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद देगा।
ग़ौरतलब है कि गत तीन अक्टूबर को ही भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रूंगला थलसेना प्रमुख जनरल मुकुंद नरवाणे के साथ म्यांमार गए थे। वहाँ उन्होंने म्यांमार की स्टेट काउंसेलर आंग सान सू ची और सेना प्रमुखों के अलावा अन्य सभी आला राजनीतिक और सैनिक अधिकारियों से मुलाक़ात की थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मज़बूत करने के नये क़दमों और कार्यक्रमों पर मुहर लगाई गई थी। जिसके एक अहम हिस्से का एलान 15 अक्टूबर को भारत ने किया। पनडुब्बी सप्लाई करने के फ़ैसले के पहले भारत ने म्यांमार को एडवांस्ड टारपीडो भी सप्लाई किये हैं। म्यांमार की नौसेना को भारत ने टोही विमानों की भी सप्लाई की है।
किसी छोटे देश को पनडुब्बी जैसा शस्त्र मंच सौंपने की अहमियत इस बात में है कि वह देश पनडुब्बी के रखरखाव और संचालन के लिये पूरी तरह सप्लाई करने वाले देश पर निर्भर हो जाए। इस तरह चीन ने बांग्लादेश की नौसेना को अपनी मुट्ठी में कर लिया और उसकी कोशिश म्यांमार को भी अपनी मुट्ठी में करने की थी।
यदि म्यांमार भी चीन की पनडुब्बी हासिल करता तो भारत का एक और पड़ोसी देश चीन की गिरफ्त में पूरी तरह चला जाता जो भारत के लिये भारी चिंताजनक बात होती। बांग्लादेश और म्यांमार बंगाल की खाड़ी के दो ऐसे तटीय देश हैं जिनकी भारत के लिये काफ़ी सामरिक अहमियत है। चीन ने बांग्लादेश के बंदरगाहों के विकास का ठेका इसी इरादे से लिया है कि उसकी नौसैनिक मौजूदगी भारत के समुद्री इलाक़े में हो जाए।
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