अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के बारे में अजीबोगरीब उलझन है। पॉपुलर वोटों के आधार पर राष्ट्रपति का चुनाव जो बाइडन को जीता हुआ बताया जा रहा है, लेकिन ट्रंप हार मानने को तैयार नहीं हैं। आधिकारिक तौर पर इसकी आख़िरी घोषणा नहीं हुई है क्योंकि वोटों की गिनती की प्रक्रिया अभी भी जारी है। ट्रंप ने ख़ुद को जीता हुआ बताया है और बिना किसी सबूत के ही वोटों की गिनती में गड़बड़ी का आरोप भी लगाया है। वह कोर्ट में भी चले गए हैं। अब यदि ट्रंप हार नहीं मानते हैं तो आगे क्या होगा? यदि तय समय तक चुनावों की आधिकारिक आख़िरी घोषणा नहीं हो और नये राष्ट्रपति चुने जाने की समय-सीमा तक इस पूरे मामले को उलझाए रखा गया तो क्या होगा? क्या ट्रंप के राष्ट्रपति बने रहने की राह आसान हो जाएगी?
सामान्य तौर पर राष्ट्रपति चुनाव के दो हफ़्ते में चुनावी नतीजे की घोषणा होती है। हालाँकि अमेरिका में परंपरा रही है कि आधिकारिक आख़िरी घोषणा होने से पहले ही पॉपुलर वोट के आधार पर जीते हुए उम्मीदवार को राष्ट्रपति का पद भार सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अगर मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव हारा हो तो वह हार स्वीकार कर लेता है और हस्तांतरण की प्रक्रिया में सहयोग करता है। हालाँकि, चुनावी नतीजे ट्रंप के ख़िलाफ़ होने के बावजूद वह ऐसा नहीं कर रहे हैं।
चुनाव नतीजे की आधिकारिक घोषणा में क़रीब दो हफ़्ते का समय इसलिए लगता है क्योंकि वोटों की गिनती प्रक्रिया ही इतने लंबे वक़्त तक चलती है। इस ताज़ा चुनाव में 3 नवंबर को मतदान हुआ था इसलिए अभी भी मतगणना प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। इस मतगणना प्रक्रिया के पूरे नहीं होने का ही ट्रंप फ़ायदा उठा रहे हैं।
इस फ़ायदे के बारे में ट्रंप के लोग कितने आश्वस्त हैं इसका अंदाज़ा अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के बयान से भी लगाया जा सकता है। राष्ट्रपति पद सौंपे जाने के बारे में पूछे जाने पर माइक पोम्पिओ ने संवाददाताओं से कहा, 'दूसरे ट्रम्प प्रशासन के लिए एक आसान हस्तांतरण होगा'। इस तरह उनका कहना साफ़ था कि ट्रंप ही अगले राष्ट्रपति होंगे।
ट्रंप का ऐसा रुख तब है जब अभी तक चुनाव नतीजों की घोषणा में 279 वोट डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडन को मिले हैं और ट्रंप को सिर्फ़ 214 वोट ही मिले हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 वोटों की ज़रूरत होती है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को पूरा किए जाने की तारीख़ें तय हैं। राष्ट्रपति चुनाव नतीजे का आख़िरी फ़ैसला 6 जनवरी तक घोषित कर दिया जाना होता है। कई रिपोर्टों के अनुसार ट्रंप ने अभी तक हार नहीं स्वीकार की है और माना जा रहा है कि वह स्वीकार करेंगे भी नहीं। वह चाहते हैं कि अगला राष्ट्रपति भी वह ख़ुद बनें। इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई है और अभियान शुरू किया है। माना जाता है कि उनकी इस योजना का पहला पड़ाव यह है कि प्रमुख राज्यों में चुनावी नतीजे के सर्टिफ़िकेट यानी प्रमाण पत्र दिए जाने की प्रक्रिया को बाधित किया जाए।
इसीलिए ट्रंप की टीम ने तीन राज्यों- पेंसिल्वेनिया, मिशिगन और एरिज़ोना में मुकदमे दायर किए हैं। अदालतों से राज्य के अधिकारियों को वोट को प्रमाणित करने से रोकने के लिए कहा है। इन तीन राज्यों में 47 चुनावी वोट हैं, जिन्हें बाइडन ने या तो जीते हैं या फिर इनमें आगे हैं। अब यदि वोटों को तय समय 8 दिसंबर तक नहीं प्रमाणित किया जाता है तो क्या होगा?
यहाँ पर ट्रंप को एक उम्मीद की किरण दिखती है। 8 दिसंबर तक वोटों के प्रमाणित नहीं होने पर राज्यों के लेजिस्लेचर (विधायक) दखल दे सकते हैं। ये लेजिस्लेचर ही इलेक्टोरल कॉलेज में रिपब्लिकन इलेक्टर को भेज सकते हैं। ये इलेक्टर ही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इन तीनों राज्यों में ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन के लेजिस्लेचर हैं। ऐसे में ये इलेक्टर ट्रंप के लिए वोट कर सकते हैं। हालाँकि इसके बावजूद ट्रंप के लिए मुश्किलें आएँगी।
ये मुश्किलें इसलिए आएँगी क्योंकि दो राज्यों- पेंसिल्वेनिया और मिशिगन में डेमोक्रेटिक पार्टी के गवर्नर हैं और वे रिपब्लिकन इलेक्टर की सूची में बाधा डाल सकते हैं और डेमोक्रेट अपनी सूची भेज सकते हैं। विवाद होने पर यह मामला नियमों के अनुसार अमेरिकी संसद कांग्रेस में जाएगा। कांग्रेस में स्थिति यह है कि दोनों सदनों में से एक में बहुमत डेमोक्रेटिक पार्टी के पास है तो दूसरे सदन में रिपब्लिकन पार्टी के पास। इस तरह कांग्रेस में भी राष्ट्रपति को चुनने वाले इलेक्टर की सूची पर सहमति बनने के आसार नहीं हैं।
कांग्रेस में सहमति नहीं बनने पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल दे सकता है या फिर सीनेट का अध्यक्ष होने के नाते उपराष्ट्रपति माइक पेंस दखल दे सकते हैं। ऐसे में तीन स्थितियाँ बन सकती हैं। एक, हो सकता है कि डेमोक्रेट की सूची चुनी जाए। दो, हो सकता है कि रिपब्लिकन की सूची चुनी जाए। विवाद को देखते हुए ये दोनों मुमकिन नहीं लगते। तीन, हो सकता है कि विवादित राज्यों के वोट को बाहर कर दिया जाए। ऐसे में न तो ट्रंप राष्ट्रपति बन सकते हैं और न ही बाइडन।
आख़िर में जब किसी के पास भी बहुमत नहीं होगा तो फिर कांग्रेस राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करेगी। एक सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स राष्ट्रपति चुनेगा और दूसरा सदन सीनेट उपराष्ट्रपति।
इसमें नियम यह होता है कि हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स में प्रत्येक राज्य को एक वोट मिलेंगे। यानी सदन में बहुमत के आधार पर राष्ट्रपति नहीं चुना जा सकेगा। इसका मतलब यह होगा कि जिस पार्टी का सबसे ज़्यादा राज्यों पर कब्जा होगा वह राष्ट्रपति चुनेगा। अमेरिका के 50 में से 26 राज्यों में रिपब्लिकन का नियंत्रण है जबकि 22 राज्यों में डेमोक्रेट का। हालाँकि हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स में चुने हुए सदस्यों के आधार पर डेमोक्रेट का बहुमत है। सीनेट में तो रिपब्लिकन का बहुमत है ही। सीनेट में प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है। अब यदि मान लिया जाए कि 20 जनवरी तक ये प्रक्रियाएँ पूरी नहीं हो पाती हैं तो क्या होगा? ऐसे में हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स का स्पीकर कार्यकारी राष्ट्रपति बनता है। फ़िलहाल, डेमोक्रेट पार्टी की नैंसी पेलोसी हाउस की स्पीकर हैं और वह कार्यकारी राष्ट्रपति बन सकती हैं।
इस तरह ट्रंप ने जो रास्ता चुना है वह काफ़ी लंबा और पेंचिदा है। अब वह इस पूरी प्रक्रिया में राष्ट्रपति पद हथियाने में क्या कामयाब होंगे, इसके लिए इंतज़ार करना होगा।
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