पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ की फाँसी की सज़ा पर कोर्ट का जो पूरा फ़ैसला आया है वह दिल दहलाने वाला है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि यदि फाँसी की सज़ा से पहले 'मुशर्रफ़ की मौत हो गई तो उसकी लाश को घसीटते हुए इसलामाबाद के डी चौराहे तक लाया जाए और वहाँ तीन दिन तक लटकाया जाए।'
परवेज़ मुशरर्फ़ को एक विशेष अदालत ने 17 दिसंबर को ही राजद्रोह के आरोप में फाँसी की सज़ा सुनाई थी। तब इसका विस्तृत फ़ैसला नहीं आया था। अब विशेष अदालत का 167 पेज का फ़ैसला आया है। इस फ़ैसले में कहा गया है कि जो हमने परखा है उसमें आरोपी दोषी पाया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि दोषी को उसकी गर्दन से फाँसी दी जाए जब तक कि वह मर न जाए।
इसी फ़ैसले में आगे कहा गया है, 'हम क़ानून की पालना कराने वाली एजेंसियों को निर्देश देते हैं कि वे भगोड़े/दोषी को पकड़ने के लिए अपनी तरफ़ से सबसे बेहतरीन प्रयास करें ताकि यह सुनिश्चित हो कि सज़ा क़ानून के तहत मिले और यदि वह मृत पाया जाता है तो उसकी लाश को घसीटते हुए पाकिस्तान के इसलामाबाद में डी चौराहे पर लाया जाए और तीन दिनों तक लटकाए रखा जाए।'
पेशावर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वक़ार अहमद सेठ के नेतृत्व में गठित बेंच में सिंध हाई कोर्ट के न्यायाधीश नज़र अकबर और लाहौर हाई कोर्ट के न्यायाधीश शाहिद करीम भी शामिल थे। इसमें जस्टिस अकबर ने बहुमत के फ़ैसले से अलग राय दी।
बता दें कि उनकी सज़ा पर सेना ने कड़ी आपत्ति जताई है। एक बयान में डीजी आईएसपीआर मेजर जनरल आसिफ़ गफूर ने कहा, ‘एक पूर्व सेना प्रमुख, कर्मचारी संयुक्त समिति के अध्यक्ष और पाकिस्तान के राष्ट्रपति, जिन्होंने 40 वर्षों से देश की सेवा की है, देश की रक्षा के लिए युद्ध लड़े हैं निश्चित रूप से कभी देशद्रोही नहीं हो सकते। लगता है कि तय क़ानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है चाहे वह विशेष अदालत के गठन का मामला हो या आत्मरक्षा के मौलिक अधिकार से इनकार, व्यक्ति आधारित कार्यवाही करने और जल्दबाजी में मामले को समाप्त करने का।’
परवेज़ मुशर्रफ़ फ़िलहाल विदेश में हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट का यह फ़ैसला बदले की कार्रवाई है। वह पाकिस्तानी सेना के प्रमुख रह चुके हैं। उन्होंने नवाज़ शरीफ़ की सरकार का तख़्ता पलट कर सत्ता की बागडोर संभाल ली थी।
मुशर्रफ़ पर 3 दिसंबर, 2007, को लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी हुई सरकार हटाने के मामले में ही राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया था।
पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति पर यह मामला दिसंबर 2013 से ही चल रहा था। उन्हें विशेष अदालत ने 3 मार्च, 2014 को दिए अपने एक फ़ैसले में दोषी क़रार दिया था। मुशर्रफ़ मार्च, 2016, से ही विदेश में रह रहे हैं।
इस फ़ैसले के पहले मुशर्रफ़ के वकील रज़ा बशीर ने दरख़्वास्त देकर कहा था कि उनके मुवक्किल को अपनी बात रिकार्ड कराने का मौक़ा मिलना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तानी दंड संहिता की धारा 342 के तहत मुशर्रफ़ की उचित सुनवाई होनी चाहिए।
जज ने कहा था कि परवेज़ मुशर्रफ़ को अपनी बात कहने का पूरा हक़ है और वह कभी भी अदालत में पेश होकर अपनी बात कह सकते हैं। इस पर इस पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति के वकील ने कहा था कि मुशर्रफ़ बीमार हैं और इस समय अदालत में पेश होकर अपनी बात नहीं कह सकते। मुशर्रफ़ ने 18 अगस्त, 2008 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। वे इस पद पर 9 साल रहे।
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