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बांग्लादेश : हिन्दुओं पर हमलों के ख़िलाफ़ मुसलमानों का प्रदर्शन

ऐसे समय जब भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लगातार निशाने पर लिया जा रहा है और सभी राजनीतिक दल हिन्दुत्व की बातें करने लगे हैं, पड़ोस के बांग्लादेश में उम्मीद की किरण दिखती है। 

इसे इससे समझा जा सकता है कि दुर्गापूजा के दौरान हिन्दुओं पर हमले के खिलाफ़ सैकड़ों लोगों ने राजधानी ढाका के शहबाग स्क्वैयर में विरोध प्रदर्शन किया है। 

इसमें शामिल होने वालों में मुसलमान बड़ी तादाद में थे। इनमें विश्वविद्यालय के छात्र, नागरिक समाज के लोग और कई राजनीतिक दलों के लोग शामिल हैं।

इन लोगों ने सरकार से मांग की है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए। प्रर्शनकारियों ने यह भी कहा है कि वे किसी हालत में बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का प्रभाव नहीं बढ़ने देंगे। 

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दुर्गापूजा में दंगा

बता दें कि दुर्गापूजा के दौरान इसलाम धर्म की तौहीन करने की अफ़वाह फैलने के बाद कुमिल्ला, चांदपुर, चट्टोग्राम, कॉक्सेज बाज़ार, बांदरबन, मौलवी बाज़ार, ग़ाज़ीपुर, चपईनवाब गंज और फ़ेनी जिलों में दंगा फैल गया। 

बांग्लादेश हिन्दू बौध ईसाई एकता परिषद ने कहा है कि इन दंगों में चाँदपुर और नोआखाली में कम से कम चार हिन्दू मारे गए।

इन दंगों और हत्याओं के ख़िलाफ़ बांग्लादेश के लोग ढाका की सड़कों पर उतर आए। 

सोमवार को एक हज़ार से ज़्यादा लोग शहबाग स्क्वैयर पर जमा हुए और पाँच घंटे तक सड़क जाम रखा। इनमें ढाका विश्वविद्यालय के छात्र बड़ी संख्या में थे। इसके अलावा इस्कॉन और रमना काली मंदिर से जुड़े लोग भी बड़ी तादाद में मौजूद थे। 

ढाका विश्वविद्यालय के छात्र और इस प्रदर्शन के प्रवक्ता जयजीत दत्ता ने पत्रकारों से कहा,

बहुत सारे मुसलिम भाइयों और बहनों ने प्रदर्शन में भाग लिया है या इसके प्रति समर्थन जताया है। धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश की यही विशेषता है।


जयजीत दत्ता, ढाका विश्वविद्यालय का छात्र

प्रदर्शन

सुरक्षा अधिकारियों के कहने पर प्रदर्शनकारी दोपहर बाद शहबाग स्क्वैयर से चले गए, पर कहा कि "यदि 24 घंटों में उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो वे फिर इसी जगह एकत्रित होंगे। उनकी मांगों में प्रमुख दोषियों को तुरन्त गिरफ़्तार करना और उन्हें कड़ी सज़ा देना है।" 

शहबाग स्क्वैयर ही वह जगह है जहाँ 2013 में हज़ारों की संख्या में लोग जमा हुए थे और इसलामी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ आवाज उठाई थी। 

bangladesh stands with hindus after durga puja violence - Satya Hindi

सरकार को चेतावनी

उस आन्दोलन के संयोजक इमरान सरकार ने 'द टेलीग्राफ' से कहा, "यह हमारे कार्यक्रम का पहला दिन था, ज़रूरत पड़ने पर हम फिर जमा होंगे। लेकिन हम किसी सूरत में कट्टरपंथियों को बांग्लादेश पर क़ब्ज़ा नहीं करने देंगे। सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी।"

इन दंगों में इसलामी कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं के 20 घरों में आग लगा दी और 66 घरों में तोड़फोड़ की।

बांग्लादेश के गृह मंत्री असदउज्जमां ख़ान ने कहा है कि सरकार अपने खर्च से ये घर बनवाएगी और जिन्हें नुक़सान हुआ है, उन्हे उसकी भरपाई करेगी। 

अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हुए इन हमलों का समाज के हर वर्ग में गुस्सा है। पूर्व विदेश सचिव और बांग्लादेश युद्ध में पुरस्कार से सम्मानित शमशेर मोबिन ने कहा, "इनकी कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। 1992 में बाबरी मसजिद विध्वंस के बाद हुए दंगों में भी इस तरह की आगजनी नहीं हुई थी। यह वह बांग्लादेश नहीं है, जिसके लिए हमने 1971 में पाकिस्तान से युद्ध लड़ा था।"

उन्होंने इसके आगे कहा,

हमने समावेशी और धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश के लिए यह लड़ाई लड़ी थी। यदि वह उसे हासिल नहीं कर पाते हैं तो हमारा मकसद पूरा नहीं हुआ।


शमशेर मोबिन, पूर्व विदेश सचिव, बांग्लादेश

क्या कहना है पार्टियों का?

बांग्लादेश की सत्तारूढ़ पार्टी आवामी लीग ने इस संकट के लिए विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को ज़िम्मेदार ठहराया है। उसने बीएनपी पर आरोप लगाया है कि उसने माहौल बिगाड़ने और तनाव बढ़ाने के लिए जानबूझ कर एक साजिश के तहत ऐसा कराया है। 

आवामी लीग के कार्यालय सचिव बिप्लब बरुआ ने कहा,  "हमारी सरकार पूरे देश में सद्भावना रैली निकालेगी और जगह जगह सद्भावना सभा करेगी। सूचना मंत्री मुहम्मद हसन महमूद रंगपुर जाएंगे और पीड़ितों से मिलेंगे। हमारे नेता शांति का संदेश लेकर देशभर की यात्राएं करेंगे।"

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शेख हसीना, प्रधानमंत्री, बांग्लादेश

अर्थव्यवस्था

शेख हसीना सरकार इसलिए भी परेशान है कि सांप्रदायिक दंगों से देश की छवि खराब होगी और आर्थिक विकास के जिस रास्ते पर बांग्लादेश चल रहा है, उसमें अड़चनें आएंगी। 

इस डैमेज कंट्रोल के तहत विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम ने विदेश राजनियकों के साथ एक बैठक रखी है, जिसमें वे पूरी स्थिति समझाने की कोशिश करेंगे। 

स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि हर साल दुर्गापूजा के समय दंगे होने लगे हैं। इसलाम की तौहीन के नाम पर ये दंगे शुरू होते हैं और फैलते चले जाते हैं। दंगों के पैटर्न से यह साफ हो जाता है कि ये सुनियोजित हमले होते हैं। 

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खालिदा ज़िया, नेता, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी

दंगों का पैटर्न

विश्लेषकों का कहना है कि इन दंगों का स्वरूप राजनीतिक है और इसका मक़सद सत्तारूढ़ पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ी करना है।

दरअसल जहाँ बीएनपी की पकड़ कट्टरपंथी मुसलमानों और इसलामी समाज के बीच पहले से ही है, वहीं आवामी लीग की पहचान एक समावेशी दल के रूप में है। लगभग सभी हिन्दू तो इसका समर्थन तो करते ही हैं, बहुसंख्यक मुसलमानों का एक बड़ा तबका इसका समर्थन करता है।

यह शेख हसीना की राजनीति है कि देश में आर्थिक विकास को एक नई ऊँचाई देकर और लोगों का जीवन स्तर ऊपर कर इसलामी कट्टरपंथ की विचारधारा से लोगों को बाहर निकाला जाए। वे इसमें कामयाब रही हैं और यही वजह है कि एक का बाद के लागातार चुनाव जीतती जा रही हैं।

बांग्लादेश की वृद्धि दर

बांग्लादेश के आर्थिक विकास की दर चीन और वियतनाम के बाद पूरे एशिया में सबसे ऊपर है। दक्षिण पूर्व एशिया में वह सबसे आगे है, भारत को भी पीछे छोड़ चुका है।

बांग्लादेश आज कपड़ा निर्माण में दुनिया के अग्रणी देशों में एक है, जिस क्षेत्र में लाखों लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। बांग्लादेश में बेरोज़गारी रिकार्ड न्यूनतम स्तर पर है। 

बीएनपी को एक ऐसे नैरेटिव की ज़रूरत है कि देश में दंगे हो रहे हैं, जिससे विदेशी निवेश कम हो जाए और सरकार की बदनामी हो। पर्यवेक्षकों का कहना है कि मौजूदा दंगों के पीछे यही पृष्ठभूमि है।

और भारत?

इसके उलट बांग्लादेश का पड़ोसी भारत है, जहाँ अल्पसंख्यकों को गोमांस रखने, गोमांस खाने और हिन्दू लड़कियों से विवाह करने तक के लिए निशाने पर लिया जा रहा है। कई बार इसमें सत्तारूढ़ बीजेपी के लोग शामिल होते हैं।

अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की एक मिशाल दिल्ली दंगे हैं, जिसमें मुसलिम बुद्धीजीवियों, प्रोफ़ेसर, अर्थशास्त्री और छात्रों को लपेट लिया गया क्योंकि उन्होंने सीएए का विरोध किया था।

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दिल्ली दंगा

अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की एक मिशाल यह है कि सीएए के ख़िलाफ़ शाहीन बाग में हुए आन्दोलन पर देश के प्रधानमंत्री ने कहा था कि 'यह संयोग नहीं, प्रयोग है।' उन्होंने उसी समय यह भी कहा था कि 'दंगाइयों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है।'

इसके भी पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा में कब्रिस्तान-श्मसान का मुद्दा उठाया था।

भारत में इस अल्पसंख्यक विरोधी नैरेटिव के बावजूद बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है। लेकिन बांग्लादेश में अल्पसंख्यक विरोधी नैरेटिव तैयार करने वाली बीएनपी बुरी तरह हार चुकी है और लंबे समय से सत्ता से बाहर है।

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प्रमोद मल्लिक
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