अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में बुधवार को एक कार में ज़बरदस्त धमाका हुआ, जिसमें लगभग 100 लोगों के घायल होने की ख़बर है। आतंकवादी गुट तालिबान ने इसकी ज़िम्मेदारी है। यह हमला ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका इस अशांत देश से अपनी बची खुची सेना वापस बुलाना चाहता है और उसके लोग
तालिबान से बात भी कर रहे हैं। समझा जाता है कि यह धमाका तालिबान के विद्रोही गुट ने कराया है ताकि बातचीत को पटरी से उतारा जा सके।
कार बम धमाका काबुल के पश्चिमी इलाक़े में हुआ, जहाँ उस समय काफ़ी भीड़ थी। पूरा इलाक़ा धुएँ से भर गया। समाचार एजेन्सी 'द गार्जियन' ने ख़बर दी है कि तालिबान ने कहा है कि उसके लोगों ने धमाका उस जगह किया जहाँ सेना के लिए नए रंगरूटों की भर्ती चल रही थी। इस गुट ने यह दावा भी किया है कि 'सेना और पुलिस के जवान बड़ी तादाद में मारे गए और ज़ख़्मी हुए हैं।'
अफ़ग़ान सरकार के एक मंत्री ने कहा कि धमाके में 95 लोग घायल हुए, जिन्हें सरकारी अस्पतालों में दाखिल कराया गया है। इनमें महिला व बच्चों समेत अधिकतर लोग आम नागरिक थे। दूसरी ओर, सेना ने काबुल के पास ही आतंकवादियों के एक ठिकाने पर छापा मारा, ज़बरदस्त गोलीबारी में कई आतंकवादी मारे गए हैं।
तालिबान से समझौते के बावजूद?
इस कार बम धमाके से अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फ़ौजों की वापसी के बारे में समझौता लगभग हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के प्रतिनिधि ज़लमई ख़लीलज़ाद और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच जिन शर्तों पर समझौता हुआ है, उन्हें अभी पूरी तरह उजागर नहीं किया गया है। लेकिन भरोसेमंद स्रोतों से जो सूचनाएं मिली हैं, उनके आधार पर माना जा रहा है कि अगले डेढ़ साल में पश्चिमी राष्ट्रों के सैनिक पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान को खाली कर देंगे। बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया है कि वे आतंकवादियों पर पक्की रोक लगा देंगे और वे आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे संगठनों से कोई संबंध नहीं रखेंगे।
इस हमले से यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह काम तालिबान के विद्रोही गुट का है, जो इस समझौते के ख़िलाफ़ हैं और इसे पटरी से उतारना चाहते हैं। या फिर हमला इसलिए किया गया है कि अमेरिका पर दबाव बढ़ा कर उससे और शर्तें मनवाई जाएँ। पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस हमले से यह तो साफ़ हो ही गया है कि समझौते के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान में अमन चैन की वापसी मुश्किल होगी।
क्या करेगा भारत?
ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि इसमें भारत की क्या भूमिका होगी। मोटे तौर पर इस समझौते से बाहर ही दिल्ली को रखा गया है। उसे इससे अब तक कोई मतलब नहीं। पर सालों की मदद और खरबों डॉलर के निवेश के बाद भारत वहाँ से बुद्धू बन कर वापस लौटेगा और टुकुर टुकुर देखता रहेगा? इस सवाल का जवाब फ़िलहाल बहुत सकारात्मक नहीं है।
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