टीएमसी के एक विधायक ने हाल ही में कहा है कि अभिषेक बनर्जी का नेतृत्व पार्टी के लिए बेहद ज़रूरी है। 23 नवंबर को पार्टी के प्रमुख कार्यक्रम से अभिषेक गायब थे। तब पार्टी के एक नेता ने कहा था कि कार्यक्रम में कम से कम उनकी एक तस्वीर होनी चाहिए थी। एक नेता ने कहा था कि कार्यक्रम जल्दबाजी में आयोजित किया गया। तो क्या इन बयानों और घटनाओं से पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं होने का संकेत मिलता है?
वैसै, अभिषेक बनर्जी को लेकर कहा जाता है कि वह टीएमसी में ममता बनर्जी के बाद नंबर दो के नेता हैं। यानी एक तरह से उन्हें ही उत्तराधिकारी माना जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि जब ममता बनर्जी के बाद अभिषेक ही कार्यभार संभालने वाले हो सकते हैं तो किसी तरह की दरार के कयास क्यों?
पार्टी में भले ही नेतृत्व को लेकर स्थिति साफ़ है, लेकिन पुराने नेताओं और नए नेताओं के बीच मतभेद पार्टी में कामकाज और निर्णय लेने को लेकर रहे हैं। चाहे पार्टी की रणनीतियों को लेकर हो या फिर ज़िम्मेदारी देने को लेकर, कई बार मतभेद की ख़बरें आती रही हैं। कहा जाता है कि घोटाले के दागी मंत्रियों पर रुख को लेकर भी ऐसे मतभेद दिखते रहे हैं।
इसी बीच अब पार्टी में हलचल को लेकर तब से कयास लगाए जा रहे हैं जब पाँच दिन पहले टीएमसी का एक प्रमुख कार्यक्रम हुआ था। 23 नवंबर को हुए उस कार्यक्रम में पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी की अनुपस्थिति को लेकर पार्टी में हलचल के संकेत मिलते हैं।
उस घटना के बाद एक के बाद एक कई नेताओं ने अभिषेक बनर्जी के मामले का ज़िक्र किया। कार्यक्रम के अगले ही दिन यानी 24 नवंबर को पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि कार्यक्रम में महासचिव की तस्वीर होनी चाहिए थी।
कुणाल घोष की टिप्पणी के तीन दिन बाद एक और ऐसी टिप्पणी आई। सोमवार को पार्टी के एक अन्य नेता मदन मित्रा ने कहा कि नेताजी इंडोर स्टेडियम में कार्यक्रम जल्दबाजी में आयोजित किया गया था।
पार्टी के विधायक मदन मित्रा ने कहा कि 'यदि सुनील गावस्कर भारत के लिए खेलना जारी रखते तो कोई सचिन तेंदुलकर नहीं होता और यदि सचिन खेलना जारी रखते तो कोई विराट कोहली नहीं होता।' द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार पार्टी के एक अन्य विधायक तापस रॉय ने भी अभिषेक बनर्जी का समर्थन किया और कहा कि अभिषेक का नेतृत्व पार्टी के लिए बहुत आवश्यक है।
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