योगेन्द्र यादव बेख़ौफ़ बोलते हैं । एक राष्ट्र एक चुनाव को वो क्यों एक बड़ा ख़तरा मानते हैं भारतीय संसदीय प्रणाली के लिये ? वो क्यों कहते हैं कि ये नोटबंदी जैसा बर्बाद फ़ैसला है ? सरकार के विकास के दावे में कितना दम है ? आशुतोष ने उनसे की बेबाक़ बातचीत और जाना क्या वाक़ई देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव की ज़रूरत है ?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।