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देश का वो हवाई हादसा जिसने दुनिया में उड्डयन नियमों को बदल दिया!

देश की राजधानी से क़रीब सौ किलोमीटर दूर हरियाणा का एक छोटा-सा शहर। शाम के समय रौशनी और अंधेरे के मिलने का वक़्त। घरों की खिड़की और रोशनदानों से बिजली के बल्ब की रोशनी बाहर झांकने लगी। 

तभी शांत पड़ी घरों की खिड़कियों में तेज कंपन और गड़गड़ाहट की आवाज़ आई। आसमान से बहुत तेज़ धमाके की आवाज़ ने इस छोटे से शहर का ध्यान अपनी तरफ़ बड़े डरावने अंदाज में खींचा। जब लोगों की नज़र आसमान पर पड़ी तो डर के मारे आसमान में लगी आग के गोलों को एकटक देखते ही रह गए। पूरा शहर एक साथ क़रीब 10 सेकंड आसमान को देखता रहा। आग और काले धुएं के कारण पूरा आसमान लाल था और दो बड़े-बड़े लोहे के टुकड़े तेजी से धरती की तरह बढ़ रहे थे। लोगों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ये आसमानी आफ़त आख़िर है क्या। उन चंद लम्हों में जैसे पूरे शहर की साँसें थम गई हों।

तभी एक साथ शहर के अलग अलग हिस्सों से आवाज़ आने लगी कि जहाज गिर गया, जहाज गिर गया।

लोग इसकी सच्चाई जानने के लिए एक दूसरे को लैंड लाइन पर फ़ोन करने लगे।

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यह घटना आज से ठीक 25 साल पहले 12  नवम्बर 1996 की है। आसमान में दो विमानों की टक्कर से बिजली कौंधी और पलभर में 349 लोग अकाल मौत के शिकार हो गए। सऊदी अरब एयरलाइंस और कजाकिस्तन के कज़ाक एयरवेज के दो विमान इस शहर के एक हिस्से के आसमान में टकरा कर जमींदोज हो गए थे। ये इस तरह की इतिहास की पहली दुर्घटना थी।

शाम को क़रीब साढ़े छह बजे सऊदी अरब एयरलाइंस के पायलट खालिद अल सुबैली ने साफ़ मौसम और शांत हवा की जानकारी के साथ, यात्री विमान बोइंग 747 की उड़ान भरी। विमान में 23 क्रू मेंबर व 289 यात्री सवार थे।

क़रीब 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ते हुए बोइंग 747 कुछ ही मिनटों में 10000 फीट से ऊपर पहुँच गया था। ऊपर उड़ने की इजाज़त नहीं मिलने के बाद ये जहाज़ 14000 फीट की ऊँचाई पर ही उड़ान भर रहा था। ठीक उसी वक़्त क़ज़ाकिस्तान एयरवेज़ का मालवाहक विमान 1907 को पायलट गेन्नादी चेरेपानोव 12 क्रू मेंबर व 25 अन्य सदस्यों के साथ दिल्ली की तरफ़ तेज़ रफ़्तार से बढ़ा रहा था। विपरीत दिशा से दिल्ली की ज़मीन को चूमने की तैयारी कर रहे इस विमान को दिल्ली एटीसी ने उसे 'एफ़एल 150' यानी 15 हज़ार फ़ीट, पर बने रहने का निर्देश दिया।

एटीसी ने क़ज़ाकिस्तान के विमान को सऊदी विमान के विपरीत दिशा में केवल 10 मील दूर होने के बारे में बताते हुए उसको देखे जाने पर 'रिपोर्ट, इफ़ इन साइट' यानी अगर ये विमान दिखाई दे तो एटीसी को इसकी सूचना दिये जाने भी निर्देश दिया।

उन दिनों दिल्ली हवाई अड्डे का रनवे वन-वे था यानी प्रस्थान और आगमन दोनों रनवे के एक ही तरफ़ से होता था।

कज़ाखस्तान के इस विमान में अरब देशों के सूत व ऊन के व्यापारी भारत आ रहे थे। शाम 6 बजकर 30 मिनट पर सऊदी अरब का विमान 14 हजार फीट की ऊंचाई पर था जबकि कजाकिस्तान का विमान 15 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे उतर रहा था। इस दौरान अचानक दोनों विमान तेज गति से एक दूसरे से आमने-सामने टकरा गए थे।
इसमें यात्री विमान चरखी दादरी से केवल 4 किलोमीटर दूर गांव ढाणी टिकान कलां के खेतों में व मालवाहक विमान गांव बिरोहड़ की ख़ाली ज़मीन में जा गिरा था। इस घटना का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 10 किलोमीटर तक मलबा गिरा। चरखी दादरी जैसे छोटे से शहर में इतने बड़े हादसे से निपटने के लिए कोई संसाधन मौजूद नहीं थे। केवल एक सरकारी अस्पताल था। जिसके अंदर एक या दो एम्बुलेंस थीं। कुछेक छोटे मोटे निजी अस्पताल थे। एक साथ इतने सारे शवों को प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से दादरी के सरकारी अस्पताल में भिजवाना शुरू कर दिया था। ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, निजी गाड़ियों में भरकर क्षत-विक्षत शव, मांस के लोथड़े अस्पताल में भेजे गए। ऐसे में इतने सारे शवों को रखने के लिए सरकारी अस्पताल का परिसर छोटा भी था और सुविधाएँ भी नहीं थी। इस दुर्घटना में सबसे ज्यादा 231 भारतीय, सऊदी अरब के 18, नेपाल के 9, पाकिस्तान के 3, अमेरिका के 2, ब्रिटेन के 1 नागरिक की मौत हुई थी व 84 की पहचान नहीं हो पाई थी। सभी का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार यहीं पर किया गया था।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे रमेश चंद्र लाहौटी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना का मुख्य कारण कजाकिस्तान विमान के पायलट द्वारा एटीसी के नियमों का पालन नहीं करना था। हो सकता है बादलों के कारण या संचार व्यवस्था के कारण पायलट अपने जहाज की वास्तविक ऊंचाई का भान नहीं कर सका था, इसके अलावा भाषा की दिक्कत भी हादसे का कारण बनी।

उस हादसे को याद करके आज भी लोग सिहर उठते हैं। हादसे के बाद उनके खेतों की जमीन बंजर हो गई व दस किलोमीटर के दायरे में दोनों विमानों के अवशेष व लाशों बिखर गई थीं। बाद में किसानों ने कड़ी मेहनत करके कई साल के संघर्ष के बाद बंजर जमीन को खेती लायक बनाया है।

आयोग की जाँच रिपोर्ट के मुताबिक़ क़ज़ाकिस्तान विमान की दुर्घटना की एक वजह कज़ाक पायलट को अंग्रेज़ी भाषा का कम ज्ञान था। जिसके कारण वो एटीसी के निर्देशों को ठीक से नहीं समझ पाया।

आयोग ने हवाई अड्डा प्रबंधन या एटीसी की तरफ़ से दुर्घटना में किसी भी भूमिका से साफ़ इनकार किया।

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इस दुर्घटना के बाद दिल्ली के रडार सिस्टम को आधुनिक कर दिया गया। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने भारत के अंदर और बाहर जाने वाले सभी विमानों में हवाई टकराव से बचने वाले सिस्टम को लगाना ज़रूरी कर दिया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका असर यह हुआ कि पायलटों के लिए अंग्रेज़ी का एक मानक अनिवार्य कर दिया गया।

भारत सरकार की तरफ़ से किसी को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया। सऊदी अरब सरकार ने प्रत्येक मृतक व्यक्ति के परिवार को 12,000 पाउंड का भुगतान किया।

दुर्घटना के वर्षों बाद भी विमानों का इस तरह हवा में टक्कर अविश्वसनीय घटना लगती है, लेकिन 349 लोगों की मौत अंतिम सच है और एक सच ये भी है कि यह भयानक हादसा चरखी दादरी के इतिहास के साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया है।

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रविंद्र सिंह श्योराण
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