कभी पूरब का मैनचेस्टर रहा कानपुर एके-47 की आवाज़ से तड़तड़ा उठा है। अपराध के व्यवसाय में फ़िर से ग्लैमर का तड़का लग गया है। पुलिस के आठ जवान पचास हज़ार के इनामी शातिर अपराधी विकास दुबे के साथ असली मुठभेड़ में जान गंवा बैठे हैं। इनमें सीओ देवेंद्र मिश्र, थाना शिवराजपुर प्रभारी महेश यादव, मंधाना चौकी प्रभारी अनूप कुमार, कांस्टेबल सुल्तान सिंह, राहुल, बबलू कुमार और जितेंद्र शामिल हैं। ऐसी घटना अपराध की दुनिया में बरसों तक याद रखी जाती है।
आसपास के इलाक़े में तगड़ी राजनीतिक पकड़ रखने वाला विकास दुबे कानपुर देहात स्थित अपने गांव बिकरू में मौजूद था। पुलिस ने तीन थानों के दल-बल के साथ उसके घर पर धावा बोल दिया। पुलिस को सुनियोजित जवाबी हमले की उम्मीद नहीं थी। परिणाम स्वरूप पुलिस के आठ जवान शहीद हो गए।
उत्तर प्रदेश में योगी राज की स्थापना के बाद दावा किया गया था कि या तो अपराधी जेल में होंगे या यमराज के पास। बहुत सारे छुटभैये गुंडे मारे भी गए। इत्तिफ़ाक़ से इनमें से ज़्यादातर पिछड़े वर्ग या आरक्षित वर्ग के थे।
अपराधी ही बन गए राजनेता
उत्तर प्रदेश में अपराध आज से नहीं हमेशा से ग्लैमरस व्यवसाय रहा है। पहले राजनीति ने अपराधी का उपयोग सत्ता के लिए ढके-छुपे तौर पर किया। फिर अपराधी बंदूक को खादी वाले पायजामे के नाड़े में खोस कर ख़ुद मैदान में आ गए।
हरि शंकर तिवारी, विरेंद्र शाही जैसे नाम अपराध और सत्ता के गलियारों में धूम से लिए गए। मुख़्तार अंसारी और बृजेश सिंह की रोमानी दुश्मनी, मुन्ना बजरंगी और श्री प्रकाश शुक्ला अपनी कुख्यात दिलेरी की वजह से आज भी जरायम की यूनिवर्सिटी में टॉप पर माने जाते हैं।
बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझता प्रदेश जो आज भी भारत का प्रधानमंत्री तय करता है, उस प्रदेश में रोज़गार के नाम पर अवसर शून्य हैं। खेती बाड़ी प्रेमचंद के पात्र हलकू के ज़माने से घाटे का सौदा रही है। अंत में दिल्ली, मुंबई का रास्ता बचता है। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके सपने बड़े होते हैं लेकिन संसाधन और समय नहीं होता और वे मुख़्तार, बृजेश या बजरंगी बनने निकल पड़ते हैं। राजनेताओं का हाथ ऐसे सिर की तलाश में रहता है।
ये पहली घटना नहीं है जब अपराध मुक्त प्रदेश का दावा करने वाली योगी सरकार में पुलिस की वर्दी ख़ून से लाल हुई है।
सुबोध कुमार सिंह की हत्या
3 दिसंबर, 2018 को बुलंदशहर के स्याना स्थित गांव में गौ हत्या की आशंका से गुस्साई भीड़ ने पत्थरबाज़ी और फ़ायरिंग की। भीड़ का फ़ायदा उठाकर अराजक तत्वों ने स्याना कोतवाली प्रभारी सुबोध कुमार सिंह के सिर में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारें दूध की धुली हुई हैं।
अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार में 2 मार्च, 2013 के दिन कुंडा प्रतापगढ़ में बहुचर्चित सीओ जियाउल हक़ हत्याकांड हुआ था। जिसमें अखिलेश सरकार में बाहुबली मंत्री रघुराज प्रताप सिंह “राजा भैया” पर आरोप लगे और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
पुलिसकर्मियों ने पहले भी गंवाई जान
2004 में नक्सलियों ने पीएसी के ट्रक पर घात लगाकर हमला किया जिसमें पीएसी के 13 जवानों समेत 17 पुलिस वाले मारे गए। 2007 में कुख्यात डकैत ठोकिया द्वारा घात लगाकर किए हमले में एसटीएफ के पांच जवान और एक मुखबिर मारा गया। 2018 में शामली के मुकीम काला गिरोह के बदमाश शब्बीर अहमद के साथ मुठभेड़ में कांस्टेबल अंकित कुमार की सिर में गोली लगने से मृत्यु हो गई। ऐसी ही घटना 1981 की है जब डाकू छविराम यादव के गिरोह ने पुलिस टीम पर घात लगाकर हमला किया और इसमें इंस्पेक्टर राजपाल समेत पुलिस और पीएसी के नौ जवान मारे गए।
राम राज का दावा करने वाली योगी सरकार के राज में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NRCB) की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार तीन लाख एफ़आईआर के साथ अपराध में यह देश का सिरमौर राज्य है।
अपराध में शामिल हैं नेता
उत्तर प्रदेश में हर दो घंटे में बलात्कार, डेढ़ घंटे में एक बच्चा अपराध का शिकार होता है। सर्वाधिक आपराधिक वारदातों वाले शहरों में राजधानी लखनऊ टॉप पर है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश के विधायकों और सांसदों में से हर पांचवा जनप्रतिनिधि अपहरण तथा अन्य अपराध में लिप्त है। इसमें भारतीय जनता पार्टी उच्च पायदान पर क़ायम है। जिन 64 सांसद-विधायकों ने अपहरण के आरोप क़बूल किए हैं, उनमें से 16 बीजेपी के हैं। विकास दुबे को लेकर देखिए वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह का वीडियो -
आवाज़ उठाने वालों का उत्पीड़न
कोरोना महामारी की आड़ में सीएए, एनआरसी एक्टिविस्ट डॉक्टर आशीष मित्तल और डॉक्टर उमर ख़ालिद और उन जैसे कितनों को गिरफ़्तार कर उत्पीड़ित किया जाता है। रिटायर्ड आईपीएस एसपी दारापुरी, एक्टिविस्ट एडवोकेट शोएब, कांग्रेस की नेता सदफ ज़फ़र, अध्यापक रोहिन शर्मा, एक्टिविस्ट दीपक कबीर और पवन राव अम्बेडकर की तसवीरों के होर्डिंग नाम-पते के साथ चौराहों पर लगा दिए जाते हैं।
आरोप लगाया गया कि इनके एनआरसी का विरोध करने के कारण दंगे भड़के जिससे हुए नुक़सान की भरपाई ये लोग करेंगे। इन होर्डिंग को हटाने की लड़ाई अदालत में लड़नी पड़ती है। योगी राज में अपराध और अपराधी मुक्त का नारा नाकारा सिद्ध हो रहा है। पुलिस या तो निर्दोषों का उत्पीड़न कर रही है या फिर ऐसे उच्च कुल के अपराधियों का शिकार हो रही है।
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