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वाराणसी से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी

वाराणसी लोकसभाः अमित शाह और हजारों भाजपा कार्यकर्ता किसलिए आए

पीएम मोदी वाराणसी से तीसरी बार बड़े अंतर से जीत हासिल करना चाहते हैं। मोदी के मुकाबले इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार अजय राय है, जो 2014 और 2019 के आम चुनावों में उसी सीट से मोदी से हार चुके हैं। यहां से हालांकि बसपा के अतहर जमाल लारी, अपना दल (कमेरावादी) के गगन प्रकाश यादव, युग तुलसी पार्टी के कोली शेट्टी शिवकुमार और दो निर्दलीय संजय कुमार तिवारी और दिनेश कुमार यादव भी लड़ रहे हैं। बसपा प्रत्याशी का एकमात्र मकसद मुस्लिम वोटों का बंटवारा या वोट काटना है। 

वाराणसी सहित पूर्वांचल की बची हुई सीटों पर लड़ाई बहुत स्पष्ट है। कहीं इंडिया गठबंधन हावी है तो कहीं भाजपा। वाराणसी ऐसी सीट है, जिसका असर आसपास भी पड़ता है। यही वजह है कि भाजपा ने अपने प्रमुख नेताओं को वाराणसी के क्षेत्र विशेष में मतदाताओं का दिल जीतने के काम पर लगाया है। अमित शाह सोमवार से छोटे से छोटे इलाके का दौरा कर रहे हैं। एक तरह से वाराणसी की पूरी चुनावी कमान अमित शाह के पास है। जेपी नड्डा भी कोई असर नहीं छोड़ रहे हैं। कहीं वे बुनकरों से मिल रहे हैं तो कहीं वे बनारसी पान का कारोबार करने वालों से मिल रहे हैं। कुछ कसर अगर बाकी है तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी बुधवार 29 मई को वाराणसी पहुंच गई हैं। वो महिला समूहों में जाएंगी। 
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अमित शाह की कार्यशैली बिल्कुल अलग है। वो 2014 और 2019 के आम चुनाव में वाराणसी की कमान संभाल चुके हैं। सोमवार शाम को यहां आने के बाद उन्होंने ओबीसी वर्ग के नेताओं के साथ सबसे पहले बैठक की। जिसमें ओम प्रकाश राजभर के साथ हुई बैठक महत्वपूर्ण है। उसके बाद उसी दिन घटनाक्रम यह हुआ कि सपा के बड़े भूमिहार नेता नारद राय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचवाते और अपने एक्स हैंडल पर मोदी का परिवार लिखते हुए पाए गए। जानकार कहते हैं कि नारद राय का असर सिर्फ बलिया तक सीमित है। लेकिन यह घटनाक्रम अमित शाह की वजह से हुआ। 

Varanasi Lok Sabha: What Amit Shah and thousands of BJP workers have been doing for three days - Satya Hindi
ओमप्रकाश राजभर के साथ सफेद कुर्ते में सपा नेता नारद राय अमित शाह के साथ।
शाह अभी 30 मई तक यहां जमा हुए हैं। क्योंकि 30 मई की शाम 5 बजे तक चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा। अभी तक के कार्यक्रम के अनुसार वो 30 मई को ही दिल्ली लौटेंगे लेकिन रुकने की भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। 
मुंबई में चुनाव खत्म होने के बाद ही केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भी वाराणसी पहुंच चुके हैं। वे अलग तरह का कैंपेन कर रहे हैं। वे वाराणसी के छोटे कारोबारियों से मिल रहे हैं। उन्होंने बुनकरों, पान वालों के समूहों से मुलाकात की है। पीयूष गोयल का दावा है कि पार्टी 400 पार के लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है। अमित शाह की तरह पीयूष गोयल मोदी के नजदीकी लोगों में माने जाते हैं।
पार्टी का प्रचार कर रहे काशी भाजपा प्रवक्ता नवरत्न राठी ने बताया- सोमवार को, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक टी स्टाल पर चाय पी और कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ बैठक भी की। मकसद था जमीनी स्तर पर प्रचार अभियान के बारे में फीडबैक लेना। इसी तरह से मंगलवार को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने झूले लाल मंदिर में एक कार्यक्रम में भाग लिया। वाराणसी के प्रभारी मंत्री जयवीर सिंह ने मतदाता जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वकीलों के साथ बैठक की। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने वाराणसी में शिक्षाविदों और तमिल समुदाय के साथ बैठक कर वोट मांगे। बाहर से आए हुए हजारों चुनिंदा नेता और कार्यकर्ता भी इसी तरह पूरे वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में फैले हुए हैं। हर घर पर भाजपा की दस्तक हो रही है।

इस जमावड़े का मतलब क्या है

इसका जवाब हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा, पूर्व डीन, सामाजिक विज्ञान संकाय, बीएचयू के हवाले से दिया गया है। प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि इस पूरी कवायद का मतलब मोदी को वाराणसी में ज्यादा से ज्यादा वोटों से जीताना है। उन्होंने कहा, "गर्मी भी बढ़ रही है और इसलिए... वरिष्ठ मंत्री और नेता बनारसी लोगों से जुड़कर उनका समर्थन हासिल करने के लिए छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं।"

विपक्ष ने मंगलवार को यहां राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त रैली की थी। जिसमें भारी भीड़ जुटी। इस रैली में किसान खास तौर पर आए थे। इसके अलावा काशी कॉरिडोर में अपना मकान-दुकान गंवाने वाले भी शामिल थे। इनके मुद्दों को राहुल और अखिलेश ने रखा भी। दोनों नेताओं के भाषणों से लगता है कि वाराणसी और आसपास जिन किसानों की जमीन का अधिग्रहण विभिन्न वजहों से किया गया है, वो नाराज लगते हैं। तभी वे लोग रैली में भी आए।

जातीय आंकड़े क्या कहते हैं

वाराणसी में जातीय समीकरण देखें तो कुर्मी मतदाता रोहनिया और सेवापुरी इलाके में 2 लाख, वैश्य मतदाता 2 लाख हैं। ये पूरी तरह से भाजपा को वोट देते हैं। करीब 20 फीसदी मुसलमान है। पांच फीसदी में अन्य आते हैं। 65 फीसदी शहर में रहती है और 35 फीसदी गांवों में रहती है। हालांकि कुल ओबीसी मतदाता 3 लाख हैं। जिनमें 2 लाख कुर्मी के साथ एक लाख यादव मतदाता भी शामिल हैं। लेकिन यहां पर 3 लाख मुस्लिम मतदाता भी हैं। मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। लेकिन यह तीन लाख मुस्लिम आबादी और एक लाख यादव मिलकर किसी भी समीकरण को बिगाड़ने का दमखम रखते हैं। लेकिन भाजपा ने बुनकर और अन्य पसेमंदा मुसलमानों के जरिए उनके बीच भी अच्छी पकड़ बनाई है। यानी सपा के पाले में मुस्लिम और यादव कितना जा पाते हैं, उससे ही मोदी की जीत का अंतर प्रभावित हो सकता है। हो सकता है कि इससे जीत का अंतर कम हो जाए। लेकिन अंतिम क्षणों में कुछ नहीं कहा जा सकता। 
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आंकड़े सिर्फ कागजों पर होते हैं और वे चुनावी विश्लेषकों की मदद करते हैं लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग होती है। यह नियम वाराणसी पर भी लागू होता है। वाराणसी में दलित मतदाता भी हैं। वे बिल्कुल शांत हैं। बसपा प्रमुख ने यहां से मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर मोदी की एक तरह से मदद ही की है लेकिन बसपा प्रत्याशी जमीन पर प्रभावी लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं। यहां तक कि बहुत सारे मुस्लिम मतदाता तो उनका नाम तक नहीं जानते। 
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क़मर वहीद नक़वी
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