उत्तर प्रदेश में बीते 15 दिनों के भीतर आधा दर्जन ज़िलों में दर्जन भर पत्रकारों पर पुलिस ने मुक़दमे दर्ज कर दिए हैं। कई ज़िलों में पत्रकारों को संगीन धाराओं में अभियुक्त बना दिया गया है तो कई जगहों पर आम लोगों के हित में और सरकारी गड़बड़ी के ख़िलाफ़ ख़बरें छापने-दिखाने पर मुक़दमे लाद दिए गए हैं। मेरठ, अलीगढ़, बिजनौर, मिर्ज़ापुर, आजमगढ़ से लेकर लखनऊ तक में पत्रकारों पर योगी सरकार के अधिकारियों का कहर टूट रहा है। पत्रकारों के उत्पीड़न को लेकर प्रदेश सरकार से लेकर ज़िला प्रशासन तक कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पत्रकार संगठन भी ज़्यादातर मामलों में चुप्पी साधे बैठे हैं।
पत्रकारों की गिरफ़्तारी क्यों; क्या उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता गुनाह है?
- उत्तर प्रदेश
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- 13 Sep, 2019

उत्तर प्रदेश में बीते 15 दिनों के भीतर आधा दर्जन ज़िलों में दर्जन भर पत्रकारों पर पुलिस ने मुक़दमे दर्ज कर दिए हैं। ये रिपोर्टें सरकारी कर्मियों की गड़बड़ियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के ख़िलाफ़ क्यों है?
कुछ मामलों में पत्रकारों ने मोर्चा खोलने की कवायद भी की तो उन्हें आश्वासन देकर टरका दिया गया। मिर्ज़ापुर में जहाँ ख़ुद मुख्यमंत्री ने मिड-डे-मील में धांधली उजागर करने वाले पत्रकार की रिपोर्ट पर दोषियों को सस्पेंड करने की कार्रवाई की वहीं व्हिस्लब्लोअर को ही आपराधिक मुक़दमे में फँसा दिया गया। आजमगढ़ में पुलिस दारोगा के बिना नंबर की स्कॉर्पियो गाड़ी रखने की ख़बर दिखाने वाले पत्रकारों को दूसरे मामले में फँसाकर आरोपी बना दिया गया, वहीं बिजनौर में दलितों पर दबंगों के कहर की ख़बर चलाने वालों को अपराधी बना मुक़दमे लाद दिए गए हैं।