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मोबाइल गेम की प्रतीकात्मक तसवीर।

यूपी: गेम खेलने से रोका तो नाबालिग बेटे ने मां को ही मार डाला

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। मोबाइल गेम खेलने से रोकने पर नाबालिग बेटे ने अपनी माँ को ही मार डाला। शव को भी उसने छुपाने की कोशिश की। हत्या का पता भी तीन दिन बाद तब चला जब शव से काफ़ी ज़्यादा दुर्गंध आने लगी।

पुलिस का कहना है कि लखनऊ में 16 वर्षीय किशोर ने रविवार तड़के अपनी मां को अपने पिता के लाइसेंसी रिवॉल्वर से मार डाला। उसे मोबाइल गेम खेलने की लत थी और इसी को लेकर आरोपी किशोर की उसकी मां से बहस हुई थी। उसी दौरान उसने गोली मारी। सिर में गोली लगने से महिला की कुछ देर बाद मौत हो गई।

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इस घटना के बाद किशोर ने अपनी मां के शव को एक कमरे में छिपा दिया और दो दिन तक अपनी नौ साल की बहन के साथ घर पर रहा। पुलिस ने कहा कि किशोर ने दुर्गंध को छिपाने के लिए रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल किया। किशोर की बहन ने पुलिस को बताया कि उसने किसी को बताने पर उसे भी जान से मारने की धमकी दी थी।

घटना लखनऊ के पीजीआई इलाक़े की है। घर में 40 वर्षीय साधना, 16 साल का बेटा और क़रीब 9 साल की बेटी साथ रहते थे। साधना के पति कोलकाता में रहते हैं। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त एसएम कासिम आबिदी ने कहा, 'मंगलवार शाम को जब सड़े-गले शरीर की गंध तेज हो गई, तो उसने अपने पिता को घटना की सूचना दी। पिता ने पड़ोसियों को फोन किया और उन्होंने पुलिस को सूचित किया।' किशोर के पिता सेना में हैं और फ़िलहाल पश्चिम बंगाल में तैनात हैं।

पुलिस का कहना है कि शुरू में किशोर ने एक नकली कहानी बनाई और अपने पिता को बताया कि उसकी माँ को एक बिजली मिस्त्री ने गोली मार दी थी, जो किसी काम से घर आया था। पुलिस के अनुसार किशोर ने पुलिस को भी वही कहानी सुनाई। पुलिस ने कहा कि हमने जांच की और पाया कि यह पूरी तरह से काल्पनिक था और फिर हमने किशोर को हिरासत में ले लिया। पुलिस का कहना है कि पूछताछ के दौरान किशोर ने अपना जुर्म कबूल कर लिया।

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बच्चों को मोबाइल गेम की बीमारी?

मानसिक विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल गेम पर अधिक समय व्यतीत करने के कारण बच्चों का गेम के प्रति लगाव नशे का रूप ले चुका है। मानसिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक तरह की बीमारी है। इसे पैथोलॉजिकल गेमिंग कहते हैं। इसका लक्षण यह है कि जब बच्चों को मोबाइल न दिया जाए तो वे घरवालों से झगड़ा करने लगते हैं। खाना खाने और सोने के लिए कहने पर झुंझलाने लगते हैं। छोटी-छोटी बातों पर भी बड़े ख़तरनाक क़दम उठाने का डर रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अभिभावकों द्वारा बच्चों पर पूरा समय नहीं दिए जाने की वजह से बच्चे मोबाइल गेम के प्रति ज़्यादा आकर्षित होते हैं। विषेशज्ञ सुझाव देते हैं कि बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने पर मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। 
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क़मर वहीद नक़वी
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