शायद उत्तर प्रदेश और दिल्ली की पुलिस ने एक रटे-रटाये वाक्य को आधार बना लिया है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के दौरान गोली नहीं चलाई है। उत्तर प्रदेश में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान 19 लोगों की मौत होने के बाद पुलिस ने गोली से मौत होने की बात को स्वीकार किया लेकिन वह भी सिर्फ़ 1 शख़्स की। इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान मेरठ और फिरोज़ाबाद सबसे ज़्यादा प्रभावित रहे हैं। दोनों ही जिलों में 6-6 लोगों की मौत हुई है।
फिरोज़ाबाद में अधिकांश मौतें कस्बे के नैनी ग्लास चौराहे के आसपास हुई हैं। फिरोज़ाबाद में शीशे और चूड़ियां बनाने की फ़ैक्ट्रियां हैं। इनमें से अधिकांश फ़ैक्ट्रियों के मालिक हिंदू हैं जबकि उनके यहां कारीगरों में अधिकांश मुसलमान हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने इन लोगों की मौत कैसे हुई और पुलिस का इस बारे में क्या कहना है, इसे लेकर विस्तार से ख़बर दी है।
‘छाती में लगी थी गोली’
मारे गए 6 लोगों में से 21 साल के नबी जान भी थे। नबी चूड़ी की दुकान में काम करते थे और छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता अयूब ने बताया, ‘नबी की छाती में गोली लगी थी। उस वक्त नबी वर्कशॉप से घर वापस लौट रहा था। उसके दोस्त उसे घर लेकर आये, हम उसे एसएन अस्पताल ले गए जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।’ अख़बार के मुताबिक़, अयूब ने कहा कि उन्होंने वही लिखा जो पुलिस ने उनसे लिखने के लिए कहा। पुलिस का कहना है कि सच्चाई का पता लगाने के लिए वह फ़ॉरेंसिक जाँच करेगी। एसएन अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके पांडे ने अख़बार को बताया कि नबी के शरीर में गोली घुसी और निकली है लेकिन शरीर से गोली नहीं मिली है। इसका मतलब साफ़ है कि नबी को गोली लगी है। लेकिन एफ़आईआर में गोली से घायल होने की बात ही नहीं दर्ज की गई है।
‘सुबह 4 बजे शव दफ़नाने को किया मजबूर’
25 साल के राशिद फिरोज़ाबाद के कश्मीरी गेट के रहने वाले थे। उनके पिता नूर मुहम्मद उर्फ़ कल्लू ने बताया, ‘राशिद विकलांग था। वह चूड़ी की दुकान में काम करके 150-200 रुपये हर दिन कमा लेता था। प्रदर्शन वाले दिन राशिद अपनी मजदूरी लेने गया था और उसका प्रदर्शन से कुछ लेना-देना नहीं था।’ कल्लू ने कहा कि पुलिस ने उन्हें सुबह 4 बजे राशिद के शव को दफ़नाने के लिए मजबूर किया। पुलिस ने इस मामले में दर्ज रिपोर्ट में कहा है कि ऐसा लगता है कि पत्थर के कारण राशिद के सिर में चोट लगी है। कल्लू ने कहा कि राशिद का सिर फट चुका था और पत्थर लगने के कारण ऐसा नहीं हो सकता। इस मामले में चिकित्सा अधीक्षक का कहना है कि राशिद के सिर में गहरी चोट थी लेकिन हमें उसके सिर में गोली के निशान नहीं मिले हैं।
'पुलिस ने कहा- जल्दी शव दफ़नाओ'
24 साल के अरमान उर्फ़ कल्लू की भी मौत इस प्रदर्शन के दौरान हुई है। अरमान के चाचा रफ़ीक़ ने बताया, ‘20 दिसंबर की शाम को पड़ोसियों ने बताया कि कल्लू घायल है और गली में गिरा हुआ है। हम उसे एसएन अस्पताल में ले गए। मौत के बाद 21 दिसंबर को पुलिस ने हमें उसे जल्दी दफ़नाने के लिए मजबूर किया।’ इस मामले में पुलिस ने दर्ज की गई एफ़आईआर में गोली लगने के कारण घायल होने की बात कही है और फ़ॉरेसिंक जाँच की बात कही है। इस मामले में चिकित्सा अधीक्षक पांडे का कहना है कि अरमान के शरीर में गोली घुसने और निकलने के निशान हैं लेकिन गोली नहीं मिली है।
‘जो पुलिस ने कहा, वही लिखा’
इसी तरह 30 साल के हारून का भी मामला है। हारून के चचेरे भाई जक़ीउद्दीन ने बताया, ‘हारून भैंस बेचकर आ रहा था और जब उसे गोली लगी तब वह एक ऑटोरिक्शा में बैठा था। वह घर में कमाने वाला मुख्य व्यक्ति था।’ 26 दिसंबर को दिल्ली के एम्स ट्रामा सेंटर में हारून की मौत हो गई थी। एफ़आईआर में गोली से घायल होने की बात नहीं लिखी गई है। जक़ीउद्दीन ने कहा, ‘हमने वही लिखा, जो पुलिस ने हमसे लिखने के लिए कहा।’ एम्स ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हारून की गर्दन में गोली मिली थी। इस मामले में पुलिस का कहना है कि बाक़ी मामलों की ही तरह धारा 304 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है।
18 साल का मुक़ीम क़ुरैशी चूड़ियों में ज़री का काम करता था। मुक़ीम के पिता मुबीन ने कहा, ‘जब मुक़ीम घर लौट रहा था तो उसके पेट में गोली लगी थी। उसे एसएन अस्पताल में ले गए लेकिन डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया। हम उसे आगरा ले गये, जहां से उसे दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया।’ मुबीन ने कहा कि हमें कोई कागज नहीं दिये गये और सिर्फ़ शव का पंचनामा दिया गया।
अख़बार के मुताबिक़, ‘सफ़दरजंग अस्पताल के एक सूत्र ने कहा कि मरीज के शरीर में गोली लगने का घाव था। हमने देखा कि गोली पीठ से घुसी और छाती से निकल गई। लेकिन शरीर में गोली नहीं मिली। ऐसा लगता है कि उसे किसी ताक़तवर हथियार से गोली मारी गई है।’
ऐसे ही दो अन्य मामले 45 साल के मुहम्मद शफीक़ और 25 साल के अवरार के हैं। शफीक़ के छोटे भाई मुहम्मद सईद ने बताया कि जब शफीक़ को गोली लगी तो वह वर्कशॉप से लौट रहा था। इस मामले में दर्ज एफ़आईआर में बुलेट की गोली से घायल होने का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन अख़बार के मुताबिक़, सफ़दरजंग में हुए एक्स-रे की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि शफीक़ के सिर में गोली लगी है। सफ़दरजंग अस्पताल के एक सूत्र ने अख़बार को बताया कि मरीज के सिर में गोली लगकर निकली थी।
फिरोज़ाबाद पुलिस का दावा है कि उसने प्रदर्शनों के दौरान एक भी गोली नहीं चलाई है। पुलिस ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया है कि इन सभी 6 मामलों में पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर लिया है और स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम इसकी जाँच कर रही है।
इतने सारे मामलों के सामने आने के बाद भी पुलिस ने आईपीसी की धारा 304 के तहत मुक़दमा दर्ज किया है न कि धारा 302 के तहत। आख़िर पुलिस इतने सारे तथ्यों को कैसे दरकिनार कर सकती है जो कहते हैं कि मृतकों को गोली लगी थी।
फिरोज़ाबाद में ही ऐसे वीडियो सामने आये थे जिसमें पुलिस दुकानों में तोड़फोड़ करने वाली, आगजनी करने वाली भीड़ के साथ खड़ी दिखी थी। इससे पहले पुलिस प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले अपने कर्मचारियों को यह कहकर क्लीन चिट दे चुकी है कि उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी। यह सिर्फ़ फिरोज़ाबाद की ही बात नहीं है, यूपी में अन्य कई शहरों में भी ऐसे प्रदर्शनों में लोगों की मौत होने की ख़बर है। लेकिन पुलिस की इस तरह की कार्यप्रणाली में जिसमें वह सबूत होने के बाद भी किसी की भी मौत गोली से न होने की अपनी जिद पर अड़ी है, कैसे इन लोगों को न्याय मिलेगा, उत्तर प्रदेश में फिलवक़्त यही सबसे बड़ा सवाल है।
अपनी राय बतायें