हाथरस में बीती 14 सितंबर को एक युवती के साथ हुई दिल दहला देने वाली घटना के बाद युवाओं और किसानों का सत्ता के ख़िलाफ़ आक्रोश खुलकर सामने आ गया है। इसी के साथ सियासी समीकरण बन भी रहे हैं और उधड़ भी रहे हैं। राहुल-प्रियंका पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए हाथरस पहुंचे तो एसपी ने भी जगह-जगह लाठीतंत्र के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए।
इसी बीच, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी पर लाठियां बरसाईं गईं, जिसकी गूंज अब जाटलैंड के साथ पूरे देश में सुनाई दे रही है। लंबे समय से आक्रोशित युवाओं, नाराज किसानों और सत्ताधारियों की कथनी और करनी के अंतर ने उत्तर प्रदेश के सियासी समुद्र में मंथन की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और निस्तेज पड़ी आरएलडी को भी ऑक्सीजन दे दी है।
दलित युवती के साथ हैवानियत
हाथरस में एक दलित युवती के साथ 14 सितंबर, 2020 को दबंगों ने क्रूरता दिखाई। उसकी जुबान काट ली गई, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई और शरीर पर इतने जुल्म किए गए कि हैवानियत भी शरमा जाए। पुलिस ने उसे जिला अस्पताल पहुंचाया और संदीप नामक व्यक्ति के ख़िलाफ़ जानलेवा हमला और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया।
19 सितंबर को संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया और इसमें छेड़खानी की धारा 354 बढ़ा दी गई। 22 सितंबर को पीड़िता के बयान के आधार पर सामूहिक दुराचार की धारा 374-डी बढ़ाई गई और तीन अन्य व्यक्तियों लवकुश, रवि और रामू को भी नामजद कर लिया गया। 26 सितंबर तक पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
जिस गांव में यह दरिंदगी हुई वहां 600 परिवारों में करीब आधे ठाकुर हैं जबकि मात्र 15 परिवार दलितों के हैं। पीड़ितों पर गांव के दबंगों का इतना खौफ था कि हादसे से काफी पहले ही पीड़िता ने घर से अकेले बाहर निकलना बंद कर रखा था।
ऑनर किलिंग बताने की कोशिश
अन्याय के ख़िलाफ़ चंदेली इलाके में पीड़ितों की आवाज़ हमेशा गुम होती रही है लेकिन इस बार गैंगरेप के मामले में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं। मुख्यमंत्री ने एक तरफ एसआइटी जांच की घोषणा की लेकिन सत्ता के इरादे इस पूरे मामले को ऑनर किलिंग का जामा पहनाने के दिखाई देते हैं।
इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा कि एक तरफ सरकार जांच की घोषणा करती है, दूसरी तरफ सत्ता की मशीनरी के पुर्जे ऐसे कृत्य करते नजर आते हैं, जिसमें आरोपियों को बचाने की गंध मिलने लगी। उत्तर प्रदेश के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने कह दिया कि पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ ही नहीं बल्कि उसकी मौत गर्दन में चोट की वजह से हुई। उन्होंने यह भी कह दिया कि मामले को जातीय एंगल देने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब है यही बात मुख्यमंत्री योगी ने भी कही। यही नहीं, एडीजी ने युवती के मृत्यु पूर्व दिए बयान को भी नकार दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि युवती ने पुलिस को दिए बयान में बलात्कार की बात ही नहीं की।
अपनी करतूतों को छिपाने के लिए पुलिस ने धारा 144 की आड़ में दमनकारी रवैया अपनाया और पीड़ित परिवार को उनके ही घर में नजरबंद कर दिया। जब आरएलडी के जयंत चौधरी अनुमति लेकर पहुंचे तो पुलिस ने उन पर निर्दयता से लाठियां भांजी। उनके साथ गए समर्थकों ने उनके चारों तरफ घेरा बनाते हुए लाठियां अपने ऊपर झेलकर उनकी हिफाजत की।
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी पर लाठियां बरसीं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई।
जाटलैंड के रूप में मशहूर वेस्ट यूपी में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे। जयंत चौधरी के समर्थन में उतरे लोगों में युवाओं की बड़ी संख्या देखकर सत्तादल के नुमाइंदों को समझ नहीं आ रहा कि आरएलडी के मुखिया अजित सिंह के कृत्यों से जो जाट समुदाय और खासकर युवा बेहद नाराज हो गए थे, वे सरकार के विरोध में कैसे उतर आए!
आखिर युवा जयंत के लिए 'लाठी का बदला लाठी और खून के बदले खून' जैसे अहिंसक नारे क्यों लगा रहे हैं। सत्तापक्ष के स्थानीय अलंबरदार व्यक्तिगत वार्ता में तो खूब रोते-धोते हैं लेकिन आधिकारिक वार्ता में उनकी जुबान पर ताला लग जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कभी राष्ट्रीय लोकदल सबसे बड़ी ताकत हुआ करता था। चौधरी चरणसिंह ने किसानों को एकजुट कर बड़ी राजनीतिक ताकत हासिल की थी। जाट और मुसलिम समुदाय उनका आधार वोट बैंक था। उनकी विरासत विदेश में रहकर पढ़ाई करने वाले अजित सिंह ने संभाली तो लोगों ने उन्हें भी सिर-आंखों पर बिठाया। लेकिन सिर्फ चुनावों में दिखाई देने और दलबदल किंग के तमगे ने उनकी राजनीतिक जमीन में दीमक का काम किया।
योगी सरकार क्यों कह रही है कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ। देखिए, वीडियो -
खिसकती गई आरएलडी की जमीन
2009 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में आरएलडी के 5 सांसद जीत कर आए लेकिन 2012 में यूपी के विधानसभा चुनाव में आरएलडी मात्र 8 सीटें ही जीत सकी। यह हालत 2017 में और बुरी हो गई और उन्हें केवल एक सीट पर ही सफलता मिली लेकिन वह एकमात्र विधायक भी पार्टी छोड़ कर चला गया।
2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी लोकसभा में खाता भी नहीं खोल पाई। आरएलडी के सुप्रीमो अजित सिंह और उनके सुपुत्र जयंत चौधरी भी हार गए। आरएलडी का अजेय किला बागपत भी ध्वस्त हो गया।
दंगों के बाद धार्मिक ध्रुवीकरण
इसके पीछे अजित सिंह की लापरवाही, जनता से दूरी और दलबदल की राजनीति को पराजय की वजहों में माना जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि इसका सबसे बड़ा कारण मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद हुआ धार्मिक ध्रुवीकरण था, जिसमें अजित ही नहीं बल्कि अन्य दल भी हवा में तिनकों की तरह उड़ गए और यही विभाजन आरएलडी का समीकरण बिगाड़ गया क्योंकि पार्टी का आधार वोट बैंक जाट-मुसलिम समरसता पर टिका था। कथित राष्ट्रवाद और लुभावने सपनों में जाट युवा बीजेपी के प्रति आसक्त था ही और साथ में धार्मिक उन्माद ने भी आरएलडी को वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया।
2020 में स्थितियां बदली हुई हैं। युवा मानते हैं कि विकास की जगह विनाश हो गया। बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हुए। नई नौकरियों के आसार कम हैं और खेती-किसानी की हालत बदतर है।
हाल ही में पारित कराए गए कृषि बिल को किसान अपनी कब्रगाह मान रहा है। जाहिर तौर पर ऐसे समय में जयंत पर बरसी सरकारी लाठियों को जाट समुदाय अस्मिता पर हमले के तौर पर देखेगा तो आरएलडी अपना खोया जनाधार वापस लाने के सपने संजो सकती है।
जयंत चौधरी ने मुजफ्फरनगर में महापंचायत बुलाकर यह दर्शाने की भी कोशिश की है कि देश मे अभी आरएलडी का राजनीतिक वजूद बाकी है। पंचायत में कांग्रेस, एसपी, भाकियू और जाटों की समस्त खापों की भागीदारी अगर कुछ खास न भी मानी जाए लेकिन सत्तादल के लिए खतरे की घंटी तो है ही जो नौकरशाही की बदौलत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बजने लगी है।
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