उत्तर प्रदेश की सियासत में चल रही तमाम उठा-पटक के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा लखनऊ में डेरा डालने जा रही हैं। प्रियंका अब ‘मिशन यूपी’ में जुटेंगी और उनकी कोशिश 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की दमदार मौजूदगी दर्ज करवाने की है।
प्रियंका जुलाई से हर महीने के ज़्यादातर दिन लखनऊ में रहेंगी। कांग्रेस के लिए ऐसा करना बेहद ज़रूरी भी है क्योंकि चुनाव में महज 8 महीने का वक़्त बचा है और कांग्रेस के पास प्रियंका और राहुल गांधी से बड़ा चेहरा यहां नहीं है। लेकिन राज्य की प्रभारी होने के नाते प्रियंका के कंधों पर ज़्यादा बड़ी जिम्मेदारी है।
यह साफ है कि कांग्रेस बेहद ख़राब हालात से गुजर रही है और साल 2022 सियासत के लिहाज से बेहद अहम है। इसमें सात राज्यों में चुनाव होने हैं जिसमें उत्तर प्रदेश भी है। प्रियंका को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए ख़राब रहे थे।
बावजूद इसके प्रियंका योगी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करती रहीं लेकिन अब लड़ाई सोशल मीडिया से ज़्यादा ज़मीन पर लड़ी जानी है तो प्रियंका लखनऊ में डटकर पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलेंगी और प्रदेश में कई जगहों के दौरे पर भी निकलेंगी।
शीला कौल के आवास में रहेंगी
प्रियंका लखनऊ में पूर्व राज्यपाल और पार्टी की वरिष्ठ नेता रहीं शीला कौल के आवास में रहेंगी। इस आवास में रंग-रोगन से लेकर बाक़ी ज़रूरी काम किए जा रहे हैं और जल्द ही यह प्रियंका की कांग्रेस कार्यकर्ताओं संग बैठकों के लिए तैयार हो जाएगा। यह आवास गोखले मार्ग पर है जो उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय से तीन किमी. की दूरी पर है।
चुनौतियों का अंबार
लेकिन प्रियंका के सामने चुनौतियां बहुत ज़्यादा हैं। एक ओर जहां अखिलेश यादव छोटे दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं, वहीं कांग्रेस के साथ अब तक ऐसा कोई दल नहीं है जो उसके साथ साझेदारी कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो। मायावती भी अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बीएसपी-एसपी-आरएलडी के गठबंधन में जगह नहीं मिल सकी थी और उसने अकेले चुनाव लड़ा था। तब उसकी बुरी हार हुई थी और रायबरेली में सोनिया गांधी को छोड़कर कोई भी सीट उसकी झोली में नहीं गई थी। यहां तक कि राहुल गांधी भी अमेठी की सीट से चुनाव हार गए थे।
ऐसे में कांग्रेस के सामने अकेले ही चुनाव में उतरना मज़बूरी है।
प्रत्याशी चयन का काम शुरू
प्रियंका गांधी ने हाल ही में पार्टी के जिला अध्यक्षों से कहा है कि वे चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उतरने के इच्छुक नेताओं के नाम भेजें। प्रदेश पदाधिकारियों से भी इस संबंध में जानकारी देने के लिए कहा गया है। जिला पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वालों को कांग्रेस टिकट वितरण में वरीयता देगी।
पंचायत चुनाव को लेकर दावा
कांग्रेस ने दावा किया है कि उसे प्रदेश की 270 जिला पंचायत सीटों पर जीत मिली है और उसने कुल 1 करोड़ 10 लाख से ज़्यादा वोट हासिल किए हैं और यह 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल मिले वोटों से दोगुने हैं। इन नतीजों से पार्टी का उत्साह दोगुना हो गया है।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी को बढ़ाया है और सोशल मीडिया वॉरियर्स की तैनाती भी की है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस की इकाई और सोशल मीडिया टीम के कामकाज पर भी प्रियंका लगातार नज़र बनाए रखती हैं।
हालांकि, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की सक्रियता ने भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरा है और लल्लू ने कई जगहों के ताबड़तोड़ दौरे भी किए हैं लेकिन कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण यह जारी नहीं रह सका।
कांग्रेस को अगर उत्तर प्रदेश में ख़ुद को जिंदा रखना है तो उसे प्रियंका को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना ही होगा। क्योंकि पार्टी के पास वैसे ही मज़बूत संगठन नहीं है और बिना चेहरे के चुनाव लड़ना उसकी मुसीबतों में इजाफा करेगा।
किसान महापंचायतों में जुटी थी भीड़
कोरोना की दूसरी लहर से पहले प्रियंका ने किसान आंदोलन के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर किसान महापंचायत कर पार्टी को खड़ा करने की कोशिश की और इन महापंचायतों में जुटी भीड़ से लगा कि प्रियंका की सभा के नाम पर अभी भी कांग्रेसियों से लेकर आमजन घर से निकलते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, प्रियंका को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने से सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान आ सकती है। देखना होगा कि प्रियंका कितनी सीटों पर मज़बूत उम्मीदवार दे पाती हैं और कितनी ज़मीन नाप पाती हैं क्योंकि उनका और कांग्रेस कमेटी का संघर्ष ही पार्टी को जिंदा कर सकता है।
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