देश भर में लव जिहाद को लेकर जारी शोर के बीच बीजेपी शासित राज्य सरकारें अंतर धार्मिक शादियों को रोकने की मंशा से क़ानून बना रही हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारें इस मामले में आगे हैं और इन राज्यों की पुलिस ने ऐसे कुछ मामले सामने आने का दावा किया है।
इसी के बीच, इलाहाबाद और कर्नाटक हाई कोर्ट के उन फ़ैसलों की भी जोरदार चर्चा है कि जिनमें इन अदालतों ने कहा है कि किसी के व्यक्तिगत रिश्तों में दख़ल देना उनकी आज़ादी में गंभीर अतिक्रमण है। अदालतों ने यह भी कहा है कि महिला या पुरूष का किसी भी शख़्स के साथ रहने का अधिकार उनके धर्म से अलग उनके जीवन और व्यक्तिगत आज़ादी के अधिकार में ही निहित है।
उत्तर प्रदेश में आए एक ताज़ा मामले में राज्य की राजधानी लखनऊ में पुलिस ने एक हिंदू महिला और मुसलिम शख़्स की शादी को बीच में ही रुकवा दिया। पुलिस ने इसके लिए हाल ही में बनाए गए 'उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2020' का हवाला दिया।
पुलिस स्टेशन लाया गया
पुलिस ने विवाह में शामिल दोनों पक्षों से कहा कि वे उनके साथ पुलिस स्टेशन चलें। पुलिस स्टेशन में दोनों पक्षों से कहा गया कि वे शादी के लिए लखनऊ के डीएम द्वारा दी गई अनुमति को दिखाएं। क्योंकि योगी सरकार के नए क़ानून में कहा गया है कि ऐसी शादी के बाद धर्मांतरण के लिए दो महीने पहले डीएम को जानकारी देनी होगी।
लखनऊ के पुलिस अफ़सर सुरेश चंद्र रावत ने पत्रकारों से कहा, ‘2 दिसंबर को हमें सूचना मिली कि एक समुदाय की लड़की दूसरे समुदाय की लड़की से शादी करना चाहती है। हमने दोनों पक्षों को पुलिस स्टेशन बुलाया और उन्हें नए धर्म परिवर्तन प्रतिषेध क़ानून की कॉपी दी।’ रावत ने कहा कि इस पर दोनों पक्षों ने लिखित में सहमति दी कि क़ानून के मुताबिक़ वे इसके बारे में डीएम को जानकारी देंगे और शादी के लिए आगे बढ़ने से पहले उनकी अनुमति लेंगे।
एनडीटीवी के मुताबिक़, लड़की और लड़के के परिवारों की सहमति से यह शादी हो रही थी और इसमें किसी भी तरह का दबाव या जबरदस्ती नहीं थी। इसके अलावा इसमें लड़की या लड़के के धर्म बदले जैसे जाने जैसी भी कोई बात नहीं थी।
योगी सरकार के क़ानून को लेकर देखिए वीडियो-
क्या है क़ानून में?
योगी सरकार के क़ानून के मुताबिक़ अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के साथ छल, कपट या बल से धर्म परिवर्तन के मामलों में 3 साल से 10 साल तक की सजा है और 25 हजार जुर्माना है जबकि आम मामलों में 1-5 साल की सज़ा और 15 हजार के जुर्माने का प्रावधान है। नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सज़ा हो सकती है। इसके अलावा जबरन सामूहिक धर्मांतरण के मामले में भी 10 साल की सज़ा का प्रावधान है।
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सवालों के घेरे में है पुलिस
'उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2020' जारी होने के बाद बरेली के एक मामले को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस सवालों के घेरे में है। इस मामले में बरेली ज़िले के थाना देवरनिया के रहने वाले टीकाराम राठौर ने शिकायत दर्ज करवाई है कि उनका पड़ोसी ओवैस अहमद (24) उनकी 20 वर्षीय विवाहित बेटी को धर्मान्तरण और पुनर्विवाह की धमकी देता है।
लेकिन टीकाराम राठौर के पुत्र केसरपाल राठौर ने कहा है कि उसके पिता और परिजन स्वयं इस मामले को फिर से उभारने के पक्ष में नहीं थे। उसका यह भी कहना है कि बहन के विवाह के बाद ओवैस और उसकी (बहन की) कोई बातचीत या मुलाक़ात तक नहीं हुई। दूसरी ओर, ओवैस के परिजनों ने भी पुलिस पर फ़र्ज़ी मामला बनाकर उसे व्यर्थ में परेशान किये जाने का आरोप लगाया है।
बहरहाल, लखनऊ वाले मामले में पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल तो खड़े होते ही हैं। बात यह भी है कि पुलिस इस तरह बीच में ही शादियों को रुकवा देगी तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रेमी जोड़े दूसरे राज्यों में भागकर शादियां करेंगे।
अदालतें करेंगी खारिज?
भले ही बीजेपी और योगी सरकार लव जिहाद को लेकर लाए गए क़ानून को बड़े राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक के रूप में देख रहे हों लेकिन अदालत में इसका टिकना बेहद मुश्किल है। इलाहाबाद और कर्नाटक हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का मौलिक अधिकार है और महज अलग-अलग धर्म या जाति का होने की वजह से किसी को साथ रहने या शादी करने से नहीं रोका जा सकता है। लेकिन बीजेपी शासित राज्य सरकारें शायद अदालतों के फ़ैसलों को जान-बूझकर नज़रअंदाज कर रही हैं।
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