समाजवादी पार्टी के मुख्यालय लखनऊ पर आज 27 दिसंबर को सुबह एक होर्डिंग नजर आया, जिस पर लिखा है - ओमप्रकाश राजभर का समाजवादी पार्टी कार्यालय में आना प्रतिबंधित है। राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष हैं। जुलाई तक सुभासपा और सपा का गठबंधन था, जो टूट चुका है। लेकिन किसी नेता के आने के प्रतिबंध का होर्डिंग पहली बार किसी राजनीतिक दल के दफ्तर पर पहली बार देखा गया है।
सपा की युवा शाखा समाजवादी युवजन सभा के नेता आशुतोष सिंह ने इस होर्डिंग को लगाने का काम किया है। इसे लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या यह होर्डिंग सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के निर्देश पर लगाया गया है या फिर युवा नेता ने अति उत्साह में होर्डिंग लगाया है। सपा ने आधिकारिक तौर पर अभी कुछ नहीं कहा है लेकिन सुभासपा और ओमप्रकाश राजभर इससे तिलमिला गए हैं। उन्होंने इस पर सधी प्रतिक्रिया दी और इसे पिछड़ों और अति पिछड़ों के सम्मान से जोड़ दिया।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और महासचिव पिता-पुत्र हैं। सुभासपा के महासचिव अरुण राजभार ने होर्डिंग लगाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा - ये गुंडागर्दी करने वाले लोग हैं। ये सिर्फ यादवों को साथ लेकर चलने वाले लोग हैं। इन्होंने चार बार यूपी में सरकार बनाई लेकिन मुसलमानों को उनका हक नहीं दिया। इसलिए मुसलमान इनसे नाराज है। 38 फीसदी अति पिछड़ों को भी सपा ने अपनी सरकार में हिस्सेदारी नहीं दी थी। केवट, मल्लाह, बंजारा, निषाद समाज को यह पार्टी हिस्सेदारी दे नहीं पाई। ये सारे अति पिछड़े लोग तो इनके कार्यालय पर झांकने वाले नहीं हैं। मुसलमान इनके कार्यालय पर झांकने वाले नहीं हैं। ओमप्रकाश राजभर की अति पिछड़ों में बढ़ती लोकप्रियता से अखिलेश यादव हताशा के शिकार हो गए हैं। इनके कार्यकर्ता हताशा के शिकार हो गए हैं। इसलिए यह होर्डिंगबाजी हताशा में की जा रही है।
लखनऊ: ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ सपा कार्यालय के बाहर लगाया गया पोस्टर। pic.twitter.com/SshDV28FnV
— Heena Kukreja (@official_heenaK) December 27, 2022
राजभर के पैंतरे
सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर यूपी की राजनीति में पैंतरेबाज नेता के रूप में जाने जाते हैं। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले राजभर की पार्टी का गठबंधन बीजेपी के साथ था। ओमप्रकाश राजभर ने 2017 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था और वह 2 साल तक योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे। लेकिन पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे सहित कुछ अन्य मांगों को लेकर वह सरकार से बाहर निकल गए थे। इसके बाद राजभर ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया और मिलकर चुनाव लड़ा। हालांकि सपा से भी सीट बंटवारे को लेकर तनातनी रही, लेकिन बाद में सब ठीक होने का दावा दोनों तरफ से किया गया।
चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी की सरकार फिर से बन गई। कुछ दिन की चुप्पी के बाद राजभर की बेचैनी बढ़ने लगी। उन्होंने अखिलेश यादव के खिलाफ बयान देना शुरू किया कि वो एसी कमरे में बैठकर राजनीति करते हैं। यह समय घर में बैठने का नहीं है। लेकिन चंद दिनों बाद ओमप्रकाश राजभर इस बयान से मुकर गए लेकिन यह दोहराया कि अखिलेश को संघर्ष की राजनीति करना होगी। धीरे-धीरे राजभर के बयान बढ़ने लगे और जुलाई 2022 में उन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया।
सुभासपा के छह विधायक हैं। इन्हीं के दम पर ओमप्रकाश राजभर अति पिछड़ी जातियों की राजनीति करते हैं। यूपी के बाहुबली और तमाम आरोपों में जेल में बंद मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी सुभासभा का विधायक है। राजभर का फंडा बहुत सीधा है। वे अपने काम को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी से संबंध ठीक रखते हैं। 2017 में जब उन्होंने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा था तो यह बात उन्होंने साफ कर दी थी। लेकिन जब उनके काम सीएम योगी आदित्यनाथ ने करने बंद कर दिए तो राजभर चुनाव से पहले एनडीए से निकल गए।
ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का पूर्वी उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच काफी प्रभाव है। उनके सारे विधायक पूर्वी उत्तर प्रदेश से हैं। लेकिन यूपी में मुख्यधारा की पार्टियों को राजभर के सहारे की जरूरत इसलिए पड़ती है, क्योंकि अति पिछड़ा वर्ग पूर्वी यूपी में चुनाव का माहौल बना देते हैं। पिछले चुनाव में आंबेडकर नगर, आजमगढ़, संत कबीर नगर, सिद्धार्थ नगर, गाजीपुर आदि जिलों में सपा का बेहतरीन प्रदर्शन अति पिछड़ों और मुस्लिम वोटों की वजह से रहा था।
अपनी राय बतायें