बिहार के बक्सर में जब सबसे पहले क़रीब 40-45 शवों के गंगा में तैरते मिलने की ख़बर आई थी तो कोरोना संकट की एक भयानक तसवीर दिखी। फिर बिहार के साथ ही यूपी में कई जगहों से दर्जनों शव मिलने की ख़बरें आती रहीं। लेकिन अब यूपी से बेहद विचलित करने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है। 'दैनिक भास्कर' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी में 27 ज़िलों में 1140 किलोमीटर की दूरी में गंगा किनारे 2 हज़ार से ज़्यादा शव मिले हैं। ये शव गंगा किनारे कहीं पानी में तैरते मिले तो कहीं रेतों में दफनाए हुए।
इतनी बड़ी संख्या में शवों के मिलने से सवाल खड़े होते हैं कि आख़िर ये शव गंगा नदी में क्यों बहाए जा रहे हैं? क्या कोरोना संक्रमित लोगों की मौत के बाद उन्हें बहा दिया गया है? इन शवों को परिजनों ने गंगा में बहाया है या फिर प्रशासन ने? क्या श्मशान घाटों में लकड़ी की कमी हो गई है? या ग़रीब पैसे की कमी के कारण लकड़ियाँ नहीं खरीद पा रहे और इस कारण शव ऐसे फेंके जा रहे हैं? संभव है कि ये सभी कारण सही हों।
यूपी और बिहार में पिछले 4-5 दिनों से हर रोज़ दर्जनों शवों के मिलने की ख़बरें आ रही हैं। गुरुवार को भी 'अमर उजाला' की रिपोर्ट के अनुसार यूपी के गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली और भदोही में 21 शव मिले। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन के मुताबिक़ ही सिर्फ़ गाजीपुर में 169 शव मिल चुके हैं। पाँच दिन पहले उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में भी यमुना में 7 शव मिले थे।
इसी बीच अब सिर्फ़ यूपी में ही 2 हज़ार से ज़्यादा शव मिलने का 'दैनिक भास्कर' की रिपोर्ट में दावा किया गया है। अख़बार ने दावा किया है कि इसके 30 रिपोर्टरों ने बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, हापुड़, अलीगढ़, कासगंज, संभल, अमरोहा, बदांयू, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर और बलिया में गंगा किनारे घाट और गाँवों का जायजा लिया।
अख़बार की रिपोर्ट कहती है कि कन्नौज में महादेवी गंगा घाट के पास 350 से ज़्यादा लाशें दफन हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कानपुर के शेरेश्वर घाट पर आधा किलोमीटर में ही 400 से ज़्यादा लाशें दफन हैं। उन्नाव के शुक्लागंज घाट और बक्सर घाट के पास क़रीब 900 से ज़्यादा शव दफन हैं। दैनिक भास्कर की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार गाजीपुर में 280 लाशें मिलीं। प्रयागराज, वाराणसी, चंदौली, भदोही, मिर्जापुर में 50 शव मिले। फतेहपुर और बलिया में भी 35 शव मिले।
इन बहते शवों के वीडियो, फोटो सोशल मीडिया, टीवी पर वायरल हो रहे हैं। शवों के धार्मिक रिती-रिवाज से अंतिम संस्कार नहीं किए जाने पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
इनकी मौत के तमाम कारण गिनाए जा रहे हैं कि शायद इन वजहों से इन लाशों को इनके परिजनों द्वारा नदियों में बहा दिया गया। इनमें से पहला कारण इन लोगों की कोरोना से मौत होना ही बताया जा रहा है क्योंकि गांवों में कोरोना संक्रमण फैलने का डर इतना ज़्यादा है कि परिजन किसी की कोरोना से मौत होने पर अंतिम संस्कार करने से भी डर रहे हैं।
'इंडिया टुडे' से बातचीत में स्थानीय लोगों ने कहा था कि कोरोना से होने वाली मौतों के कारण श्मशान घाटों में बहुत भीड़ है और लकड़ियों की भी खासी कमी है, इसलिए यह आम बात हो गयी है कि लोग अपने परिजनों के शवों को नदियों में बहा दे रहे हैं।
एक ग्रामीण ने पीटीआई को बताया था कि कई पीड़ित परिवार ऐसे हैं जिन्हें अपने परिजनों के शवों को नदियों में बहाने के लिए मजबूर किया गया।
'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार बीजेपी के सांसद जनार्दन सिंह सिगरिवाल ने आरोप लगाया था कि कोरोना पीड़ितों के शव को जय प्रकाश सेतु नाम के ब्रिज से गुजरने वाली एंबुलेंस से नदी में फेंका जा रहा है। यह ब्रिज यूपी के बलिया के पास सीमा से सटे बिहार के सारण में है। रिपोर्ट के अनुसार, सिगरिवाल ने कहा है कि उन्होंने ज़िला प्रशासन से आग्रह किया है कि वे सुनिश्चित करें कि एंबुलेंस चालक शवों को वहाँ नहीं फेंकें।
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