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मथुरा विवादः इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुस्लिम पक्ष को झटका

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मुकदमों को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। जस्टिस मयंक कुमार जैन ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे गुरुवार को सुनाया गया। अदालत ने मुस्लिम पक्ष की किसी भी दलील को स्वीकार नहीं किया।

 

हाईकोर्ट के गुरुवार के फैसले पर टिप्पणी करते हुए हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि अगर मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाएगा तो वे तैयार हैं। हम वहां कैविएट लगाने जा रहे हैं।

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हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा "आज (1 अगस्त) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मसजिद द्वारा दायर आदेश 7 नियम 11 के आवेदन को खारिज कर दिया है और माना है कि ये सभी 18 मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम के तहत वर्जित नहीं हैं... सुनवाई की अगली तारीख 12 अगस्त है। इस आदेश का अर्थ यह है कि मुकदमे आगे बढ़ेंगे और स्थिरता के मुद्दे पर मुकदमे में दखल देने के इरादे और प्रयास को खारिज कर दिया गया है। हम सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल करेंगे और अगर शाही ईदगाह मस्जिद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है, तो हम भी वहां मौजूद होंगे।" 

कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास स्थित शाही ईदगाह मसजिद को "हटाने" की मांग करते हुए कई मुकदमे दायर किए गए हैं। वादियों का दावा है कि औरंगजेब-युग की मसजिद कृष्ण मंदिर को गिराने के बाद बनाई गई थी। मसजिद प्रबंधन समिति ने अपनी याचिका में इन मुकदमों को चुनौती दी थी।

मुस्लिम पक्ष की ओर से मसजिद प्रबंधन समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया था कि मुकदमों को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत खारिज किया जाए। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट को बताया कि मुकदमा करने वालों ने खुद इस तथ्य को स्वीकार किया है कि जिस मसजिद की बात हो रही है उसका निर्माण 1669-70 में किया गया था।

हिंदू पक्ष के मुकदमों में एक आम मांग यह शामिल है कि मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर के साथ साझा 13.37 एकड़ भूमि के परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को "हटाया" जाए। अन्य याचिकाओं में शाही ईदगाह परिसर पर कब्ज़ा दिलाने की मांग शामिल है।

क्या है मथुरा विवादः मथुरा विवाद आठ दशक से अधिक पुराना है और इसमें 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक को कोर्ट में चुनौती दी गई है। यहीं पर शाही ईदगाह है। याचिकाकर्ता कटरा केशव देव मंदिर के कैंपस से 17वीं शताब्दी में बनी शाही ईदगाह को हटाने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि मसजिद कथित तौर पर कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई थी। मसजिद को 1669-70 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर बनाया गया था। कृष्ण जन्मभूमि ट्र्स्ट आस्था के आधार पर इस केस को लड़ रहा है।

याचिकाकर्ता 1968 के उस समझौते को मानने को तैयार नहीं हैं जो जमीन के मालिक कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ, मंदिर प्रबंधन और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के बीच हुआ था। 1968 के उस समझौते के तहत हिस्से के रूप में, मंदिर प्राधिकरण ने जमीन का हिस्सा ईदगाह को दे दिया था।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं है। क्योंकि कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, जिसके पास स्वामित्व और जगह का टाइटल है, वह इसमें पक्षकार नहीं है। अदालत को उस भूमि को देवता को ट्रांसफर करने का आदेश देना चाहिए जिस पर मसजिद बनाई गई थी।

ज्ञानवापी मसजिद विवाद की तरह, कृष्ण जन्मभूमि मामले ने 2019 में बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जोर पकड़ा। हालांकि आरएसएस ने पहले वादा किया था कि अयोध्या के बाद अब किसी विवाद को नहीं उठाया जाएगा लेकिन आरएसएस से जुड़े संगठनों ने काशी और मथुरा पर 2019 के फैसले के बाद जबरदस्त बयानबाजी शुरू कर दी।

मथुरा मामले में पहली याचिका सितंबर 2020 में मथुरा सिविल कोर्ट में लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य ने "भगवान श्रीकृष्ण विराजमान" की ओर से दायर की थी। उन्होंने मांग की थी कि मस्जिद को हटा दिया जाए और जमीन कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को लौटा दी जाए। हालाँकि, सिविल जज ने 30 सितंबर, 2020 को इस मुकदमे को नामंजूर करते हुए खारिज कर दिया था। पीटीआई ने उस समय बताया जज के फैसले को कोट करते हुए लिखा था- जज ने कहा कि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं था और इसलिए इस मामले में उनकी वैध हिस्सेदारी नहीं थी।

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इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आदेश में संशोधन के लिए मथुरा जिला अदालत का रुख किया। उनकी याचिका मंजूर कर ली गई। ट्रस्ट और मंदिर के अधिकारियों को मुकदमे में पार्टी बनाया गया। मथुरा की अदालतों में 2020 से लेकर अब तक श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले को लेकर कम से कम एक दर्जन मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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