कांग्रेस के संगठन के मजबूत नेता और मनमोहन सिंह के शासन में केंद्रीय मंत्री रहे उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के नेता आरपीएन सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। महज एक दिन पहले कांग्रेस ने उन्हें अपने स्टार प्रचारकों की सूची में रखा था। उत्तर प्रदेश की राजनीति में चुनाव जातीय गणित में सिमटता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से आरपीएन की जाति की चर्चा सर्वाधिक है। विभिन्न समाचार माध्यमों में यह चर्चा गर्म रही कि आखिर आरपीएन की जाति क्या है और पूर्वांचल में उनकी जाति का कितना असर है।
क्या आरपीएन सिंह के आने से बीजेपी को फायदा होगा?
- उत्तर प्रदेश
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- 26 Jan, 2022

आरपीएन सिंह को अपने पाले में करके बीजेपी क्या पूर्वांचल में ओबीसी वोटबैंक में लगी सेंध की भरपाई कर पाएगी?
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़, खलीलाबाद और बस्ती के कुछ इलाकों में सैंथवार जाति बहुलता से पाई जाती है। यह मूल रूप से खेती बाड़ी से जुड़ी जाति है। बहुलता वाले इलाकों में इस जाति की स्वतंत्रता के पहले से जमींदारियां रही हैं। सैंथवार जाति का एक अपना अलग अस्तित्व रहा है, जो अमूमन 90 प्रतिशत सिंह सरनेम और 10 प्रतिशत मल्ल सरनेम लगाते हैं। क्षत्रियों में इनकी शादियां नहीं होतीं, लेकिन 1990 तक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की गोरखपुर इकाई में इस जाति के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाए जाने की परंपरा रही थी।
अगर राजनीतिक रुझान का विश्लेषण करें तो स्वतंत्रता की लड़ाई में इस जाति के लोग बड़ी संख्या में गांधीवादी रहे।