हाथरस के निर्भया बलात्कार मामले में सीबीआई द्वारा चार अभियुक्तों के विरुद्ध रेप, गैंग रेप और हत्या की चार्जशीट भले ही दायर हो गई हो लेकिन सवाल यह है कि 4 अक्टूबर को थाना चंदपा (हाथरस) में रची गई तथाकथित अपराध की उस सुनियोजित साज़िश का क्या अंजाम होगा जिसने जेल के सीखचों में पहले से बंद मलयाली पत्रकार सहित 4 मुसलिम युवाओं को दोबारा नया मुक़दमा तानकर अपनी गिरफ़्त में ले लिया था और न जाने कितने 'अज्ञात' व्यक्तियों (राजनेता, टीवी पत्रकार और अन्य लोग) के ख़िलाफ़ षड्यंत्र की यह तलवार अभी भी लटक रही है।
क्या सीबीआई किसी प्रकार की चार्जशीट यूपी के उन डीजी (पुलिस) के विरुद्ध भी दायर करेगी जिनके नेतृत्व वाली प्रदेश पुलिस समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बलात्कार का विरोध करने वालों के ख़िलाफ़ दमनात्मक मोर्चा लगाकर बैठ गई थी?
डीएम-एसएसपी का दोष
उन एडिशनल डीजी के विरुद्ध कौन मुक़दमा दायर करेगा जो गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते रहे थे कि शुक्राणु नहीं मिला है इसलिए इस बलात्कार की पुष्टि नहीं होती है? हाथरस के उन डीएम और एसएसपी के विरुद्ध सीबीआई क्या कार्रवाई करेगी जिन्होंने न सिर्फ़ पीड़ित परिजनों को डराने-धमकाने से लेकर बलात्कार को झुठलाने में सारी प्रशासनिक मशीनरी झोंक दी थी बल्कि मृत निर्भया की बॉडी को पेट्रोल डाल कर आनन-फानन में जला दिया था ताकि सबूत ही न रहे?
हाथरस की घटना के वे अकेले 4 अभियुक्त नहीं हैं जिनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई है बल्कि अभियुक्तों की ऐसी फ़ौज है जो शासन और प्रशासन के ऊंचे-नीचे पदों पर क़ाबिज़ है। सबसे बड़ा न्यायिक सवाल यह है कि इस लोगों के विरुद्ध चार्जशीट कौन दायर करेगा और कब?
मीडिया की नापाक भूमिका
सीबीआई मीडिया के उन सिपहसालारों के ख़िलाफ़ किस क़िस्म की कार्रवाई करेगी जो या तो बलात्कार में यूपी सरकार और पुलिस का नकारात्मक वर्ज़न हाइलाइट करते रहे या जो 'बलात्कार के फ़र्ज़ी आरोपों के चलते' सवर्णों के विरुद्ध होने वाली 'ज़्यादतियों' का दुखड़ा रटते रहे या फिर जो इसमें 'नक्सल एंगल' तलाशते रहे?
सच छुपाने की कोशिश
पहले रेप की वारदात को झुठलाने की असफल कोशिश करने और अंततः 29-30 सितम्बर की मध्य रात्रि को पीड़ित निर्भया के शव को उसके घरवालों की अनुपस्थिति में पेट्रोल छिड़क कर ज़िंदा जलाए जाने की हाथरस पुलिस की घृणित कार्रवाई के विरुद्ध अगले तीन-चार दिनों में जैसी देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई, हाथरस से लेकर दिल्ली तक जैसे विरोध-प्रदर्शन हुए और मीडिया के जरिये उनका प्रचार-प्रसार हुआ, उससे बचने के लिए सरकार ने आनन-फानन में जो एक्शन लिये, चंदपा थाने की यह एफ़आईआर उस दिशा में पहली कार्रवाई थी।
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चंदपा थाने के सब इंस्पेक्टर अवधेश कुमार ने 4 अक्टूबर को संस्कृतनिष्ठ हिंदी और व्याकरण की त्रुटियों से भरपूर भाषा में लिखाई गई तहरीर में कहा - "हाथरस में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना को लेकर कुछ अराजक तत्व बेजा लाभ लेने के कुत्सित उद्देश्य से एक पूर्व सुनियोजित योजना के अनुसार एक आपराधिक षड्यंत्र के तहत पूरे प्रदेश का अमन-चैन बिगाड़ने व प्रदेश में वर्ग विद्वेष तथा जाति विद्वेष भड़काकर प्रदेश की लोक प्रशांति विक्षुब्ध कर सरकार की छवि ख़राब करने के उद्देश्य से पीड़िता के परिवार को भड़काने, उन्हें बरगलाने तथा उन्हें गलत बयानी देने के लिए उनपर दबाव बनाने तथा उन्हें 50 लाख रुपये का प्रलोभन देकर उन्हें प्रदेश सरकार के विरुद्ध मिथ्या तथ्य बोलने, उनके अपने पूर्व के बयान को बदलवाने का प्रयास कर जनपद हाथरस व प्रदेश की लोक प्रशांति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने तथा आम जन मानस में भय फैलाने का प्रयास किया गया है।"
पत्रकार, नेता का भी नाम
तहरीर में एक टीवी पत्रकार, एक राजनीतिक नेता व अन्य लोगों का उल्लेख है। मज़ेदार बात यह है कि ये सभी 'अज्ञात' हैं। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, हाथरस पुलिस की योजना पहले 'इंडिया टुडे' चैनल की महिला पत्रकार और भीम आर्मी के प्रमुख को इस मामले में लपेटे जाने की थी लेकिन शासन से इसकी अनुमति न मिलने के चलते इसे 'अज्ञात' बना दिया गया।
आगे चलकर 19 अक्टूबर को इन 'अज्ञात' को 'ज्ञात' के रूप में मथुरा जेल में बंद मलियाली पत्रकार सहित उन 4 मुसलिम नवयुवकों को आरोपित कर दिया गया जिन पर मथुरा पुलिस ने पहले ही देशद्रोह सहित अनेक गंभीर मुक़दमे लगा रखे थे।
पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल
इन सभी पर आईपीसी की धारा 109 (अपराध के लिए उकसाने हेतु दंड), 120 बी (अपराध के लिए षड्यंत्र हेतु दंड), 124 A (देशद्रोह), 153 A 1/A 1C /A 1 B C (विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता फैलाने से संबद्ध धाराएं) जैसे गंभीर अभियोग रचे गए हैं।
चारों नवयुवकों के वक़ील मधुवन दत्त चतुर्वेदी कहते हैं - “चंदपा पुलिस के लिए इससे ज़्यादा हास्यास्पद बात और क्या होगी कि जब उन्हें तथाकथित 'अज्ञात' अभियुक्तों में ढूंढे कोई नहीं मिला तो उन्होंने बैठे-ठाले उन निरपराधियों को ही लपेट लिया जो मथुरा पुलिस की अनुकम्पा से 12 दिन पहले से जेल में पड़े थे।"
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सीबीआई की चार्जशीट इन्हें स्वभावतः झूठ और कपोल कल्पित साबित कर देती है। तब सवाल यह उठता है कि क्या अदालत यह मुक़दमा ख़ारिज करके थाना चंदपा पुलिस के विरुद्ध फर्जीवाड़ा रचने की एवज़ में आरोपित करेगी?
हाथरस रेप कांड की पृष्ठभूमि में योगी सरकार ने एक ओर जहां आरोपियों को बचाने की अनैतिक कार्रवाइयां की हैं, वहीं एक तीर से कई राजनीतिक आखेट करने की कोशिश भी की है। इसका परिणाम यह हुआ कि बाद में बलात्कार और हत्या की अनेक घटनाएं हुई हैं। आज़मगढ़, बुलंदशहर और फतेहपुर में तो 24 घंटे के भीतर हत्या और रेप की अलग-अलग वारदातों ने पूरे प्रदेश को हिला दिया।
अक्टूबर, 2020 में जारी 'राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो' (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति 16 मिनट में बलात्कार की एक घटना घटित होती है। यूपी इन आंकड़ों में टॉप पर है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव सरकार के विरुद्ध बीजेपी का संकल्प अपराध पर लग़ाम लगाने का था।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद योगी आदित्यनाथ ने 'एनकाउंटर' की हुंकार भरी थी जिसका परिणाम ये हुआ कि निरपराधों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार गिराए जाने की वारदातें तो बहुत बड़ी तादाद में हुईं, लेकिन इसके बावजूद अपराध का ग्राफ़ बढ़ता गया।
ज़ाहिर है इनमें सर्वाधिक संख्या रेप सहित महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की थी। ऐसा पहली बार हुआ हो, यह बात नहीं है। वस्तुतः यह दुखदायी स्थिति 2017 से निरंतर बनी हुई है।
बीजेपी के नेता-मंत्रियों का झूठ उजागर
आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यह है कि यूपी की इन घटनाओं का बचाव करने में अकेले योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकारी मशीनरी ही नहीं, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर और पीयूष गोयल जैसे बीजेपी के वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रीगण, भूपेंद्र यादव सहित बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी और पार्टी का समूचा आईटी सेल प्रण-प्राण से जुट गए थे।
बलात्कारियों को बचाने के इन सामूहिक प्रयासों से यह भी साबित होता है कि बीजेपी नेतृत्व के लिए रेप कोई जघन्य अपराध नहीं बल्कि पौरुष का ऐसा प्रतीक है, जिसकी बलिवेदी पर बलिदान होने के लिए बनी भारतीय नारी निमित्त मात्र से अधिक कुछ भी नहीं और भारतीय संस्कृति तथा 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' का उनका शंखनाद ढपोर शंख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।
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