सन 1917 के चंपारण किसान आंदोलन ने महात्मा गाँधी को भविष्य के राष्ट्रीय आंदोलन का खेवनहार बन जाने का अवसर प्रदान किया था। यह वही किसान आंदोलन था जिसकी कोख से जन्मा सत्याग्रह भविष्य के नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मुख्य औज़ार बना। ऐसा औज़ार, जिसने आने वाले दशकों में ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला कर रख दी थीं। क्या दिल्ली के बॉर्डर पर जन्म लेने वाले किसान धरने भी इक्कीसवीं सदी के चम्पारण में विकसित होने की दिशा में है? क्या यह धरना भी बीजेपी की घराना पूंजीवाद की राजनीति के ऊपर चढ़े हिन्दूवाद के मुलम्मे की चूलें हिला कर रख देने की तैयारी कर रहा है?