सन 1917 के चंपारण किसान आंदोलन ने महात्मा गाँधी को भविष्य के राष्ट्रीय आंदोलन का खेवनहार बन जाने का अवसर प्रदान किया था। यह वही किसान आंदोलन था जिसकी कोख से जन्मा सत्याग्रह भविष्य के नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मुख्य औज़ार बना। ऐसा औज़ार, जिसने आने वाले दशकों में ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला कर रख दी थीं। क्या दिल्ली के बॉर्डर पर जन्म लेने वाले किसान धरने भी इक्कीसवीं सदी के चम्पारण में विकसित होने की दिशा में है? क्या यह धरना भी बीजेपी की घराना पूंजीवाद की राजनीति के ऊपर चढ़े हिन्दूवाद के मुलम्मे की चूलें हिला कर रख देने की तैयारी कर रहा है?
दिल्ली बॉर्डर के आंदोलन को समझो मोदी जी!
- विचार
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- अनिल शुक्ल
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- 23 Dec, 2020


अनिल शुक्ल
इससे ज़्यादा आश्चर्यजनक स्थिति और क्या होगी कि गाँधी के गुजरात में जन्मे नरेंद्र मोदी न तो किसान सत्याग्रह की ऐतिहासिक सामर्थ्य का आकलन कर सके और न ही पंजाब की धरती पर जन्म लेने वाले शूरवीरों के ऐतिहासिक जुझारूपन का। उनके लिए यह कल्पनातीत है कि दिल्ली बॉर्डर पर गांधी के अवतारों का जन्म हो सकता है?
गाँधी के स्वराज की विशेषता थी। आसमान में लहराता इसका ध्वज आंदोलन की राजनीति के रंग में जितना रंगा-पुता था, आंदोलन की संस्कृति में उतनी ही रची-बसी थीं उसकी जड़ें। सिंघु, टिकड़ी और गाज़ीपुर के बॉर्डरों पर इन दिनों आंदोलन की राजनीति के साथ-साथ आंदोलन की जैसी संस्कृति दिखायी दे रही है, आज़ादी के बाद के किसी आंदोलन में दिखायी नहीं दी। तो क्या यह मान लेना उचित होगा कि इक्कीसवीं सदी का तीसरा दशक दिल्ली सीमांत पर किसी एक व्यक्ति या नेतृत्व के एक समूह को गाँधी के रूप में जन्म देने की तैयारी कर रहा है?
- Anil Shukla
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