उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य उत्पादों के निर्माण, भण्डारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। राज्य सरकार का मानना है कि हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अवैध कारोबार हो रहा है। यह प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लगाया गया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार ने शनिवार को डेयरी उत्पाद, चीनी, बेकरी उत्पाद, पेपरमिंट ऑयल, खाने के लिए तैयार नमकीन और खाद्य तेल सहित खाद्य उत्पादों पर जारी हलाल प्रमाणीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिबंध लगने की घोषणा से पहले ही शनिवार को एक आधिकारिक प्रवक्ता ने दावा किया था कि इस टैग का इस्तेमाल "प्रचार" फैलाने और "धार्मिक भावना का शोषण" करने के लिए किया जा रहा है।
सरकार के प्रवक्ता ने कहा था "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उचित अधिकार के बिना खाद्य और कॉस्मेटिक उत्पादों को 'हलाल प्रमाणपत्र' जारी करने की अवैध प्रथा पर रोक लगाने के लिए तैयार हैं।धर्म की आड़ में एक विशेष वर्ग के बीच अनर्गल प्रचार किया जा रहा है।
यह घटनाक्रम लखनऊ में पुलिस द्वारा राज्य में बेचे जाने वाले खुदरा उत्पादों को "अवैध हलाल प्रमाणपत्र" प्रदान करने के लिए एक कंपनी और तीन संगठनों पर एफआईआर दर्ज करने के बाद आया है।
शुक्रवार 17 नवंबर को लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में इसको लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कुछ कंपनियों ने एक समुदाय के बीच अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए उत्पादों को हलाल के रूप में प्रमाणित करना शुरू कर दिया है और यह प्रथा जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ करने जैसा है।
'हलाल' क्या है जिस पर यूपी में लगा प्रतिबंध
हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब वैध या जायज है। इस्लाम धर्म में जिन चीजों को हलाल माना गया है इसे ही मुस्लिम खा सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह शब्द विशेष रूप से इस्लामी आहार संबंधी कानूनों से जुड़ा है, जिसका तात्पर्य उस भोजन से है जो इस्लामी विश्वास के अनुपालन में खरीदा, संसाधित और व्यापार किया जाता है। हलाल का विपरित हराम होता है। हराम का मतलब ऐसी चीजें जिन्हें खाना या इस्तेमाल करना वर्जित है।
भोजन की दो वस्तुएं जिन्हें आमतौर पर हराम (गैर-हलाल) माना जाता है, वे हैं सूअर का मांस और नशीला पदार्थ (शराब)। यहां तक कि अन्य जानवरों के मांस को भी हलाल के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए अपने स्रोत, जिस तरह से जानवर को मारा गया था, और इसे कैसे संसाधित किया गया था, से संबंधित विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।
हलाल सर्टिफिकेट कौन जारी करता है?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हलाल सर्टिफिकेट उपभोक्ता को बस यह बताता है कि कोई उत्पाद हलाल माने जाने की आवश्यकताओं को पूरा करता है या नहीं। वे मांस की उपस्थिति का संकेत नहीं देते हैं, या स्वयं में, उनका मांस से कोई लेना-देना नहीं है। भारत में हलाल उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिए कोई आधिकारिक नियामक संस्था नहीं है। बल्कि, विभिन्न हलाल प्रमाणन एजेंसियां हैं जो कंपनियों, उत्पादों या खाद्य प्रतिष्ठानों को हलाल सर्टिफिकेट देती हैं। उनकी वैधता मुस्लिम उपभोक्ताओं के बीच उनके नाम-पहचान के साथ-साथ इस्लामी देशों में नियामकों से मान्यता में निहित है।
उदाहरण के लिए, हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनी हलाल इंडिया ने अपनी वेबसाइट पर उल्लेख किया है कि इसका सर्टिफिकेट प्रयोगशाला परीक्षण और कई प्रक्रिया ऑडिट की कठोर प्रक्रिया के बाद प्रदान किया जाता है। हलाल इंडिया का सर्टिफिकेट कतर के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय, संयुक्त अरब अमीरात के उद्योग और उन्नत प्रौद्योगिकी मंत्रालय और मलेशिया के इस्लामी विकास विभाग सहित अन्य द्वारा मान्यता प्राप्त है। ये अंतर्राष्ट्रीय मान्यताएं इस्लामिक देशों को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
मुस्लिमों के लिए मांस कब हलाल है?
भारतीय संदर्भ में, हलाल शब्द का उपयोग ज्यादातर मुसलमानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वध तकनीक को बताने के लिए किया जाता है। इसमें गले की नस, कैरोटिड धमनी और गर्दन के सामने एक तेज चाकू से श्वासनली में एक ही कट लगाकर पशुओं या मुर्गे को मारना शामिल है।
किसी मांस के हलाल होने के लिए जरुरी है कि वध के समय जानवर जीवित और स्वस्थ होना चाहिए, और शव से सारा खून निकाला जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के दौरान, प्रार्थना का पाठ भी होना चाहिए।
ऐसा होने पर ही मुस्लिमों के लिए मांस हलाल होगा। इस्लाम धर्म के मुताबिक जो मांस हलाल नहीं है उसे खाना मुस्लिमों के लिए प्रतिबंधित है।
मुसलमानों के स्वामित्व वाली अधिकांश मांस की दुकानें अपने उत्पादों को 'हलाल' घोषित करती हैं जबकि हिंदू या सिखों के स्वामित्व वाली दुकानें खुद को 'झटका' मांस की दुकान घोषित करती हैं।
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