पुरुष और महिला यदि स्वेच्छा से विवाह या  प्रेम संबंध बनाना चाहते हैं तो उन्हें इस बात की आज़ादी क़तई नहीं दी सकती है। तथाकथित समाज उन्हें इस बात के लिए प्रताड़ित करेगा। यदि वे दलित हैं तब तो प्रेम करने के उनके अधिकार और अधिक संकुचित हो जाते हैं तथा प्रताड़ना की डिग्री और भी बढ़ा दी जाती है। वर्षों से सवर्ण और दबंग जातियों के लोग इन दलित जातियों और जनजातियों के 'अपराधियों' को इन मामलों में कठोर सज़ा देते आए  हैं।