कल्पना सोरेन
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जीत
कल्पना सोरेन
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हेमंत सोरेन
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कुंदरकी (मुरादाबाद) उपचुनाव के नतीजों ने समाजवादी पार्टी को हतप्रभ किया तो खुद भारतीय जनता पार्टी को चौंका दिया। इस सीट पर बीते कई दशकों में सिर्फ एक ही बार जीत सकी भाजपा ने उपचुनाव में सपा की जमानत जब्त करा दी है। लगभग 65 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी वाली इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को मिलने वाले वोट प्रदेश में 9 उपचुनाव वाली सीटों में सर्वाधिक रहे।
इतना ही नहीं, सपा ने सबसे कम वोट इसी सीट पर हासिल किए हैं। खुद भाजपा के रणनीतिकार कुंदरकी की सीट को कभी अपने खाते में मान कर नहीं चल रहे थे। उनका सारा जोर बस किसी तरह सम्मानजनक मुकाबले की स्थिति ला देना भर था। आखिर वो कौन से कारण रहे कि मुस्लिम मतदाताओं के बहुमत वाली इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी ठाकुर रामवीर की झोली में वोटों की बरसात हुई और सपा के टिकट पर उतरे पहले कई बार विधायक रह चुके हाजी रिजवान की जमानत तक नहीं बच सकी। यहां भाजपा प्रत्याशी ने 1.43 लाख वोटों से जीत हासिल की जो अब तक के किसी भी उपचुनाव में सर्वाधिक है।
आमतौर पर एकतरफा भाजपा विरोध में वोट करने वाला अल्पसंख्यक समुदाय कुंदरकी में बंटा हुआ नजर आया। यहां मुस्लिमों में तुर्कों की आबादी लगभग 80000 तो शेखजादों की 70000 हैं जबकि कसाई 10000 हैं। सपा हमेशा से यहां तुर्क प्रत्याशी ही उतारती रही है जिसके खिलाफ भाजपा ने अन्य मुस्लिम बिरादिरयों को अपने पाले में खड़ा करने में कामयाबी हासिल की। भाजपा प्रत्याशी ठाकुर रामवीर सिंह खुद पूरे चुनाव मुस्लिम इलाकों में ही जालीदार टोपी लगाकर घूम घूम कर प्रचार करते रहे। उन्होंने शेखों, कसाई और अन्य पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने में कामयाबी हासिल की। चुनाव से इतर भी रामवीर सिंह की छवि बिना किसी भेदभाव के मुसलमानों के काम आने की रही है।
सपा ने इस सीट पर हाजी रिजवान को मैदान में उतारा जो पहले बहुजन समाज पार्टी से विधायक रह चुके थे। मुस्लिमों में तुर्क बिरादरी से ही प्रत्याशी देने को लेकर बाकी बिरादरियों में नाराजगी रही। इसके अलावा यहां से लोकसभा सांसद जियाउर्रहमान वर्क भी सपा प्रत्याशी हाजी रिजवान के चयन से खुश नहीं थे। यह सीट उनके सांसद चुने जाने के चलते खाली हुई थी और वो अपने परिवार के किसी को लड़ाना चाहते थे। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र से सपा के अन्य नेता भी हाजी रिजवान का विरोध कर रहे थे। ऊपर से हाजी रिजवान के बेटे कल्लन से भी मुस्लिमों में, खासकर, कसाई और शेखों में भारी नाराजगी थी जिसे नज़रअंदाज़ करते हुए अखिलेश ने टिकट दे दिया।
इस सीट को छोड़ने वाले सांसद वर्क हों या यहीं के रहने वाले राज्यसभा सांसद जावेद अली, दोनों पूरे चुनाव प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। हालत ये रही कि दोनों सांसद केवल अखिलेश यादव की रैली में ही मंच पर दिखाई दिए और वहां भी प्रत्याशी का नाम लेकर वोट मांगने से परहेज करते दिखे। स्थानीय सांसद के किनारे होने के बाद पार्टी के अन्य नेता भी पूरे प्रचार के दौरान कम ही दिखाई दिए।
सपा नेतृत्व इन सबको जानते हुए भी जीत को लेकर इतना आश्वस्त था कि एक बार भी रूठे नेताओं को मनाने के प्रयास तक नहीं किए गए।
यूपी उपचुनावों से लेकर महाराष्ट्र व झारखंड सहित पूरे देश में ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पूरी भाजपा ने कुंदरकी में इस तरह के नारों, बयानों से परहेज किया। मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा कि जिस तरह से दीवाली शान से मनाई गई उसी तरह से ईद भी मनाई जाएगी। पूरे चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ने मुसलमानों से अपने रिश्तों और उनके सुख-दुख में खड़े होने का हवाला देकर वोट मांगा। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कुंदरकी में अल्पसंख्यक सम्मेलन किया और साफ कहा कि उनकी सरकार में इस समुदाय के हर काम होंगे और कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
चुनाव प्रचार की शुरुआत में ही सपा प्रत्याशी हाजी रिजवान ने बयान दिया कि कुंदरकी सपा की सीट है और अगर यहां कुत्ते के गले में भी इस पार्टी का पट्टा डाल दिया जाएगा तो जीत जाएगा। उनके इस बयान का बुरा असर हुआ और भाजपा ने इसे इस तरह से प्रचारित किया मानों मुसलमानों की तुलना जानवर से की गयी है। जीत को लेकर आश्वस्त हाजी रिजवान ने सपा के नाराज नेताओं को मनाने की बजाय उनके लिए उल्टे सीधे कमेंट किए। इतना ही नहीं सपा प्रत्याशी ने बसपा व आजाद समाज पार्टी से लड़ रहे मुस्लिम प्रत्याशियों की जातियों को लेकर भी प्रतिकूल टिप्पड़ी की जिसे भाजपा ने हाथो-हाथ लपका और खूब प्रचारित किया।
आमतौर पर सपा इस तरह की सीटों पर हार मिलने पर बसपा, ओवैसी या चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशियों के वोट काटने का आरोप लगाती रही है। कुंदरकी में भाजपा को इस कदर वोट मिले कि यह बहाना भी जाता रहा। सपा प्रत्याशी को पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में कुंदरकी से 57000 वोटों की लीड मिली थी। इस बार उसकी हार 1.43 लाख वोटों से हुई है। बसपा, आजाद समाज पार्टी और ओवैसी के प्रत्याशी कुला मिला कर 10000 वोट मुश्किल से हासिल कर सके हैं।
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