बीएचयू में भले ही एक मुसलिम फ़िरोज़ ख़ान के संस्कृत का प्रोफ़ेसर बनाए जाने का ज़बर्दस्त विरोध हो रहा हो, लेकिन दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में एक मुसलिम का ही और संस्कृत का ही प्रोफ़ेसर बनने की अलग दास्ताँ है। मुसलिम प्रोफ़ेसर के आगे दो हिंदू प्रोफ़ेसरों को प्रमोशन में तवज्जो दिए जाने पर छात्रों ने प्रदर्शन किया था। उस मुसलिम प्रोफ़ेसर का नाम है अशाब अली। चेहरे पर दाढ़ी। सर पर जालीदार टोपी। तन पर पजामा और कुर्ता। नमाज़ी भी नियमित। हज किया। लेकिन जानकार थे वेद के भी। 2010 में रिटायर हुए और रिटायरमेंट से पहले वह संस्कृत विभाग के अध्यक्ष भी रहे थे। वह भी ऐसे विभाग में जहाँ ब्राह्मणों और ठाकुरों की अधिकता थी। न तो कभी विरोध हुआ और न ही कभी हंगामा। अच्छा पढ़ाते थे तो  छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। उन्हें शिक्षक के मुसलिम होने पर कोई आपत्ति नहीं थी।