राम जन्मभूमि मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद पर नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद अयोध्या की ज़मीन खरीदने की होड़ मच गई, जिसमें नियम क़ानूनों का उल्लंघन जम कर किया गया।
सरकारी कर्मचारियों से लेकर बड़े राजनीतिक नेता ही नहीं, सत्तारूढ़ दल के स्थानीय स्तर के कार्यकर्ता तक इसमें शामिल थे और उन्होंने इसका खूब फायदा उठाया। इतना ही नहीं, इसमें ट्रस्ट तक शामिल थे।
क्या है मामला?
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, महर्षि योगी की संस्था महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (एमआरवीटी) ने राम मंदिर से सिर्फ पाँच किलोमीटर की दूरी पर 21 बीघा यानी लगभग 52 हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन नियमों का उल्लंघन कर दलितों से खरीदी।
उत्तर प्रदेश रेवेन्यू कोड रूल्स के अनुसार कोई भी ग़ैर-दलित ज़िला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बगैर किसी दलित से ज़मीन नहीं खरीद सकता। लेकिन एमआरवीटी ने लगभग एक दर्जन दलितों से यह ज़मीन खरीदी।
दलित के ख़िलाफ़ दलित का सहारा
क़ानून को धता बताने और लोगों की आंख में धूल झोंकने के लिए ट्रस्ट ने अपने ही एक कर्मचारी का इस्तेमाल किया।
एमआरवीटी के एक दलित कर्मचारी रोंगहाई ने दलितों से ज़मीन खरीदी और उसके बाद पूरी ज़मीन ट्रस्ट को दान कर दी।
इतना ही नहीं, दलितों से यह ज़मीन 6.38 लाख रुपए में खरीदी गई, जबकि इसकी कीमत लगभग 8.50 करोड़ रुपए थी।
रोंगहाई ने महादेव नामक दलित से 1.02 लाख रुपए में तीन बीघे ज़मीन खरीदी। उन्होंने वह ज़मीन ट्रस्ट को दान कर दी और उसके बाद ट्रस्ट ने वह ज़मीन किसी और को बेच दी।
उसके बाद महादेव ने प्रशासन से यह शिकायत की कि उसकी ज़मीन गलत तरीके से हस्तांतरित की गई है और तब यह मामला खुल कर सामने आया।
अक्टूबर 2020 में अयोध्या के ज़िला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जमीन की खरीद गैरक़ानूनी थी और एमआरवीटी को दिया गया दान पत्र भी अवैध था।
अफ़सर का घपला
इस रिपोर्ट में ज़मीन के सौदे को रद्द कर उसे वापस करने को कहा गया था।
बाद में अयोध्या के डिवीज़नल कमिश्नर एम. पी. अग्रवाल ने मार्च 2021 को यह सिफारिश की कि इस ज़मीन को सरकार को दे दिया जाए।
लेकिन इसमें दिलचस्प बात यह है कि दिसंबर 2020 में ही एम. पी. अग्रवाल के ससुर और साले ने क्रमश: 2530 वर्ग मीटर और 1260 वर्ग मीटर ज़मीन एमवीआरटी से खरीदी।
'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक, मुख्य राजस्व अधिकारी पुरुषोत्तम दास गुप्ता और पुलिस आईजी दीपक कुमार के रिश्तेदारों ने 1130 और 1020 वर्ग मीटर ज़मीन ट्रस्ट से खरीद ली।
मुख्य राजस्व अधिकारी की हैसियत से गुप्ता की ज़िम्मेदारी थी कि वे सारे ज़मीन की खरीद बिक्री पर नज़र रखते और यह देखते कि अनियमितता न हो, पर नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गईं और उनके रिश्तेदारों ने ट्रस्ट से ज़मीन खरीदी।
भ्रष्टाचार की इस बहती गंगा में नेताओं ने भी हाथ धोया। अयोध्या ज़िले में गोसाईंगंज के विधायक इंद्र प्रताप तिवारी ने 2593 वर्ग मीटर जमीन खरीदी।
इसके अलावा यूपी काडर के रिटायर्ड आईएएस अफ़सर उमाधर द्विवेदी ने भी अयोध्या की यह जमीन खरीदी।
इस पूरे घपले के केंद्र में रहे रंगहाई जो खुद दलित है, वह अब भी अयोध्यान से लगभग 25 किलोमीटर दूर सहवपुर गाँव में रहते हैं।
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