कड़ाके की सर्दी में मेरठ झुलस गया। लपटें उठीं और शांत हो गया लेकिन तपिश बरकरार है। दंगों के लिए जाने जाने वाले इस शहर में इस बार दो धर्मों के लोग नहीं भिड़े बल्कि सत्ता का प्रतिनिधित्व करने वाला पुलिस-प्रशासन और मुसलिम समुदाय आमने-सामने आ गये। आख़िर क्या हुआ मेरठ में और क्यों हुआ उपद्रव? कौन हैं उपद्रव की साज़िश करने वाले या यह सिर्फ सत्ताधारियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा था?